19.10.15

जागरूक फार्मासिस्टों ने अपने लाइसेंस पर चलने वाली पूंजीपतियों की फर्जी दुकानों को रद्द कराना शुरू कर दिया है


 विकास के लिए भारत का स्वस्थ होना जरूरी


स्वस्थ भारत अभियान को लेकर सरकारी दावे ढेर सारे किए जाते हैं पर जमीनी हकीकत हमको आपको सबको पता है. स्वास्थ्य को लेकर आज भी लोगों के बीच जागरूकता की कमी साफ तौर पर नजर आती है. देश को विकास दिखाया जाता है, विकास के मॉडल तले भरमाया जाता है, वहीं स्वास्थ्य के लिए बजट बढ़ाने की बजाय इसे कम कर दिया गया. स्वस्थ भारत की ओर सरकारों का क्या प्रयास रहा है, क्या योगदान रहा है, आज इस पर कुछ ज्यादा जानकारी के लिए  स्वस्थ भारत अभियान के राजकीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह से बातचीत हुई. आशुतोष सतत रूप से लोगों को जागरूक करने की कोशिशें कर रहे हैं.



पहला सवाल- स्वस्थ भारत अभियान के तहत आप क्या नया करना चाहते हैं..

जवाब- दरअसल भारत की सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या में आज भी बड़ी संख्या में लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं है. जिसका कारण ये है कि कभी इस दिशा में मजबूत प्रयास नहीं किए गए. बेसिक पढ़ाई लिखाई में भी इस विषय पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया गया. हम लोगों को मोरल सपोर्ट देकर स्वास्थ्य प्रति जिम्मेदार बनाना चाहते हैं.

दूसरा सवाल- अगर हम यूपी के लिहाज से इस अभियान की बात करें तो आप यूपी को 100 में से कितनी रेटिंग देंगे.

जवाब-  मैं चालीस मार्क्स दूंगा क्योंकि यूपी सरकार लोगों को टेबलेट देने का वादा करती है, लैपटॉप वितरण करती है. क्या इस तरह की लोकलुभावन योजनाओं से लोगों को कोई फायदा होगा. बच्चे अपना लैपटॉप बेचते पाए गए. अगर यही प्रयास स्वास्थ्य से जुड़ा होता तो लोगों को फायदा मिलता. बाकी  यूपी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में या कहें हाल ही में ऐम सेहत लाई है अगर इसे पहले ही कार्यान्वित करा दिया गया होता तो निश्चित ही लोगों को इसका लाभ मिलता. यूपी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. इस पर बुहत सारे कामों की जरूरत है. हां मैं ये भी कहूंगा कि लोकतंत्र का ये दुर्भाग्य है कि सरकार को सारी योजनाएं चुनावों से पहले ही याद आती हैं.

तीसरा सवाल- आप समाज के लिए इतना बेहतरीन काम कर रहे हैं, सरकार से आपको क्या सहयोग मिल रहा है.

जवाब- हमारे इस अभियान में सरकार द्वारा कोई सहयोग नहीं दिया जा रहा. हां अगर दिया जाता तो शायद हम इसे और व्यापक स्तर पर कर पाते. हम इस अभियान को अपने सिरे से पूरी तरह से सफल बनाने की भरसक कोशिशों में जुटे हुए हैं.

चौथा सवाल- जैसा कि आज आपने लखनऊ में कई फार्मासिस्टों से मुलाकात की तो मूलतया यह मीटिंग किसलिए थी.

जवाब- कहीं न कहीं आज दवाएं सीधे तौर पर बेचकर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है. कुछ फार्मासिस्ट भी अपना लाइसेंस रेंट पर देकर पैसा कमाते हैं. लेकिन असल मुनाफा तो पूंजीपतियों की जेब में जाता है. अब आप यूपी में धांधली को ही ले लीजिए कि यूपी में 22000 फार्मासिस्ट हैं जबकि 78000 रिटेल काउंटर हैं, इस कालाबाजारी में प्रशासनिक अमला भी ऊपर से नीचे की ओर जुड़ा है. हम फार्मासिस्टों को मोरल सपोर्ट दे रहे हैं ताकि फार्मासिस्टों को अपनी जिम्मेवारी का एहसास हो.इस पर सैंकड़ों की तादाद में फार्मासिस्टों ने  पूंजीपतियों की फर्जी दुकानें जो उनके लाइसेंस पर चल रहीं थी उस लाइसेंस के नाम पर चल रहीं सभी दुकानों को रद्द करवाना शुरू कर दिया है.

पांचवा सवाल- आपके स्वस्थ भारत अभियान से अभी तक समाज को, देश को क्या लाभ हुआ है.

जवाब- मैं आपको बता दूं कि 2005 में देश में एलोपैथिक दवाओं को सकल घरेलू व्यापार 36000 करोड़ का था. 2010 में यह 62,000 करोड़ का हो गया और 2015 में यह 70000 करोड़ रुपयों का हो गया. हमने 2010 में सीएमएमसी कैम्पेन की शुरूआत की. जिसके बाद दवाईयों की कीमत में 30 से 40 फीसदी की कटौती की गई. इन सबके इतर आप यदि 2010-15 में दवाईयों के व्यापार पर भी गौर करें तो आपको जानकर हैरानी होगी कि उपभोग उतना ही है लेकिन कीमतें कम हुई हैं जिसके कारण लोगों को काफी राहत मिली है,

तो ये थी आशुतोष जी के साथ आपके आत्मीय की हुई बातचीत. अब आपको बताता चलूं कि लोग इलाज के दौरान 72 फीसदी पैसा दवाईयों पर खर्च करते हैं, शेष खर्च उनकी जांच, डॉक्टर की फीस और वगैरह वगैरह में. वहीं भारत में तीन प्रतिशत लोग जो कि गरीबी रेखा के नीचे माने जाते हैं वे इलाज दवाईयों के महंगी होने के कारण नहीं करा पाते. बहरहाल सरकार को ऐसे अभियानों से जुड़कर सहयोग करते हुए पहल को आगे बढ़ाने में मदद करानी चाहिए. ताकि स्वस्थ रहे भारत क्योंकि तभी तो बनेगा एक खुशहाल इंडिया.

हिमांशु तिवारी 'आत्मीय'

08858250015

himanshujimmc19@gmail.com

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