मित्रों जैसे पुलिस किसी भी राज्य की हो उसकी कार्य शैली एक जैसी होती है ठीक उसी तरह मालिक छोटा हो या बडा उसका चरित्र एक ही तरह का होता है । हर समाज के दो वर्ग होते हैं एक शोषक दूसरा शोषित यानि एक कमेरा दूसरा लुटेरा । दोनों के हित किसी भी कीमत पर एक नहीं हो सकते । मसलन शरीर के किसी भी अंग में जोंक चिपका है तो जोंक का हित हमारा खून चूसने में है तो हमारा हित जोंक के मरने में । दोनों का हित एकसाथ संभव नहीं है।
मजीठिया की लडाई में पहली बार अखबार के मालिकों ने मुंह की खाई है । अब तक गठित सारे आयोग की रिपोर्टों को रद्दी की ट़ोकरी में डाल देते थे । शायद पहली बार यह मामला कोर्ट में गया है या यूँ कहें कि इस स्टेज में आया है । कोर्ट का आदेश अखबार के कर्मचारियों के पक्ष में है । कोर्ट आदेश एकबार करती है जो कि कर चुकी है। अब वह अपने ही आदेश को दूबारा या तिबारा नहीं करेगी । वर्तमान में मामला अवमानना का है इसलिए मालिकों की फटी हुई है क्योंकि उनके सारे कानूनी दांव पेंच उल्टे पडे यानी कोर्ट ने उनकी सारी दलीलें सिरे से खारिज कर दी । अब कोर्ट को फैसला अवमानना के मामले पर करना है ऐसे में कर्मचारियों के हस्ताक्षर काम आने वाले नहीं हैं कि हमें मजीठिया नहीं चाहिए जो मिल रहा है वह काफी है। कोई के बाहर किया गया कोई भी समझौता फैसला आने के पहले तक ही मान्य होता है फैसला आने के बाद नहीं । कुछ मामलों में कोर्ट खुद भी सुलह समझौते का सलाह देती है लेकिन यह मामला इस दायरे में नहीं आता । आप सब खुद किसी वकील से हस्ताक्षर कराने की वैधता की हकीकत की मालुमात कर सकते हैं। मित्रों , मालिकानों की स्थिति उस पतंग बाज की तरह है जिसके हाथ में डोर का अंतिम सिरा है जिसे वह बडी मजबूती के साथ दांत भीचे पकडे हुए है ।
अरुण श्रीवास्तव
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