7.8.15

याकूब अमर है ।

30 जुलाई की सुबह खबर आई कि याकूब मेनन को फांसी हो गई है और उसकी लाश पोस्टमार्टटम के बाद उसके परिवार वालों को दे दी गई । लेकिन क्या सचमुच याकूब मर गया है ? क्योंकि याकूब तो कभी अकेला था ही नही । इस याकूब के साथ और भी कई याकूब थे । एक याकूब को तो उसके फर्जी नाम और  पासपोर्ट के बाद भी खुफिया एजेंसी पकड लाई लेकिन जो याकूब पकडाया वो तो केवल एक था । इसके बाद देश ने देखा  एक साथ 40 और याकूबों को  जो अलग अलग नामों और चेहरों  के साथ अपने शरीर के ही एक हिस्से याकूब को बचाने की लिए भागदौड कर रहे थे । फिर देखा ऐसे ही 12 और याकूबों को जो आधी रात को देश की सबसे बडी अदालत को रात मे ही उठा कर बैठा दिये और तब तक अपने शरीर के एक अंग को बचाने का प्रयास करते रहे जब तक कि उसके नष्ट होने की खबर नही मिली । इसके बाद फिर से देश ने देखा दुसरे दिन देश के महानायक स्व. अब्दुल कलाम की खबर को  एक खलनायक याकूब मेमन के जनाजे तले दबते हुए ।
                                                                    यदि अपने प्राचीन कथाओं पर यकिं करें तो इस याकूब का असली नाम  रक्तबीज है जिसके गिरे हर खून के कतरे से एक नया याकूब तैय्यार हो रहा है । वह याकूब इतनी तेजी से जमीन पर गिर कर फैले कि समझ ही नही पडा कि वो याकूब कब अभिनेता बन गया या कब पत्रकार कब विधायक और कब सांसद या समाजसेवी , ये देश को पता ही नही चला । अब याकूब को मारना असंभव हो गया है क्योंकि उसकी जडें तो संसद मे भी है मिडिया मे भी और जनता के बीच मे भी ..
                                                    इसीलिये मैने यह निष्कर्ष निकाला है कि याकूब ना तो मरा है ना ही मर सकता है क्योंकि रक्तबीज को खत्म करना  अब किसी के वश मे नही है । विदेश मे बैठे ढेर याकूबों को मारने की बात करने   वाले लोग क्या ये बताएंगे कि जब अपने ही देश के याकूब को मारने पर सैकडों याकूब खडे हो सकते है तो दस पंद्रह याकूबों के लिए कितने याकूब आ जाएंगे ?
                                                    अब तो मान ही लो भाई याकूब अमर है ।

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