: कलाम को आखिरी सलाम, नहीं शाश्वत प्रणाम! : "कलाम" कभी मरते नहीं, अमर हो जाते हैं। कलाम सकारात्मक प्रेरणा के अजस्र स्रोत थे। " पारस " थे कलाम, इन्होंने बस्तर के इस अकिंचन, अनाम से साधारण किसान को, एवं हमारे मां दन्तेश्वरी हर्बल समूह को छूकर " सोना " बना दिया, "खरा सोना"। आज बस्तर का यह समूह देश का सबसे बड़ा वनौषधि कृषक समूह ही नहीं, बल्कि अन्तराष्ट्रीय प्रमाणीकरण संस्थानों द्वारा प्रमाणित, एवं विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों को गुणवत्ता के मामले में टक्कर देने वाले " सर्टिफाइड आर्गेनिक हर्बल फूड सप्लीमेंटस " उत्पाद देश के विदेश के बाजार में उतारने वाले पहले भारतीय किसान समूह बन गये हैं।
पीछे हमारे समूह के सदस्यों की कड़ी मेहनत, परिजनों का सक्रिय बहुविध सहयोग ,बस्तर की मिट्टी का अपार योगदान तो था ही, पर इसके साथ ही " कलाम " साहब की वह " जादुई प्रेरक शक्ति " भी काम कर रही थी, जो हमें उनसे पिछली कुछ मुलाकातों में प्राप्त हुई थी। पिछले दशक में, लगभग २००१-२००२ के बीच का वाकया है। उन दिनों हम अपनी उगायी गई जैविक जड़ी बूटियों को कच्चे माल के रूप में बोरों में जड़ी बूटियों के स्थापित आढ़तियों या दलालों को उचित दर पर बेचने की जद्दोजहद में उलझे रहते थे, बड़ा कठिन दौर था जड़ी बूटियों के किसानों के लिए, विशेषकर " सफेद मूसली " के किसानों के लिए तो बड़े बुरे दिन थे ।
उन दिनों " डी आर डी ओ " प्रभारी के रूप में कलाम साहब का बस्तर आना जाना होता था,और उनके रास्ते पर, बस्तर की उसी सड़क पर ही, राजनगर गांव में तैयार हो रहा था, हमारा नया हर्बल फार्म । उसी सड़क पर मां दन्तेश्वरी हर्बल फार्म का एक छोटा सा साइन बोर्ड भी हमने लगा रखा था ।उस रास्ते पर आते जाते , कलाम साहब ने हर्बल फार्म, के साथ ही हमारे समूह के कार्यों की भी पूरी जानकारी ली ,उनके हमारे फार्म पर पहली बार पहुंचने की घटना भी बड़ी रोचक और प्रेरणाप्रद है। एक सुबह मुझे पता चला कि हमारे राजनगर फार्म के गेट पर , एक बुजुर्ग सरकारी गाड़ी में आए हैं और हर्बल फार्म देखना चाहते हैं, मैं ने आगंतुक के बारे में कुछ और जानना चाहा तो,बताया गया कि,आगंतुक सज्जन लगभग सत्तर वर्ष के , छोटे कद के हैं, उनके बाल लंबे हैं, साधारण सफेद हाफ बुशर्ट एवं सफेद लुंगी पहने हुए हैं, और बहुत ही विनम्र हैं। मैंने अन्दाज़ लगाया कि बस्तर में। पदस्थ किन्हीं दक्षिण भारतीय सरकारी अधिकारी के पिता अथवा रिश्तेदार होंगे, हर्बल फार्म का साइन बोर्ड देख,जिग्यासावश आ गये हैं।
हमारे फार्म पर विजिटर आते ही रहते हैं, और सभी को फार्म भ्रमण, जड़ी बूटियों को दिखाने समझाने की यथासंभव कोशिश की जाती है,सो मैंने उन्हें भी भलीभाँति फार्म घुमाने को कहा। चूंकि फार्म काफी बड़ा है, १०० एकड़ से भी अधिक,तथा फार्म के हर कोने तक पहुंचने के लिए सड़कें भी बनीं हैं, अतएव, उनकी उम्र का लिहाज करते हुए उन्हें कार से फार्म भ्रमण की सलाह दी गई, पर उन्होंने इस सुविधा को लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया और पैदल ही घूमना पसंद किया।