नई दिल्ली। फ़िलिस्तीन पर इज़रायली कब्जे़ और लगातार जारी नरसंहारक मुहिम के ख़िलाफ़ जारी फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध के प्रति भारतीय जन की एकजुटता दर्शाने के लिए नई दिल्ली के ग़ालिब संस्थान में चल रहा दो-दिवसीय कन्वेंशन रविवार देर रात को सम्पन्न हुआ। कन्वेंशन के दौरान प्रधानमंत्री की प्रस्तावित इज़रायल यात्रा को रद्द करने एवं भारत के कूटनीतिक, सैन्य एवं व्यापार संबन्धों को तोड़ने की माँग को लेकर एक हस्ताक्षर अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया। यह कन्वेंशन गाज़ा पर इज़रायली हमले की पहली बरसी के मौके पर आयोजित किया गया था जिसमें 502 बच्चों सहित 2200 से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे।
शनिवार एवं रविवार के दो सत्रों में 'जायनवाद और फिलिस्तीनी प्रतिरोध: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, चुनौतियां और संभावनाएं’ एवं ‘मध्य-पूर्व का नया साम्राज्यवादी खाका और फ़िलिस्तीनी मुक्ति का सवाल’ विषयों पर कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने इज़रायल की नस्लभेदी नीतियों एवं उसके द्वारा फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़े की कोशिशों की कठोरशब्दों में भर्त्सना की । कन्वेंशन में यह भी महसूस किया गया कि भारतीय सरकार ने फ़िलिस्तीनियों के लक्ष्य के साथ विश्वासघात किया है और वह अब जायनवादी राज्य की सबसे बड़ी समर्थक बन चुकी है जिसने सभी अन्तरराष्ट्रीयकानूनों को धता बातते हुए रखकर फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ अपना पागलपन भरा नरसंहारक अभियान जारी रखा है।
फ़िलिस्तीन में भारत के पूर्व राजदूत प्रो. ज़िकरूर रहमान, वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार मुरलीधरन, लेखिका पेग्गी मोहन, जेएनयू के प्रो. कमल मित्र चिनॉय, दिल्ली साइंस फ़ोरम के कार्यकर्ता एन. डी. जयप्रकाश, मुम्बई से आए फ़िलिस्तीन सॉलिडैरिटी कमेटी के फ़िरोज़ मिठीबोरवाला, कवि पंकज सिंह, नीलाभ अश्क तथा कात्यायनी, फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता नासिर बराक, कार्यकर्ताओं अभिनव सिंहा एवं आनन्द सिंह एवं कई अन्य लोगों ने फ़िलिस्तीन-इज़रायल विवाद के इतिहास एवं राजनीति के बारे में विस्तार से बातें की और कहा कि पश्चिम एशिया में तब तक अमन नहीं क़ायमहो सकता जब तक कि फ़िलिस्तीनियों को उनके अधिकार न मिलें और एक एकीकृत धर्मनिरपेक्ष फ़िलिस्तीनी राज्य का निर्माण न हो।
फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष से भारत के एतिहासिक संबन्धों का ज़िक्र करते हुए प्रो.रहमान ने कहा कि भारत की सरकार की इज़रायल से हालिया क़रीबी भारत के मूल्यों के ख़िलाफ़ है। उन्होंने क़ब्जे़ की परिस्थिति में जी रहे फ़िलिस्तीनियों की भयानक सूरते-हाल का ब्यौरा दिया और कहा कि अन्तत: फ़िलिस्तीनी लोग अपनी मुक्ति के संघर्ष में जीतेंगे और हम अभी से ही इज़रायल के ज़खीरे में दरारें देख सकते हैं।
सुकुमार मुरलीधरन ने कहा कि गाज़ा में पिछले साल की गई इज़रायली बमबारी तथाकथित आतंक के ख़िलाफ़ वैश्चिक युद्ध छेड़ने के बाद से चौथा खुलेआम सैन्य हमला था। कई विस्तृत तथ्यों के ज़रिये यह दिखाया कि अपराधी इज़रायली राज्य को अमेरिका की पूरी शह है और इराक़ युद्ध का एक लक्ष्य इराक़ को इज़रायलियों के लिए हथियाना था ताकि वे फ़िलिस्तीनियों को इराक़ की ज़मीन पर स्थानांतरित कर सकें और फ़िलिस्तीन की बची हुई ज़मीन को भी हड़प लें। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध की अमर कथा तमाम बाधाओं के बावजूद जारी और उन्होंने यह उम्मीद भी जाहिर की कि एक दिन यह विवाद सुलझ जाएगा।
लेखिका पेग्गी मोहन ने कहा कि हमें जायनवाद और यहूदी धर्म में ठीक उसी तरह से फ़र्क करना होगा जैसे कि हम हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म के बीच करते हैं। उन्होंने कहा कि परवर्ती पूँजीवाद एक खूंख्वार जानवर की शक्ल अख़्तियार कर चुका है और जायनवाद इस जानवर का सबसे आगे का डंक है। आज इज़रायल मध्य-पूर्व में अमेरिकी साम्राज्यवाद की एक चौकी है जिसके प्राकृतिक संसाधनों को यह जानवर लीले जा रहा है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनियों को प्रतिरोध हमें यह उम्मीद जगाता है कि लूट और शोषण पर टिकी मौजूदा विश्व व्यवस्था बदली जा सकती है।
