21.9.15

प्राकृतिक संतुलन के साथ हो विकास की बातें


20 सितम्बर 2015, वाराणसी : गंगा आह्वान, साझा संस्कृति मंच एवं गंगा रक्षा आन्दोलन के संयुक्त तत्वाधान में धर्मसंघ शिक्षा मण्डल के सभागार में आयोजित गंगा रक्षा हेतु 'भागीरथ प्रयास' राष्ट्रीय जन अभियान के दूसरे दिन गंगा के 'व्यथा-कथा' पर मुख्य वक्ता के रूप में मालवीय उद्यमिता सम्वर्धन केन्द्र (आई.आई.टी., बीएचयू) के समंवयक प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र ने कहा कि मानव जब उन्नति करने लगता है तो उसकी सोच बदल जाती है, हमें स्वार्थी न होकर प्रकृति के संतुलन के साथ विकास की बाते करनी चाहिये। नदीयों पर बांध बनने से संस्कृति, सभ्यता व जीवों का नुकसान हुआ। अगर किसी दिन ये बांध स्वतः नष्ट हो गये तो आस-पास के क्षेत्रों का मंजर बहुत दूखद होगा। बांधों से नदीयों के जल स्त्रोतों पर प्रभाव पड़ता है, अगर नदीयों में अविरलता चाहिये तो बड़े बांधों की स्थान पर छोटे-छोटे बांध बनाने चाहिये। साथ ही उन्होंने नदीयों के किनारे बसे लोगो से अपील की कि नदी किनारे पर पेड़-पौधे लगाकर प्रकृति की रक्षा के साथ स्वयं को भी बचा सकते है।



उत्तराखण्ड से आये स्वामी शिवानन्द जी महाराज ने कहा कि गंगा की स्वच्छ्ता के नाम पर सिर्फ आडम्बर हो रहे है। सरकार नें 80 हजार करोड़ रूपये की घोषणा गंगा के लिये की है, गंगा को साफ करने की बात करने वाले यह लोग पहले इसके जल का प्रयोग तो करके दिखाये। जिस गंगा ने प्रधानमंत्री को काशी बुलाया था, अगर वह अविरल-निर्मल नहीं हुई तो गंगा उनको माफ नहीं करेगी। गंगा दैवीय रूप से आज भी शसक्त और मोछदायिनी है। उन्होने सरकार से मांग की कि गंगा किनारे स्थित फैक्ट्रीयों को गंगा से पाँच किलोमिटर दूर ले जाया जाये और इस पाँच किलोमिटर क्षेत्र में आर्गेनिक खेती करवाई जाये, जिससे गंगा स्वतः स्वच्छ रहेगी।

इसी क्रम में डॉ. के. चन्द्रमौली ने बताया कि बांध व सूरंग बनाने से गंगा नदी को बहुत नुकसान हुआ है। सरकार ने कहा था कि इन बांधो से हम बिजली देंगे, बिजली के चक्कर में नदीयों को बांधकर पेयजल देना बन्द कर दिया। गंगा एक्शन प्लान बनने और राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद भी गंगा की हालत चिंताजनक है। इसे इतना दूषित कर दिया गया है कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार में गंगा का अस्तित्व खतरे में है। साथ ही उन्होनें गंगा के प्रदूषण के कारण व इसे दूर करने के उपाय बताते हुये गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये हिमालय क्षेत्र से ही पेड़-पौधे व वनस्पतियों के संरक्षण की बात कहीं।

प्रो. यू. के. चौधरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुये बताया कि गंगा एक शरीर की तरह है, इसके विभिन्न अंग है। अगर शरीर के किसी अंग का नुकसान होगा तो क्या यह सही से कार्य करेगा। हिमालय में गंगा के मस्तिष्क पर चोट किया जा रहा है, इसे रोकना होगा गंगा को बचाने के लिये। आज गंगा बीमार है, और जो गंगा के बारे में नही जानते वही इलाज करने का षणयंत्र रच रहे है।

आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे आई.आई.टी. (बीएचयू) के पूर्व निदेशक प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय ने कहा कि हमारा धर्म, संस्कृति, इतिहास, सभ्यता, देश गंगा से जुड़ा हुआ है। गंगा देश को जोड़ने वाली कड़ी है। आज गंगा के सहायक जलस्त्रोत कुण्डो-तलाबों को पाटकर अतिक्रमण किया जा रहा है। गंगा पर बन रहे बांधों व नहरो से इसके प्रवाह में व्यव्धान उत्पन्न हो रहा है। कुल अवजल का 25% भाग नदीयों में प्रत्यक्ष छोड़ा जा रहा है। इसके लिये वैज्ञानिक तरिके से कोई ठोस उपाय करने होंगे, जिससे कि इसे रोका जा सके। साथ ही उन्होंने आमजन से अपील किया कि जल की बर्बादी को रोककर, पेड़-पौधे लगाकर वह प्रकृति के संरक्षण का कार्य कर सकते है। इससे जलस्त्रोतों का विकास होगा और यह गंगा के अविरलता व निर्मलता में सहायक सिद्ध होगीं।

भोजनावकाश सत्र के बाद गंगा तटवाशी नागरिकों की समस्याओं और गंगा नदी से जुड़े सवाल पर सत्र में वीडीए के द्वारा 200 मीटर के अंदर निर्माण/ मरम्मत आदि पर प्रतिबंध के सवाल को उठाया गया। समय से भी पुराने शहर काशी में घर मकान सभी पुराने जर्जर स्थिति में है और उनसे घाट का जनजीवन और सौंदर्य भी जुड़ा हुआ है ,ऐसे में मरम्मत अादि से प्रतिबंध के फलस्वरूप स्थिति और बिगड़ेगी ही और उसके गिरने ढहने से नदी तट पर प्रदूषण बढ़ेगा और नदी तट की संस्कृति पर भी चोट पंहुचेगी। धार्मिक मूर्तियों को प्रदूषण का कारक मानकर विसर्जन पर प्रतिबंध लगाने को अपरिपक्व निर्णय कहा गया , मूर्तियों के निर्माण का मानक बनाने की मांग की गयी और पूजा संस्थाओं के उपर कड़ाई से इसका पालन करवाना सुनिश्चित करवाने को कहा गया।  घाट के नाविक समुदाय ने अपने रोजी रोटी पर आए दिन प्रशासनिक सरकारी हस्तक्षेप आदि पर प्रतिकार दर्ज कराया। एक अन्य वक्ता ने राष्ट्रिय नदी गंगा के साथ ही राष्ट्रिय जल जीव सुइंस ( गंगा डॉल्फ़िन )  संरक्षण की आवाज़ उठाई।  कछुआ सेंचुरी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने और असि - वरुणा  अतिक्रमण मुक्त एवं संरक्षित करने की आवाज़ सभागार से एकमत से उठाई गयी और हर हर महादेव के उद्घोष के साथ मुहर भी लगाई गयी।              

इसके पश्चात कार्यक्रम स्थल से रैली निकालकर अस्सी घाट तक नदी बचाओ पर्यावरण बचाओ आदि नारे लगाते हुए पंहुचे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गयी। कार्यक्रम के अंतर्गत अस्सी घाट पर प्रेरणा कला मंच द्वारा गंगा की दूर्दशा व समसामायिक महिला उत्पीड़न की समस्याओं को समवेत करते हुए नृत्य नाटिका 'गंगा और गांगी' का भावपूर्ण मंचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन मिता खिलनानी ने किया व धन्यवाद ज्ञापन कपिन्द्र तिवारी ने दिया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से वल्लभाचार्य पाण्डेय, आनंद प्रकाश तिवारी, मल्लिका भनोट, मीता खिलनानी, कपीन्द्र तिवारी शास्त्री, हेमंत ध्यानी, धनञ्जय त्रिपाठी, डॉ अवधेश दीक्षित ,दीनदयाल, जाग्रति रही, नन्दलाल फादर आनंद महेंद्र प्रदीप सिंह, डॉ राजेश श्रीवास्तव, चिंतामणि सेठ, रिंकू सहगल, रामानंद तिवारी, सजल श्रीवास्तव, सूरज, विनय सिंह  पियूष नविन मिश्रा वीरेंद्र निषाद आदि मौजूद रहे।


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