16.7.15

अगले 25 सालों में भारत बन सकता है आर्थिक महाशक्ति मगर.......

मित्रों,अभी दो दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के एक बयान पर काफी हो-हल्ला हुआ। श्री शाह ने कहा था कि भारत को दुनिया में नंबर एक राष्ट्र बनाने में कम-से-कम 25 साल लगेंगे। श्री शाह ने इसके लिए एक शर्त भी रखी कि इसके लिए  भाजपा को पंचायत से लेकर केंद्र तक हर स्तर पर जिताना होगा। खैर,यह तो रही भाजपा की शर्त लेकिन सिर्फ ऐसा कर देने से ही देश विकसित और दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति हो जाएगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं होनेवाला। बल्कि इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को बहुत सारे सुधार और बदलाव करने पड़ेंगे जिनमें से अपनी क्षमतानुसार मैं कुछेक का जिक्र इस आलेख में करने जा रहा हूँ।
मित्रों,सबसे पहले तो हमें अपनी सोंच को बदलना होगा। सबको गरीब बनाकर रखना न तो समाजवाद है और न ही साम्यवाद बल्कि सबको अमीर बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अबतक भारत में शासन करनेवाली सभी सरकारों का मूलमंत्र सबको गरीब बनाकर रखना रहा है हमें इस मूलमंत्र को सिरे से पलट देना होगा और ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे जिससे सबको अमीर बनाया जा सके। जो अमीर हैं वे तो अमीर रहें ही जो गरीब हैं उनको भी अमीर बनाया जाए।
मित्रों,इसके लिए सबसे पहले तो हमें कृषि-क्रांति करनी होगी। आजादी के 70 साल बाद भी हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। हम इनको गरीब रखकर कभी अमीर राष्ट्रों की श्रेणी में नहीं आ सकते इसलिए हमें ऐसे प्रबंध करने होंगे जिससे कृषि-उत्पादकता में भारी वृद्धि हो। प्रत्येक खेत को सिंचित करना होगा,भूमिगत जल को रिचार्ज करना होगा और किसानों खाद और बीज समय पर उपलब्ध करवाना होगा। साथ ही उनको अपने उत्पादों का सही मूल्य प्राप्त हो इसकी भी व्यवस्था करनी होगी। भूमि स्वास्थ्य कार्ड और प्रधानमंत्री सिंचाई योजना को अविलंब लागू करना होगा। कुल मिलाकर कृषि एक बार फिर से सबसे उत्तम व्यवसाय बने सुनिश्चित करना होगा।
मित्रों,हमें अगर महाशक्ति बनना है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें औद्योगिक क्रांति करनी होगी। सेवा क्षेत्र की अपनी सीमाएँ हैं। फिर उसमें भारत की युवा जनसंख्या के लिए रोजगार देने की संभावनाएँ भी नहीं हैं। इसलिए अगर हमें भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाना है तो देश को दुनिया की फैक्ट्री में बदलना होगा। पूरी दुनिया को मेड इन इंडिया वाले सामानों से पाट देना होगा। इस कार्य को शुरू करने के लिए यह समय भी एकदम उपयुक्त है। क्योंकि दुनिया की फैक्ट्री चीन में श्रमिक अब महंगे हो गए हैं। इसके लिए भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव करना होगा और बड़े-बड़े एसईजेड की स्थापना के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण करना होगा। एक-एक एसईजेड हजारों हेक्टेयर के होने चाहिए न कि दो-चार सौ हेक्टेयर के। जिन किसानों की जमीनें इसमें जाएंगी उनको इनमें नौकरी दी जा सकती है या फिर बाजार-मूल्य से कई गुना ज्यादा दाम देना होगा जिससे वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू कर सकें। हमें श्रम-कानूनों को इस प्रकार का बनाना होगा जिससे न तो श्रमिकों का शोषण हो और न ही लगातार हड़ताल-पर-हड़ताल हो। एसईजेड को करों में छूट के अतिरिक्त हर तरह की आधारभूत संरचना यथा सुपरफास्ट सड़क-रेल-जल परिवहन,चौबीसों घंटे बिजली,भ्रष्टाचारमुक्त त्वरित समस्या-समाधान प्रणाली उपलब्ध करवानी होगी।
मित्रों,एसईजेड की जरुरतों के मुताबिक हमें श्रमिक भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध करवाना होगा। इसके लिए हमें देश के हर प्रखंड,विकास-खंड में आईटीआई की स्थापना करनी होगी जिनमें अच्छे प्रशिक्षक हों। आईटीआई को भविष्य की औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाना होगा तदनुसार सारी प्रायोगिक सुविधाएँ भी उपलब्ध करवानी होगी। इस दिशा में कल ही भारत सरकार ने कदम भी उठाया है।
