सूखने लगे कंठ
छिंदवाड़ा जिले में अभी से सूखे की आहट सुनाई देने लगी है। गर्मी की शुरुआत के साथ ही लोगों के कंठ सूखने लगे हैं। कोयलांचल और संतरांचल के कई नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में एक सप्ताह बाद पेयजल आपूर्ति हो रही है। यहां के निवासियों को प्रतिदिन पेयजल के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ रही है। ३८२ हैंडपम्पों में जल स्तर काफी गिर चुका है। ११९ हैंडपम्प सूख गए हैं। १८१ हैंडपम्प 'बीमारÓ हो चुके हैं। गांवों में ११० नल योजनाएं बंद पड़ी हैं। विभिन्न कारणों से १५१ बोरिंग बंद पड़े हैं। पांढुर्ना, सौंसर, परासिया व जुन्नारदेव के २८४ गांवों में भूमिगत जलस्तर औसत से छह मीटर तक नीचे चला गया है। दो-तीन माह बाद इन गांवों के हैंडपम्प और बोर पानी देना बंद कर देंगे। नदियों, जलाशयों, बांधों और पानी के अन्य स्रोत की स्थिति भी चिंताजनक है। जलस्रोत्रों में पर्याप्त जल संग्रह नहीं होने के कारण जलापूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। जल संकट को देखते हुए जिले की सभी १३ तहसीलों में पेयजल सहेजने की कवायद शुरू हो गई है। कलेक्टर ने जलदोहन पर रोक लगा दिया है। मप्र पेयजल परिरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा ३ के अंतर्गत सभी विकासखंडों को जल अभावग्रस्त घोषित कर दिया गया है। १५ जुलाई तक जिला उक्त आदेश की जद में रहेगा। पिछले मानसून में कम बारिश के कारण जल संकट की स्थिति निर्मित हुई है। भयावह स्थिति के मद्देनजर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने सूखा राहत प्रकोष्ठ बना लिया है। ग्रामीण अंचलों में पेयजल निदान और पेयजल प्रदाय व्यवस्था सुचारू रखने के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हंै। गर्मियों में हर साल जल संकट की स्थिति निर्मित होती है, लेकिन हम 'प्यास लगने पर कुआं खोदते हैं।Ó बारिश के मौसम में पानी संग्रहण के प्रयास नहीं किए जाते, जिसका खामियाजा गर्मी में भुगतना पड़ता है। सालभर पानी की समस्या उत्पन्न न हो इसके लिए मानसून के समय ही वर्षा जल के संरक्षण और संग्रहण पर बल देना होगा। सतही जल संरचनाओं का निर्माण कर भूमिगत जलस्तर बढ़ाना होगा। खेतों, मैदानों और गांवों में वर्षा जल के प्रवाह को नियंत्रित करना होगा। रेन-वाटर हार्वेस्टिंग की संरचनाओं का निर्माण कर बारिश के पानी को भविष्य के लिए सुरक्षित रखना होगा। हमें पानी के दुरुपयोग को रोकने की शुरुआत घर से करनी होगी। हम दिनभर में कई लीटर पानी व्यर्थ बहा देते हैं, इसे रोकना होगा। जलआपूर्ति की पुरानी पद्धति को बदलना होगा। नए सिरे से पाइप लाइन बिछानी होगी, क्योंकि लीकेज के कारण प्रतिदिन लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। अब समय आ गया है, एक-एक बूंद पानी सहेजने का।
छिंदवाड़ा जिले में अभी से सूखे की आहट सुनाई देने लगी है। गर्मी की शुरुआत के साथ ही लोगों के कंठ सूखने लगे हैं। कोयलांचल और संतरांचल के कई नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में एक सप्ताह बाद पेयजल आपूर्ति हो रही है। यहां के निवासियों को प्रतिदिन पेयजल के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ रही है। ३८२ हैंडपम्पों में जल स्तर काफी गिर चुका है। ११९ हैंडपम्प सूख गए हैं। १८१ हैंडपम्प 'बीमारÓ हो चुके हैं। गांवों में ११० नल योजनाएं बंद पड़ी हैं। विभिन्न कारणों से १५१ बोरिंग बंद पड़े हैं। पांढुर्ना, सौंसर, परासिया व जुन्नारदेव के २८४ गांवों में भूमिगत जलस्तर औसत से छह मीटर तक नीचे चला गया है। दो-तीन माह बाद इन गांवों के हैंडपम्प और बोर पानी देना बंद कर देंगे। नदियों, जलाशयों, बांधों और पानी के अन्य स्रोत की स्थिति भी चिंताजनक है। जलस्रोत्रों में पर्याप्त जल संग्रह नहीं होने के कारण जलापूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। जल संकट को देखते हुए जिले की सभी १३ तहसीलों में पेयजल सहेजने की कवायद शुरू हो गई है। कलेक्टर ने जलदोहन पर रोक लगा दिया है। मप्र पेयजल परिरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा ३ के अंतर्गत सभी विकासखंडों को जल अभावग्रस्त घोषित कर दिया गया है। १५ जुलाई तक जिला उक्त आदेश की जद में रहेगा। पिछले मानसून में कम बारिश के कारण जल संकट की स्थिति निर्मित हुई है। भयावह स्थिति के मद्देनजर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने सूखा राहत प्रकोष्ठ बना लिया है। ग्रामीण अंचलों में पेयजल निदान और पेयजल प्रदाय व्यवस्था सुचारू रखने के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हंै। गर्मियों में हर साल जल संकट की स्थिति निर्मित होती है, लेकिन हम 'प्यास लगने पर कुआं खोदते हैं।Ó बारिश के मौसम में पानी संग्रहण के प्रयास नहीं किए जाते, जिसका खामियाजा गर्मी में भुगतना पड़ता है। सालभर पानी की समस्या उत्पन्न न हो इसके लिए मानसून के समय ही वर्षा जल के संरक्षण और संग्रहण पर बल देना होगा। सतही जल संरचनाओं का निर्माण कर भूमिगत जलस्तर बढ़ाना होगा। खेतों, मैदानों और गांवों में वर्षा जल के प्रवाह को नियंत्रित करना होगा। रेन-वाटर हार्वेस्टिंग की संरचनाओं का निर्माण कर बारिश के पानी को भविष्य के लिए सुरक्षित रखना होगा। हमें पानी के दुरुपयोग को रोकने की शुरुआत घर से करनी होगी। हम दिनभर में कई लीटर पानी व्यर्थ बहा देते हैं, इसे रोकना होगा। जलआपूर्ति की पुरानी पद्धति को बदलना होगा। नए सिरे से पाइप लाइन बिछानी होगी, क्योंकि लीकेज के कारण प्रतिदिन लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। अब समय आ गया है, एक-एक बूंद पानी सहेजने का।
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