घूम घूम कर एक एक पौधौं की जानकारी लेते रहे, कई सवालों के जवाब के लिए मुझे फिर- फिर से फोन किया गया , आज की तरह तब भी कनेक्टिविटी की समस्या थी, बहरहाल किसी तरह बातें हो पाई। उनकी जिग्यासा अदभुत थी, अश्वगंधा, मूसली की जड़ों के गुणों के बारे बहुत कुछ वो पहले से ही जानते थे। वो उन पौधों की जड़ों को देखना चाहते थे, सो उन्हें खोदकर ,उन्हें दिखाया गया, इनकी बाज़ार में संभावित कीमत के बारे में जानकर बड़े खुश हुए, और कहा ओह!! सो यंगमेन ,यू आर ग्रोइंग गोल्ड हिअर । अमेजिंग । और जब चलने लगे , तो कुछ दूर चलकर वापस लौटे, जिन औषधीय पौधों की जड़ें हमने उन्हें खोदकर दिखाई थी , उनकी ओर इशारा करके उन्हें दोबारा भलीभाँति मि्टटी में रोपने को कहा । वैसा ही किया गया ।
ऐसे थे हमारे कलाम,, एक एक पौधे की तकलीफ की चिंता थी उन्हें। चलते चलते उन्होंने एक "हर्बल गार्डन" बनाने की सलाह दी, जहाँ एक ही जगह पर सारी जड़ी बूटियों की जानकारी लोग ले सकें । कालांतर में जब राष्ट्रपतिभवन में हर्बल गार्डन बनाने के निर्णय लिया गया , तब मुझे उनका पहला भ्रमण याद आया था। और जब वे राष्ट्रपति बने तो, रविशंकर विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में पधारे, तो मुझे भी रायपुर बुलवाया, उन दिनों हम कई तरह की समस्याओं से घिरे थे, और अच्छी खबरों के लिए तरस रहे थे। मैं, सपत्नीक , और, संपदा की अध्यक्ष जसमती नेताम के साथ बस्तर से तुरंत रायपुर के लिये चल पड़े, परन्तु भरसक कोशिश कर के भी हम दीक्षान्त समारोह में समय पर नहीं पहुंच पाये, अन्ततः जब उनके ठहरने के स्थान छग के राजभवन पहुंचा तो पता चला कि महामहिम तो वापसी के लिए एअरपोर्ट की ओर प्रस्थान कर गये हैं।
हम निराश बस्तर वापसी की तैयारी करने लगे, इस बीच राजभवन के अधिकारियों ने हमारे राजभवन तक पहुंचने की औपचारिक सूचना महामहिम को दे दी, महामहिम के दिल्ली उड़ने का समय हो चला था, पर उन्होंने राजभवन के अधिकारियों को बस्तर के इस किसान को तुरन्त एयरपोर्ट पर भेजने को कहा। वहाँ उपस्थित छत्तीसगढ़ के मेरे किसी शुभचिंतक ने महामहिम का ग्यानवर्धन करने की चेष्टा करते हुए ,यह बताने की कोशिश की कि साहब वहाँ बस्तर में इनके द्वारा एैसा कुछ खास या महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया जा रहा है, कि, आप इनके लिए अपने दिल्ली के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को स्थगित करें या आगे बढ़ायें, एक अन्य उत्साही शुभचिंतक ने आगे बढ़कर घोषणा ही कर डाली कि, वे तो स्वयं कोन्डागांव के हर्बल फार्म का भ्रमण भी कर आए हैं, पर वहाँ खर- पतवार और विभिन्न प्रकार के जंगली पौधों के अलावा उन्हे कुछ भी देखने को नहीं मिला। महामहिम ने सबको गौर से देखा और पूछा, आप में से किसी ने इस किसान का "डीआरडीओ" के रास्ते पर पड़ने वाला बस्तर का हर्बल फार्म देखा है। सब चुप, मानो एकबारगी सभी को साँप सूंघ गया हो । फिर अपनी आदत के अनुरूप वे बच्चों की भाँति मुस्कराए और सहजता से बोले , मैंने देखा है , उस किसान का काम !! और उसका अपने काम के प्रति समर्पण,,अगर वो आ रहा है तो हम उसका इन्तजार अवश्य करेंगे.
