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कोचिंग सेंटर बने ईश्कबाजी का अड्डा

-अखिलेश दुबे-

सिवनी। शिक्षा सत्र शुरू होने के साथ ही मजनुओं का मौसम भी शुरू हो जाता है। इन दिनों मजनुओं को छात्राओं का पीछा व छेडख़ानी करते आसानी से देखा जा सकता है। इतना ही नहीं व्हीआईपी इलाकों में चलने वाले कोचिंग सेंटर भी मजनुओं के लिए जन्नत से कम नही हैं। हम बात कर रहे हैं नगर में बढ़ रही छेडख़ानी की घटनाओं पर। हम आपकों यहां बता दें कि नया शिक्षण सत्र शुरू हो चुका है। कुछ असामाजिक तत्व (मजनू) छात्राओं के स्कूल जाने वाले मार्ग पर बढिय़ा टीप-टॉप होकर खड़े हो जाते हैं और उनके ऊपर तंज कसने से भी बाज नहीं आते। कई बार तो यह देखा जाता है कि यह टपोरी किस्म के लड़के लड़कियों को राह चलते प्रपोच भी कर देते हैं और जब लड़की द्वारा इसका विरोध किया जाता है तो वह दूसरे दिन रास्ता ही बदल देते हैं।



ट्यूशन सेंटर भी बनने लगे ईश्कबाजी का अड्डा
प्रेमी छात्रों के लिए ट्यूशन ही मिलने के लिए सर्वोत्तम स्थान है, इस बहाने ट्यूशन चलाने वाले मास्टरों की दाल भी गल जाती है और प्रेमी युगलों का मिलन भी हो जाता है। नगर के बाबूजी नगर, एसपी बंगले के पास, बबरिया रोड, भैरोगंज, शुक्रवारी, मिलन चौक, जबलपुर रोड में भी ऐसे कई ट्यूशन संचालक है जो सिर्फ छात्रों से मोटी रकम  लेना ही जानते हैं। शिक्षकों को इस बात की खबर नहीं होती कि प्रेमी युगल उनके कोचिंग सेंटर को अपना मिलाप का अड्डा बन चुके हैं और यदि मालूम भी हो जाये तो उन्हें उससे क्या मतलब, उन्हें तो मतलब है सिर्फ ट्यूशन के नाम पर मोटी फीस लेने से।

मुंह में कपड़ा बांधकर होता है मिलाप
जागरूक नागरिकों ने हमें बताया कि छात्र-छात्राएं फलां-फलां गली में खड़े रहते हैं, जो ट्यूशन न जाकर सूनसान गलियों में घंटों प्रेमवार्ता करते रहते हैं। इन छात्रों के परिजनों को इस बात की खबर शायद ही हो कि उनके जिगर के टुकड़े पढ़ाई छोड़ ईश्कबाजी में मशगूल हैं...। अक्सर सुनसान गलियों में (एसपी बंगले के पीछे) प्रेमी युगलों की जोड़ी मुंह में कपड़ा बांधे घंटो बात करते रहते हैं ताकि उन्हें कोई पहचान न सके।

धनपिशाच ट्यूशन सेंटर खामोश
दिनों-दिन बढ़ रही छेडख़ानी व बलात्कार की घटनाएं वाकई चिंतनीय है लेकिन इसका समाधान भी है। नगर के धनपिशाच शिक्षक (ट्यूशन संचालक) यदि अपने छात्रों की सही निगरानी करें तो ऐसी घटनाएं कम ही होगी। ऐसे शिक्षकों को केवल मोटी फीस से ही मतलब होता है।

गांव से आने वालें ग्रामीणों को बरघाट विधायक का करना पड़ता है घंटो इंतेजार
डॉ. कलाम ने सही ही कहा है- 'सपना वो नहीं नहीं जो नींद में आये, बल्कि सपना वो है जिसे पूरा किये बिना नींद न आयेÓ। लेकिन बरघाट विधायक कमल मर्सकोले थोड़ा उल्टा ही चलते हैं। वे रात भर मंत्री बनने के सपनों में खोये रहते हैं और शायद इसी के चलते उनकी नींद दोपहर 12 बजे के बाद ही खुलती है। उनसे मिलने वाले ग्रामीण दोपहर तक उनका इंतेजार करते रहते हैं लेकिन विधायक जी सपनों में ही खोये रहते हैं। जब दूरस्थ ग्राम से आये ग्रामीणों द्वारा पूछा जाता है कि विधायक साहब कहां है तो उनके मातहत कर्मी सभी को रटा-रटाया जवाब देते हैं कि- साहब तो अभी किसी कार्यक्रम में गये हुए हैं, थोड़ी देर बाद आ जाना। अपना सारा काम-काज छोड़ ग्रामीण सुबह से अपनी परेशानी लेकर विधायक साहब के पास पहुंचते हैं लेकिन उन्हें घंटो इंतेजार करवाया जाता है। चूंकि ग्राम से आने वाले ग्रामीण भोले-भाले होते हैं और इसी का फायदा उठाते हुए विधायक साहब भी उन्हें घंटो इंतेजार करवाते हैं। अपने आपको जिले का व्हीआईपी विधायक समझने वाले कमल मर्सकोले शायद अब जनता की परेशानी न समझ रहे हों लेकिन जनता ने उन्हें खूब समझा था और विधायक चुना था लेकिन अब वे पूरी तरह से नेता बन चुके हैं। शायद विधायक जी अपना बीता हुआ कल भूल गये हैं कि वे भी किसी टपरे की चाय दुकान में बैठकर टाईमपास किया करते थे। अपनी तरह ही विधायक जी सबकों समझ रहे हैं। हम बता दें कि विधायक जी जनता के पास इतना फालतू समय नहीं है जो आपके दरबार में घंटो खड़ी रही। यदि जनता किसी को विधायक चढ़ाना जानती है तो उसे उतारना भी अच्छी तरह आता है।