फिरोज मिठीबोरवाला ने कहा कि खासकर पिछले वर्ष गाज़ा पर हुए बर्बर हमले के बाद से दुनियाभर में जनमत इज़रायल के खिलाफ़ हो चुका है और बहिष्कार, विनिवेश और प्रतिबंध के वैश्विक आंदोलन के कारण इज़रायल पर दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने अनेक तस्वीरों और आंकड़ों के जरिए यह भी दिखाया कि किस तरह इस्लामिक स्टेट (आईएस) को अमेरिका और इज़रायल से फंडिंग और समर्थन मिल रहा है।
'आह्वान' पत्रिका के संपादक अभिनव सिन्हा ने कहा कि साम्राज्यवादी ताकतों ने ज़ायनवादी परियोजना को इसलिए समर्थन दिया था क्योंकि मध्यपूर्व के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की उनकी मुहिम में फिलिस्तीन की धरती का रणनीतिक महत्व था और इज़रायल आज भी वहां साम्राज्यवाद के लठैत का काम कर रहा है। मध्यपूर्व आज साम्राज्यवादी अंतरविरोधों की एक गांठ बन चुका है जिसे अब राष्ट्रीय मुक्ति की परियोजना के ज़रिए नहीं बल्कि केवल मज़दूर क्रान्ति के द्वारा ही हल किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि फिलिस्तीनी समस्या के लिए दो-राज्यों का समाधान आज व्यावहारिक नहीं है और एकमात्र समाधान एक एकीकृत सेकुलर राज्य की स्थापना है जो केवल एक समाजवादी परियोजना के तहत ही यथार्थ में बदल सकता है।
प्रो. कमल मित्र चिनॉय ने कहा कि इज़रायल संयुक्त राष्ट्र के 77 प्रस्तावों का उल्लंघन कर चुका है और योजनाबद्ध ढंग से जनसंहार में लिप्त है लेकिन उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। उन्होंने कहा कि इज़रायल परोक्ष रूप से अमेरिका के माध्यम से पाकिस्तान को भी हथियार दे रहा है।
फिलिस्तीनी लोगों और भोपाल गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए लंबे समय से अभियान चला रहे एनडी जयप्रकाश ने पश्चिमी तट और गाज़ा पट्टी में इज़रायली कब्ज़े की असलियत के बारे में विस्तार से बताया जहां फिलिस्तीनी लोगों के मूलभूत नागरिक और मानवीय अधिकार भी इज़रायली कब्जावरों ने छीन लिये हैं।
प्रसिद्ध हिंदी कवियों पंकज सिंह, नीलाभ अश्क और कात्यायनी ने कहा कि शासकों ने भले ही पाला बइल लिया है लेकिन भारत की जनता अपने फिलिस्तीनी भाई-बहनों के साथ खड़ी है।
फिलिस्तीनी एक्टिविस्ट नासिर बराकात ने फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष में समर्थन के लिए भारतीय जनता को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मीडिया फिलिस्तीन के सवाल को गलत ढंग से मज़हबी संघर्ष के रूप में पेश करता है। फिलिस्तीनी लोग यहूदियों के खिलाफ नहीं हैं बल्कि वे अपनी धरती पर इज़रायली कब्ज़े के खिलाफ लड़ रहे हैं।
'फिलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन' के आनन्द सिंह ने कह कि ज़ायनवाद आज न सिर्फ अमेरिका बल्कि अरब दुनिया के शासकों के समर्थन से भी टिका हुआ है जो अपने देशों में जनविद्रोह की आशंका से घबराये हुए हैं। इन शासकों ने फिलिस्तीन की जनता के साथ बार-बार ग़द्दारी की है। भारत की सभी चुनावी पार्टियां भी फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष के साथ विश्वासघात कर चुकी हैं।
पहले दिन फिलिस्तीन पर केंद्रित कविता सत्र में पंकज सिंह, नीलाभ, कात्यायनी और कविता कृष्णपल्लवी ने फिलिस्तीन पर अपनी कविताएं पढ़ीं। इस मौके के लिए भेजी गई बद्री रैना की दो कविताओं और नित्यानंद गायेन की ताज़ा कविता का पाठ किया गया। अलीगढ़ से आये तंज़ील अहमद ने भी अपनी कविता पढ़़ी। नीलाभ, सत्यम, अभिनव, तपीश मैंदोला, शुजात अली और फ़ाइज़ ने महमूद दरवेश, समी अल-कासिम, मोइन बिसेसो, तौफ़ीक ज़य्याद तथा अन्य फिलिस्तीनी कवियों की कविताओं का पाठ किया। इस मौके पर प्रकाशित फिलिस्तीनी कविताओं के द्विभाषी संकलन 'लोहू और इस्पात से फूटता गुलाब' का लोकार्पण भी किया गया।
कन्वेंशन में दो डॉक्युमेंट्री फिल्मों का भी प्रदर्शन किया गया। 'टियर्स ऑफ गाज़ा' गाज़ा में हमलों के बीच जी रहे लोगों की त्रासदी का मार्मिक चित्रण करती है जबकि 'फाइव ब्रोकन कैमराज़' पश्चिमी तट में एक फिलिस्तीनी गांव के लोगों द्वारा अपने गांव के पास इज़रायल द्वारा एक विशाल बाड़ के प्रतिरोध को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।
विहान सांस्कृतिक मंच ने कुछ फिलिस्तीनी गीत और फिलिस्तीनी संघर्ष के समर्थन में कुछ गीत पेश किये। इस अवसर पर पेंटिंग्स, पोस्टर, कविता पोस्टर, कार्टून तथा कैरिकेचरों की प्रदर्शनी भी आयोजित क गई। बड़ी संख्या में छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और विभिन्न क्षेत्रों के नागरिकों ने कन्वेंशन में भागीदारी की।
(कविता कृष्णपल्लवी)
कृते, फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन
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