शासन के प्रतिबन्ध व्यर्थ है, और व्यर्थ है सब धारायें ,
उन्हें तोङकर जनता के स्वर गुज रही हैं सभी दिशाएँ ।
नारी कंण्ठ पुकार रही है, उनके उपर हो रहे जुर्म मिटाओ ,
जनता दाँत पिसती जाती, बंद हथेली उसकी खुल जाती।
पर नेता के शासन में, देश की जनता चुप बैठकर आज तमाशा देखती जाती ।
एक हाथ जब उठता था, किसी देश भक्त नेता का, हाथ हजारो उठ जाते थे ,
पर जब आज का नेता अपना हाथ उठाता है ,जनता के दुसरे हाथ में जूता-चप्पल उठ जाता है ।
एक बार यदी उठ जाती, मिलकर आवाज ईस धरा से आती ।
रख देती वह पीस भ्रश्टाचारी लोगो को, चटनी कर उसको खाती ।
उठ नहीं रही है आवाज ईस धरा से, मैं क्या समझूँ सबको सूँघ गया है साँप ।
आजाद देश की जनता हो गयी गुलाम, सरकारी कुत्ते जनता के चुने नुमाईन्दे हो गये है साँप ।
सोचो, क्यो लोग अकारण, आज गुलामी को अपनी ही मजबुरी बताएँ ।
क्यों न हिन्दूस्तान की जनता मिलकर करे विरोध, सब अपना रोष जताएँ ।
क्या हो गया है, आज के ईस भारत को, यह भी चाहिए,वह भी चाहिए,सब कुछ चाहिए ।
भुजा(हाथ)उठा कर नेता जनता से बोले, हमें सिर्फ़ वोट चाहिए वोट चाहिए ।
आज देश की जनता की उठी भुजाएँ बोली, हमें सिर्फ़ नोट चाहिए नोट चाहिए ।
पर सोचो ऎसे में इस देश क्या होगा, वह दिन दूर नहीं जब ब्लैक मनी सबकी जेब में होगा ।
लाख तुम धर्मनिती की बाते कह डालो, फिर भी ब्लैक मनी कमाऊँगा ही ।
और देश के लिए कुछ कर न सका तो क्या, अपनी सात पुश्ते बिठा कर खिलाऊँगा ही ।
भरा कहाँ है, घडा पाप का उसको और भरना है, हर हिन्दूस्तानी को गुलाम बनाकर रखना है ।
क्यों अपनी पुण्य-भूमि को अपने ही पापी दल करें कलंकित ?
क्यों सच का दमन करें ये भोली-भाली जनता को करें आतंकित ?
क्यों न बम से जला देते,उन भ्रश्टाचारी लोगों को, निर्दोष को बनाते अपना निशाना ।
एक बार तो हमको दम दिखलाना ही होगा, अब नहीं चलेगा कोई बहाना ।
क्या हो गया है ईस आजाद देश को, भ्रष्टाचार नंगा नाच रहा है ।
भारत देश की जनता कि यह कैसी खामोशी, सब कुछ भौचक्का देख रही है ।
मैंने तो संकल्प कर लिया है, मरना तो है ही फ़िर डर-डर कर क्यों जिना ।
ब्यर्थ है अपनो का मोह, छोड प्राण के पंछी सभी को एक दिन है जाना ।
भूल न पायें जिसको सदियाँ, ऎसी क्रान्ती ज्योंति लेखनी जनता तक पहूँचाऊगा ।
अगर बेमौत मर गया तो, इस शासन की जड़ भी हिल जायगी।
मेरी क्रान्ती ज्योंति से आजाद हिन्दूस्तान के जीवन की फ़ुलवारी-सी खिल जायेगी ।
यह मिट्टी जो अमर शहिदों की, अपबित्र हो गयीं है भ्र्ष्टाचारी लोगों से ।
उसकी आजादी के लिए ,इस पर प्राण निछावर करते मन न तनिक हिचके ।
यह डर निकाल फेंको तुम अपने जीवन से, नहीं अधिकार और किसी का मेरे जीवन पर ।
भुल कर भी मत देना अधिकार अपने जीवन के, जोर नहीं और किसी का मेरे जीवन पर ।
धिक्कार है ऎसे जीवन को जहाँ ,आजादी का कोई मोल नहीं।
चिकनी-चुपडी. बातों से ईस देश का, अब उध्द्दार नहीं।
ईन्सानों के दिलों में अब कोई देश प्रेंम का मोंल नहीं।
जब से हिन्दूस्तान की आजादी को, बेईमानों ने अपना आशियाना बनाया ।
तब से अब तक एक भी माँई का लाल, लाल बहादुर, नेता सुभाष नहीं आया।
भाषण से ही जनता को बेवकूफ़ बनाया जाता, वहीं दूसरे दीन मीडिया और प्रेस में दिखाया जाता।
Jay hind Yadav
yadav_jayhind@yahoo.com
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