हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अपने भीष्मपितामह लालकृष्ण आडवाणी जब
भी कुछ बोलते हैं तो उसके अनगिनत अर्थ लगाए जाते हैं। श्री आडवाणी ने कहा
कि आपातकाल लगाने वाली प्रवृत्तियाँ आज भी हमारे देश में मौजूद हैं और
लोगों ने इसे सीधे-सीधे केंद्र की मोदी सरकार से जोड़ दिया जबकि अभी तक
मोदी सरकार ने ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया है जिससे अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को खतरा पैदा होता हो। अगरचे भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर
प्रदेश में जरूर वर्ष 2012 से ही यानि समाजवादी सरकार के आने के बाद से ही
अघोषित आपातकाल लागू है।
मित्रों,अगर आप यूपी में रहते हैं तो आप सुपर चीफ मिनिस्टर आजम खान के खिलाफ लिखने की सोंच भी नहीं सकते हैं। पता नहीं कब आपको पुलिस घर से उठा ले। अभी पिछले दिनों एक पत्रकार जगेंद्र सिंह को तो यूपी सरकार के कद्दावर मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ लिखने पर खुद जनता की रक्षा की शपथ लेनेवाले पुलिसवालों ने ही घर में घुसकर जिंदा जला दिया और वर्मा यूपी सरकार में आज भी मंत्री बना हुआ है। संकेत साफ है कि हमारे खिलाफ लिखोगे तो जिंदा जला दिए जाओगे और हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। मैं समझता हूँ कि ऐसा तो 1975 के आपातकाल में भी नहीं हुआ था।
मित्रों,कल ही पूर्व बसपा सांसद शफीकुर्ररहमान बर्क के खिलाफ दो साल पहले फेसबुक पर की गई टिप्पणी के चलते एक स्वतंत्र टिप्पणीकार को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस बार यूपी पुलिस ने 66 ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने के ज्यादा संगीन धारा के तहत मुकदमा किया है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है और पूर्व की तरह सुप्रीम कोर्ट मामले में हस्तक्षेप कर पीड़ित पत्रकार को नहीं छुड़वाता है तो आगे उम्मीद की जानी चाहिए कि धड़ल्ले से इस सूत्र का यूपी पुलिस द्वारा प्रयोग किया जाएगा और यूपी में पत्रकार बिरादरी का जीना मुश्किल कर दिया जाएगा।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि देश में आपातकाल लागू करने के लिए न तो संसद की अनुमति चाहिए और न ही केंद्र सरकार की पहल ही जरूरी है बल्कि राज्य सरकारें भी चाहें तो बिना घोषणा किए ही आपातकाल जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती हैं और यूपी की समाजवादी सरकार यही कर रही है। यूपी में पिछले तीन सालों से लोकतंत्र को खूंटी पर टांग दिया गया है और एक पार्टी की सरकार चल रही है। उसी एक पार्टी के लोग प्रतियोगिता परीक्षाओं में पास हो रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग रंगदारी वसूल रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग थानेदारों को हुक्म दे रहे हैं और उसी एक पार्टी के लोग पत्रकारों को जिंदा जला भी रहे हैं। सवाल यह है कि इस एक पार्टी के सरकार-समर्थित गुंडाराज को रोका कैसे जाए? फिलहाल तो कोई मार्ग दिख नहीं रहा। वैसे भी जनता ने जब बबूल का पेड़ लगाया है तो उसको आम खाने को कहाँ से मिलेगा? गिनते रहिए गिनती कि कितने पत्रकार अंदर कर दिए गए और कितनों को मोक्षधाम पहुँचा दिया गया।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,अगर आप यूपी में रहते हैं तो आप सुपर चीफ मिनिस्टर आजम खान के खिलाफ लिखने की सोंच भी नहीं सकते हैं। पता नहीं कब आपको पुलिस घर से उठा ले। अभी पिछले दिनों एक पत्रकार जगेंद्र सिंह को तो यूपी सरकार के कद्दावर मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ लिखने पर खुद जनता की रक्षा की शपथ लेनेवाले पुलिसवालों ने ही घर में घुसकर जिंदा जला दिया और वर्मा यूपी सरकार में आज भी मंत्री बना हुआ है। संकेत साफ है कि हमारे खिलाफ लिखोगे तो जिंदा जला दिए जाओगे और हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। मैं समझता हूँ कि ऐसा तो 1975 के आपातकाल में भी नहीं हुआ था।
मित्रों,कल ही पूर्व बसपा सांसद शफीकुर्ररहमान बर्क के खिलाफ दो साल पहले फेसबुक पर की गई टिप्पणी के चलते एक स्वतंत्र टिप्पणीकार को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस बार यूपी पुलिस ने 66 ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने के ज्यादा संगीन धारा के तहत मुकदमा किया है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है और पूर्व की तरह सुप्रीम कोर्ट मामले में हस्तक्षेप कर पीड़ित पत्रकार को नहीं छुड़वाता है तो आगे उम्मीद की जानी चाहिए कि धड़ल्ले से इस सूत्र का यूपी पुलिस द्वारा प्रयोग किया जाएगा और यूपी में पत्रकार बिरादरी का जीना मुश्किल कर दिया जाएगा।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि देश में आपातकाल लागू करने के लिए न तो संसद की अनुमति चाहिए और न ही केंद्र सरकार की पहल ही जरूरी है बल्कि राज्य सरकारें भी चाहें तो बिना घोषणा किए ही आपातकाल जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती हैं और यूपी की समाजवादी सरकार यही कर रही है। यूपी में पिछले तीन सालों से लोकतंत्र को खूंटी पर टांग दिया गया है और एक पार्टी की सरकार चल रही है। उसी एक पार्टी के लोग प्रतियोगिता परीक्षाओं में पास हो रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग रंगदारी वसूल रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग थानेदारों को हुक्म दे रहे हैं और उसी एक पार्टी के लोग पत्रकारों को जिंदा जला भी रहे हैं। सवाल यह है कि इस एक पार्टी के सरकार-समर्थित गुंडाराज को रोका कैसे जाए? फिलहाल तो कोई मार्ग दिख नहीं रहा। वैसे भी जनता ने जब बबूल का पेड़ लगाया है तो उसको आम खाने को कहाँ से मिलेगा? गिनते रहिए गिनती कि कितने पत्रकार अंदर कर दिए गए और कितनों को मोक्षधाम पहुँचा दिया गया।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
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