12.8.15

मोदी विरोध के बहाने देश को नुकसान पहुँचा रहे हैं लालू-नीतीश-कांग्रेस

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,नाना पाटेकर ने यशवंत फिल्म में एक डॉयलॉग कहा था कि गिरना है तो झरने की तरह गिरो लेकिन हमारे कुछ राजनेता कुत्ते की तरह गिर गए हैं। इनलोगों की प्राथमिकता सूची में देशहित कहीं है ही नहीं। वे दिखाने के लिए तो विरोध कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी का लेकिन वास्तविकता यह है कि वे देश को भी नुकसान पहुँचाना चाहते हैं और पहुँचा भी रहे हैं। क्या लालू-नीतीश और कांग्रेस को पता नहीं है कि संसद के ठप्प होने से सरकार अर्थव्यवस्था को गति देनेवाले दोनों महत्वपूर्ण विधेयकों जीएसटी बिल और भूमि अधिग्रहण बिल को पास नहीं करवा पाएगी और जब तक ये दोनों विधेयक पारित नहीं होते हैं देश में देसी-विदेशी निवेश को द्रुत-गति मिलना असंभव है? निश्चित रूप से लालू-नीतीश और कांग्रेस को यह पता है। तो फिर संसद को ठप्प करने का क्या मतलब है? क्या इसका यह मतलब नहीं है कि ये नेता भारत को बर्बाद कर देना चाहते हैं। इनको यह भी पता है कि पीएम मोदी जो रोजगार-निर्माण और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जाने जाते हैं संसद को ठप्प कर देने से ऐसा नहीं कर पाएंगे और तब उन पर इस बाबत आरोप लगाना आसान हो जाएगा कि कहाँ कि 10 प्रतिशत की विकास दर और कहाँ हैं रोजगार?
मित्रों,दुर्भाग्यवश उसी फिल्म में नाना पाटेकर ने एक और डॉयलॉग बोला था कि एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है। क्या मुट्ठी-भर राजद,जदयू और कांग्रेस के सदस्यों ने अपनी मनमानी और देशविरोध नीति से पूरे भारत को हिजड़ा नहीं बना दिया है? आखिर कब तक हम आँखें बंद कर देखते रहेंगे कि चंद लोगों ने किस तरह भारत के विकास के पहिए को अवरूद्ध करके रख दिया है? एक अकेले जीएसटी के आने से भारत की जीडीपी में 2 प्रतिशत का उछाल आ जाएगा। आखिर कब तक हम इन भारतविरोधी पार्टियों की मनमानी को बर्दाश्त करते रहेंगे? लालू-नीतीश को अगर बिहार और बिहारियों को अमीर बनाना है तो उनको किसकी तरफ होना चाहिए? उनलोगों की तरफ जिनकी राजनीति आजादी के बाद से ही गरीबों को गरीब बनाकर रखने से चलती है या फिर उनलोगों के पाले में जो सबको अमीर बनाना चाहते हैं? कल तो इन विपक्षी दलों ने हर सीमा को पार कर लिया। अब इनको मनाने का समय बीत चुका है। अगर ये लोग चाहते हैं कि प्रत्येक विधेयक को संयुक्त सत्र बुलाकर ही पास कराया जाए तो मोदी-सरकार बिना ज्यादा सोंच-विचार किए ऐसा भी करना चाहिए और ऐसे प्रत्येक कदम उठाने चाहिए जिससे देश के आर्थिक विकास को नई गति मिले क्योंकि देश संसदीय परंपराओं से भी ऊपर है,सबसे ऊपर है।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

2 comments:

  1. आपसे शत प्रतिशत सहमत। सच तो ये है कि अचानक ऐसे लोगों को लोकतंत्र की याद आ रही है जिनके लिए प्रधानमंत्री जैसा पद भी कठपुतली की तरह था। परदे के पीछे से सञ्चालन किसी और के द्वारा हो रहा था। कमाल तो ये है कि जनता को मूर्ख समझकर भटकाने का काम कर रहे हैं। लगातार "जुमले, १५ करोड़, विदेश यात्राएँ, पूंजीपतियों की सरकार, झूठे वायदे" जैसे बयानों से हमला कर उन्हें लगता है जनता उन्हें फिर से ले आएगी लेकिन वो भूल जाते हैं - जनता पहले जैसी इतनी सीधी भी नहीं रही जो उनके शासन काल में बिजली पानी की समस्या, अक्सर टूटी फूटी सड़कें, ख़राब कानून व्यवस्था, फेल होती विदेश नीति, समाज में विभिन्न धर्मों में भेदभाव जैसी बुराइओं को भूल जाएगी।

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  2. अच्छी टिप्पणी के लिए धन्यवाद मित्र। आपकी टिप्पणी ने मेरी मेहनत को सार्थक कर दिया।

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