उन्होंने ठहर कर कहा, ध्यान रखें, मीटिंगे इन्तजार कर सकती हैं, पर किसान और खेती को कभी इंतजार न कराएँ। मैं सुरक्षा चक्र के कई घेरे पार कर अंततः उन तक पहुँचा, तत्कालीन पुलिस के उच्चाधिकारी श्री सन्त कुमार पासवान जी मुझे पहचानते थे, उन्होंने आगे बढ़कर मदद् की , वरना शुभचिंतकों ने तो इस मुलाकात को टालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । बहरहाल महामहिम से मिलना,मेरे जीवन का अदभुत अनुभव था, हमने एयरपोर्ट के वीआइपी लाउंज में जैसे ही प्रवेश द्वार पार कर अन्दर गये , महामहिम को सोफे पर कुछ पढ़ते पाया । मेरे साथ श्रीमती को देखते ही , एक महिला के सम्मान में महामहिम ने स्वयं खड़े होकर स्वागत किया, और एक पल में हम सब का दिल जीत लिया , तथा महिलाओं के सम्मान का पाठ भी सबको पढ़ा दिया । शिप्रा से घर, बच्चों से लेकर खेत तक का हालचाल पूछकर, मेरी ओर मुखातिब हुए, मैं लगभग निशब्द था ।
पर एक बार बातचीत जो चालू हुई, फिर पाँच मिनट की तयशुदा मुलाकात में आधे घंटे कब निकल गये, हमें पता ही नहीं चला । मेडिसिनल प्लान्टस , औषधीय पौधों के बारे में उनका ग्यान विलक्षण था और,उससे भी अदभुत थी उनकी औषधीय पौधों के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा । भारत में विलुप्त हो रही औषधीय पौधों की प्रजातियों को लेकर वे बहुत चिंतित थे, हम दोनों का इस मुलाकात में मन नहीं भरा था, कम से कम तीन बार उनके निजी स्टाफ ने विनम्रतापूर्वक उन्हें आगे के कार्यक्रम के बारे में अवगत कराना चाहा,अन्ततः मुलाकात अनौपचारिक ढंग से खत्म हुई,,और बेमन से हम सभी अलग अलग रास्ते की ओर बढ़ चले , महामहिम हवाईपट्टी की ओर के दरवाजे की तरफ और हम लोग खुशी और दुख का मिलाजुला एहसास, तथा सपने के सच होने का एहसास लिए एअरपोर्ट के बाहर जाने के रास्ते पर,,,, पर जाते जाते अचानक ठिठके महामहिम, मुझे इशारे से अपनी ओर बुलाया , मैं लपक कर उनके पास पहुंचा , उन्होंने सदा की तरह धीमे से कहा, मैं तुम्हें और तुम्हारे साथी किसानों को राष्ट्रपति भवन बुलाऊँगा ,,,और उन्होंने अपना वादा पूरा किया । हम किसानों का एक दल दिल्ली गया,हम सब ११ साथी राष्ट्रपति भवन गये,महामहिम से मिले,। यह एक लगभग एक पहर की लंबी मुलाकात हुई।राष्ट्रपति भवन के हर्बल गार्डन का भ्रमण और महामहिम के साथ स्वल्पाहार , कुल मिलाकर एक और सपने के सच होने का दिव्य अवसर । इस विलक्षण मुलाकात का विस्तृत संस्मरण अगले बार ,, कि कैसे उन्होंने हमें औषधीय कृषक से औषधीय निर्यातक बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बस्तर के इस अकिंचन पत्थर को छूकर, अपनी जादुई प्रेरक शक्ति से "सोना" ही बना दिया।
जब हमें २००७ में जैविक बनौषधि उत्पादन एवं निर्यात के लिए देश का " सर्वश्रेष्ठ निर्यातक अवार्ड " प्रदान किया गया, तो हमने उसे "कलाम " साहब से हुई हमारी पहली मुलाकात के नाम किया था, क्यों कि अगर हमे " कलाम " न मिलते, तो शायद मैं यहाँ न होता। सलाम "कलाम साहब,, शाश्वत हैं आप और आपके विचार,आप कभी मर नहीं सकते, हमारे दिलों में धड़कते हैं आप ,, इसलिए आप को शाश्वत प्रणाम।
डॅा राजाराम त्रिपाठी
मां दन्तेश्वरी हर्बल समूह,
कोन्डागांव बस्तर छत्तीसगढ़
४९४२२६
फोन:०७७८६-२४२५०६
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