मित्रों, इसके साथ ही उद्यमियों को ऋण देने की प्रणाली को सरल और रिश्वतमुक्त बनाना होगा। अभी तो स्थिति ऐसी है कि कुटीर और लघु उद्यमियों को जो 35 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है वो घूस देने में ही चली जाती है। उसके बाद जब वो पैसे वापस करने जाता है तो पता चलता है 10 लाख के ऋण के बदले उसको सूद समेत 15 लाख भरना होगा और वो हक्का-बक्का रह जाता है। इसके साथ ही हमें कारखानों में ऐसी चीजों का उत्पादन करना होगा जिसकी फैक्ट्री के आसपास और हमारे देश के आसपास के क्षेत्रों में मांग है। हमें उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा।
मित्रों,जनसंख्या-विस्फोट भारत की बहुत बड़ी समस्या है और बहुत सारी समस्याओं की जड़ भी है। इसलिए हमें सख्ती के साथ बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा अन्यथा लाख कोशिशों के बावजूद भी हम अपने देश की प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ा पाएंगे। और जब तक प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी जीवन-स्तर में भी सुधार नहीं होगा। हम यह नहीं कहते कि हम चीन की तरह हम दो हमारे एक की नीति अपनाएँ लेकिन हम दो हमारे दो की नीति का तो पूरी सख्ती से पालन करवाना ही होगा। हम जानते हैं कि एक संप्रदाय-विशेष इसका विरोध करेगा लेकिन 13 प्रतिशत लोगों की मनमानी के चलते हम देश को बर्बादी की आग में नहीं झोंक सकते।
मित्रों,गांवों से शहरों की ओर पलायन आज बहुत बड़ी समस्या बन गई है। बड़े-बड़े शहरो में झुग्गियों की संख्या में तेजी से ईजाफा हो रहा है। मजदूर अपने परिवार को शहर तो ले आते हैं लेकिन गुणवत्तापूर्ण जीवन नहीं दे पाते। हमें इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी होगी और मजदूरों को अपने गांव के आसपास ही नौकरी देनी होगी। साथ ही गांवों में ही वो सारी सुविधाएँ भी देनी होंगी जो शहरों में मिलती हैं जैसे उत्तम व निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा,गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा,बिजली,बैंकिंग सेवा आदि।
मित्रों,इसके साथ ही हमें अपनी ट्रेनों की रफ्तार को न्यूनतम किराये के साथ इतनी तेज करना होगा कि लोग 500-700 किमी दूर जाकर भी काम करके शाम को घर वापस आ जाएँ।
मित्रों,आरक्षण के चलते हम गुणवत्ता से समझौता करते हैं। मेधावी छात्र घर बैठे रह जाते हैं और औसत लोगों को नौकरी मिल जाती है। हमें इस स्थिति को बदलना होगा। आरक्षण को 50 प्रतिशत से कम करके 10-15 प्रतिशत करना होगा। इसके साथ ही आरक्षण के आधार को भी जातीय से बदलकर आर्थिक करना होगा क्योंकि गरीबी हर जाति,हर तबके और हर मजहब में है।
मित्रों,अंत में हमें अपनी शिक्षा-प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। मैकाले की शिक्षा-प्रणाली ऐसी है कि वो सिर्फ किरानी पैदा करती है कुशल श्रमिक या उद्यमी नहीं। हमें इस स्थिति को पूरी तरह से पलटना होगा और कुशल श्रमिकों और उद्यमियों का निर्माण करना होगा। जो लोग कला या विज्ञान या अन्य कोई अव्यावसायिक कोर्स लेते हैं उनको भी एक-न-एक ऐसा विषय लेना होगा जिसके बल पर वे अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम कर सकें। साथ ही पाठ्यक्रम को वैश्विक-बाजार की भविष्यगत जरुरतों के मुताबिक समय-समय पर बदलना पड़ेगा। इसके साथ ही युवाओं को नैतिक-शिक्षा भी देनी होगी क्योंकि आज दुनिया में आदमियों की आबादी तो खूब बढ़ी है लेकिन उसी अनुपात में उनके भीतर आदमियत की कमी भी हो गई है।
मित्रों,मेरे हिसाब से अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इतने कदम उठा लें तो भारत अगले 20-पच्चीस सालों में जरूर दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन हैं,मानव संसाधन हैं बस जरुरत है सही व्यवस्था कायम करने की और उनको सही दिशा देने की।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

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