30.7.15

यूरोप में अगर कलाम जैसे किसी महापुरुष का निधन हुआ तो कतई एकतरफा महिमामंडन नहीं होता


सब लोग किसी न किसी उद्देश्य को लेकर तत्परमान है, चिन्तित है। हमारी जाति, हमारा धर्म, ये वो से लेकर पंथ, वाद, विवाद तक के मामले चलायमान है सोशल मीडिया पर। सब परेशान है। दूसरे को लेकर तीसरे और चाौथे को लेकर पहले वाले सब परेशान है कि वही सही हैं और बाकी सब गलत। सब अपनी सोच, विचार और अपने मंतव्य को लेकर एक तरह से गतिमान है कि उनका सोचना ही सही है बाकी सब मुर्ख है। अभी मिसाईल मैन का निधन हुआ है और इसपर सेकुलर से लेकर बहुतायत लोगों के पोस्ट और कमेन्ट आये हैं। किसी भी समाज में कटेगेरिशन का बहुत महत्व है। जितना ही गहन विचार किसी विषय विशेष पर होगा उतने ही अधिक उसके विभाग होंगे। आज हम वैश्विक वैचारिक जनसंचार के राहों में हैं। सोशाल मीडिया ने विश्व को वह प्लेटफार्म दिया है जिसपर अनेक समाज, जाति, पाति और पंथ आदि सहित बहुतायत लोग अपने विचार और उसपर प्रतिपुष्टिीकरण कर एकतरह मनःस्थिति के प्रति बदलाव की क्रान्ति कर सकते हैं। हमारा देश, हमारा समाज हमेशा ही से एक तरह से रूढ़ीवादिता का पोषक रहा है।



यह सत्य है कि सनातन समाज ने कुछ रूढि़यों को तोड़ा है जैसे कि सती प्रथा और कुछेक अन्य, लेकिन आज भी हम उस पुरातन धरातल के पोषक बने हुये है जोकि हमे रसातल पर स्थिरमान करने के लिए पर्याप्त है। और पुरातन व्यवस्था किसी भी तरह से प्रायोगकि नहीं रहा। यह भी सत्य है कि हमारे पुरातन ग्रन्थों में वह सब विज्ञान विद्यमान है जोकि आज के परिपेक्ष्य में यांत्रिक यंत्रों द्वारा पाश्चात्य देशों द्वारा प्रायोगकि धरातल पर प्रायोगिक किये जा रहे है लेकिन एक हम है जों कि उस पुरातन साहित्य को पकड़ जकड़ कर तैनात है कि हम ही सर्वश्रेष्ठ है हमारा ही सर्वश्रेष्ठ है। आज सर्वश्रेष्ठता किसी की मोहताज नहीं और सर्वश्रेष्ठता की असली परीक्षा प्रायोगकि धरातल पर ही हो रहा है, तब विचारणीय है कि हम क्यों सनातन अप्रायोगिक श्लोकों और ऋषियों के साहित्यों को जकड़े हुये हैं।

यह सत्य है कि ये पुरातन साहित्य श्लोक कभी प्रायोगिक धरातल पर यथार्थमान थे लेकिन क्या ये वर्तमान परिपेक्ष्य में यथार्थ है कतई नहीं। आज पाश्चात्य देशों में विषय विशेष के हजारों विभाग हो चुके हैं तब हमारा देश कुछेक विभागों पर कायम है। आज कलाम नहीं रहे तो क्या होमी जहांगीर भाभा का परमाणु क्षेत्र में कोई योगदान नहीं रहा। भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक को आखिर दरकिनार कर हम किसी की अंत्येष्ठी को एक विभागी बनाकर आखिर क्यों हम भाभा के साथ अन्याय कर रहे हैं। आज जो महिमामंडन कलाम का हो रहा है उससे यह प्रतीत होता है कि भारत के परमाणु कार्यक्रम का सिर्फ और सिर्फ एक ही पुरोधे है और वह है माननीय कलाम। आखिर क्यों हम वर्गीकरण का अपमान कर रहे हैं आखिर क्यों हम किसी विषय, व्यक्ति विशेष पर एकतरफा अलंकरण का चादर ओढ़ा रहे हैं। न्यूटन के पांच सौ साल पहले ही गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार भारत के ऋषियों ने कर दिया था लेकिन आखिर कमी क्या रह गई की हम वैश्विक पटल पर इस आविष्कार, इस मंतव्य को रखने में असफल रहें। आखिर हमारा समाज क्यों पाश्चात्य देशों के पहियों पर अनुकरण करने को विवश है? क्योंकि हम पुरातन मामलों में बदलाव के पक्षधर नहीं है। आज से लगभग पांच दशक पहले तक यूरोप में महिलाओं को वोट देने तक अधिकार नहीं था। स्विटजरलैण्ड जैसे देश में लगभग सत्तर के दशक के बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ। आज से पांच दशक पहले तक यूरोप में महिलाओं को बैंक में खाते खोलने तक का अधिकार नहीं था। लेकिन आज के परिपेक्ष्य में देखें तो यूरोप से ज्यादा विश्व के अन्य किसी देश में महिलाओं को उतनी स्वच्छदन्ता प्राप्त नहीं जितना की यूरोप में प्राप्त है। इससे यह सिद्ध होता है कि यूरोप ने अपने रूढि़यों को उतनी गति से तोड़ी है जितनी कि अन्य देशों सहित भारत ने नहीं।

आज यूरोप में अगर कलाम जैसे किसी महापुरुष का निधन हुआ तो कतई एकतरफा महिमामंडन नहीं होता। हम मानते है माननीय कलाम का हमारे देश के परमाणु कार्यक्रम अतुलनीय योगदान रहा है, लेकिन यह भी सत्य है कि सिर्फ और सिर्फ कलाम ही हमारे देश के परमाणु क्षेत्र के विकास के लिए जिम्मेदार नहीं वरन अन्य बहुत से वैज्ञानिक है जोकि भारत के परमाणु क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिये है। होमी जहांगीर भाभा सरीखे वैज्ञानिकों ने हीं भारत के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी है। लेकिन जिस प्रकार महिमामंडन हो रहा है यह एक तरह से अन्य लोग जो परमाणु कार्यक्रम में महती भूमिका निभाये हैं उनके प्रति उदासिनता का द्योतक ही है...

लेखक विकास कुमार गुप्ता, पीन्यूजडाटइन के सम्पादक है इनसे 9451135000, 9451135555 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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