6.8.15

तारिक खोसा ने दिखाया नया रास्ता

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
पाकिस्तान के संघीय जांच ब्यूरो के पूर्व महानिदेशक (2009) तारिक खोसा ने पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ में एक लेख लिखकर तहलका मचा दिया है। उन्हें मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की जांच का काम सौंपा गया था। उनका कहना है कि मुंबई-हमले की सारी योजना कराची में बनी थी। उसे किसने और कैसे अंजाम दिया, उसके लिए पैसा और हथियार कहां से आए, मुंबई तक बोट कैसे पहुंचा, यह सब अच्छी तरह पता चल गया था। उन्होंने अपने लेख में सात तर्क दिए हैं, जिनके आधार पर उक्त बात सही सिद्ध की गई है। उन्होंने यह भी कहा है कि पाकिस्तान को अपनी गल्ती स्वीकार करनी चाहिए और संकल्प करना चाहिए कि उसकी ज़मीन से इस तरह की आतंकवादी गतिविधियां बिल्कुल बंद हो जाएं। उन्होंने अपने लेख में यह भी लिख दिया है कि समझौता एक्सप्रेस के अपराधियों और बलूच बगावत के बारे में भी भारत अपनी भूमिका को स्पष्ट करे।



मैं समझता हूं कि तारिक खोसा एक पाकिस्तानी की तरह नहीं बोल रहे हैं। वे एक सच्चे दक्षिण एशियाई की हैसियत से बोल रहे हैं। उन्होंने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। वे हमारे दोनों देशों के बौने नेताओं के सामने भीमकाय वीरपुरुष की तरह लग रहे हैं, जैसे लिलिपुटों के आगे गलीवर लगता था। खोसा ने बड़े पते की बात कही है। पाकिस्तान अपना अपराध स्वीकार क्यों नहीं करता? अपने अपराध की स्वीकृति का अर्थ है- अपने मन की शुद्धि! जब तक दुश्मनी थी, हमने सब कुछ किया। भला-बुरा, उल्टा-सुल्टा। अब हम दोस्ती की राह पर हैं। जो हुआ, उसे हम भुला देते हैं और आप भी उसे भूल जाइए। अब नया अध्याय शुरु करें। यदि सचमुच दोनों देश मित्रता और भाईचारे की डोर में बंधना चाहते हैं तो दोनों देशों को अपने किए हुए को खुले-आम स्वीकार करने में डरना क्यों चाहिए?

पाकिस्तान का दावा है कि उसके आतंकवादी खुदमुख्तार हैं। वे राज्याश्रित नहीं हैं। वे ‘नॉन-स्टेट एक्टर्स’ हैं। यदि ऐसा है, तब तो उनका गुनाह कुबूल करने में देरी क्यों? और यदि उन्हें सरकारी मदद और शै मिलती रही है तो उसे भी छिपाने की जरुरत क्या हैं? सभी सरकारें इस तरह के काम करती रही हैं। इस मामले में पाकिस्तान की सरकार अकेली नहीं है। लेकिन यह सब तभी हो सकता है जबकि पाकिस्तानी फौज, गुप्तचर एजेंसी, सरकार और संसद- सभी एकमत हों कि भारत से संबंध सुधारने हैं।

बिल्कुल यही बात भारत पर भी लागू होती है। यदि भारत सरकार ने बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान में बगावत भड़काई है और समझौता एक्सप्रेस में बम लगवाए हैं तो इसे खुले-आम स्वीकार कर लेना चाहिए। लेकिन यदि ये सारे काम गैर-सरकारी लोगों ने किए हैं तो उन्हें भी स्वीकार करने में क्या हर्ज है? वे भी ‘नॉन-स्टेट एक्टर्स’ थे। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इन दोनों मसलों पर भारत सरकार का दामन साफ है। पाकिस्तान इन मुद्दों को इसलिए उठा देता है कि वह खाली हाथ दिखाई नहीं पड़े। जो भी हो तारिक खोसा ने दोनों देशों को एक नया रास्ता दिखाया है।


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