मुखिया जी, नॉट रिचेबल विधायक को कवरेज में लाओ
नॉट रिचेबल विधायक के नाम से मशहूर हो चुके बरघाट विधायक हमेंशा कवरेज के बाहर ही रहते हैं। अपने आपको किसान पुत्र बताने वाले मुखिया शिवराज सिंह ऐसे नॉट रिचेबल विधायकों को क्या अपने मंत्रीमंडल में जगह देंगे या उन्हें स्वीच ऑफ (बाहर) कर देंगे...? यह तो समय की गर्त में है।

नशामुक्ति अभियान को ठेंगा दिखा रहे युवा अध्यक्ष
राष्ट्रचंडिका की कलम सच्चाई उगलने के लिए जानी जाती है। राष्ट्रचंडिका पर पहले भी सच्चाई को छुपाने का दबाव आ चुका है लेकिन हमारी कलम बिकाऊ नहीं है। थानों में झूठी शिकायत करने, डंपर से कुचलवाने और हमकों ब्लेकमेलर कहने वाले पहले अपने गिरेबां में झांक लें कि वे कितने पाक है। ब्राम्हण समाज एक पवित्र और सभ्य समाज कहलाता है लेकिन इस समाज में भी कुछेक ऐसे कलंक है जो समाज के सामने अपने आपको स्वच्छ छवि का साबित करने में लगे रहते हैं लेकिन उनका मन कोयले से भी काला है। बताते हैं कि ब्राम्हण समाज के युवा (प्रौढ़ हो चले)अध्यक्ष अजय मिश्रा इन दिनों शराब लॉबी में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। जबकि ब्राम्हण समाज का उद्देश्य नशामुक्ति व सुंस्कृत भारत का निर्माण करना है लेकिन जब इसके पदाधिकारी ही ऐसी ओछी हरकत करने लगे तो इसे कलंक ही कहना बेहतर होगा। पं. अजय की महात्वाकांक्षा को जो रातो रात 'धनपशुओंÓ में शामिल होने की कवायद में लगभग हर प्रकार के धंधो में टांग अड़ाए बैठे हैं। अब कुछ चुनिंदा व्यवसाय के क्षेत्र बचे हैं। कभी ये छोटे-मोटे स्कूल, छात्रावास बनाते थे, रोड बनाने लगे फिर भी मन नहीं माना तो पत्रकार बन बैठे लेकिन यहां भी उनकी दाल नहीं गली तो उन्होंने शराब लॉबी में पर्दापण करना ही उचित समझा। जिला ब्राम्हण समाज के जिलाध्यक्ष पंडित महेश प्रसाद तिवारी व ब्राम्हण समाज की सेवा के लिए तत्पर रहने वाले ओमप्रकाश तिवारी को भी ये नजर नहीं आ रहा है कि उनके समाज का ही युवा अध्यक्ष अजय मिश्रा गलत राह में चल बैठा है।  ब्राम्हण समाज में चर्चा यह भी है कि युवा अध्यक्ष के नये धंधे में इन दोनों ही (पदाधिकारी) की राशि लगी है। बहरहाल एक ओर जहां जगदगुरू शंकराचार्य नशामुक्ति अभियान चलाकर शराब से लोगों को दूर कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि जिला ब्राम्हण समाज के जिलाध्यक्ष एवं श्री तिवारी जी जगदगुरू शंकराचार्य के इस नशामुक्ति अभियान को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं। बताते हैं कि इनके चाटुकार राष्ट्रचंडिका के संपादक को कुत्ते की मौत मरने की बात कहते हैं। चाटुकार कहते हैं कि टुचपुंदिया पत्रकार 500 -1000 रूपए के लिए हमारे आका के आगे-पीछे गिड़गिड़ाते रहते हैं। चाटुकार तो यह भी कहते हैं कि मंडला के एक व्यक्ति को संपादक की सुपारी भी देने की भी चर्चा है।

सिवनी (मध्य प्रदेश) से अखिलेश दुबे की रिपोर्ट.

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