कृष्णमोहन झा
देश के श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधि संगठन इंडियन फैडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट की स्थापना 28 अक्टूबर 1950 को देश के प्रख्यात पत्रकार एवं नेशनल हेराल्ड के संपादक चेलापती राव ने देश की राजधानी दिल्ली की जंतर मंतर पर की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आईएफडब्ल्यूजे को 100 रुपए का चेक प्रदान करते हुए संगठन पत्रकारों के हित में उत्कृष्ट कार्य करने की शुभकामनाएं दी थी। इन 65 वर्षों में इस संगठन ने एक ऐसे वटवृक्ष का रूप ले लिया है जिसकी शाखा संपूर्ण राष्ट्र के दुरस्थ अंचलों में पहुंचती है। फेडरेशन की सदस्य संख्या 30 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है।
इसके सदस्य 17 भाषाओं के 1260 समाचार पत्र पत्रिकाओं, संवाद समितियों तथा दूरदर्शन में पत्रकारिता से जुडे दायित्वों का सफल्ता पूर्वक निर्वहन कर रहे है। श्रमजीवी पत्रकारों के इस महासंघ में अपने कार्यक्षेत्र को केवल पत्रकारों के हित चिंतन तक ही सीमित नहीं रखा, अपितु पत्रकारिता शोघ, मानवाधिकार, आंदोलन, पर्यावरण संरक्षण एवं युद्ध विरोधी अभियानों में भी समय समय पर सक्रिय भूमिका का निर्वाहन कर यह साबित किया है कि समाज हित और राष्ट्र हित उसके लिए सर्वोपरि है। सन 1990 में जब पंजाब अलगाववादी हिंसा की आग में जल रहा था तब फेडरेशन ने गांधी जयंती के अवसर पर शांति मार्च का आयोजन किया था। इसी तरह आतंक पीड़ित जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक तथा कन्याकुमारी में एकता मार्च का आयोजन भी उल्लेखनीय कदम रहे। देश के प्रमुख शहरों अयोध्या, गुवाहाटी, चेन्नई, कटक, रामेश्वरम, मैसूर, कोलकाता, गोवा, माउंटआबु में फेडरेशन के जो सम्मेलन हुए उनमें लिए गए फैसले इसकी एक विशिष्ट छवि निर्माण में सफल हुई है।
कोलंबों में एशियाई पत्रकार यूनियनों के परिसंघ के अध्यक्ष पद पर आईएफडब्ल्यूजे के अध्यक्ष के विक्रम राव का निर्वाचन इस बात का परिचायक है कि आईएफडब्ल्यूजे के गतिशील नेतृत्व एवं सांगठिक क्षमता की ख्याति अब भारत की सीमाओं को पार कर चुकी है। समाचार पत्र कर्मियों के शीर्षस्थ संगठन नेशनल फाउंडेशन ऑफ न्यूज पेपर एम्प्लाईज और राष्ट्रीय संवाद समिति एवं समाचार पत्र कर्मियों के परिसंघ नेशनल फाउंडेशन ऑफ न्यूज पेपर एवं न्यूज एजेंसी एम्प्लाईज आर्गनाइजेशन ने आईएफडब्ल्यूजे की संबंद्धता प्राप्त की है। देश के पत्रकारों के कुशल नेतृत्व का सुफल है कि आज 47 राष्ट्रों की पत्रकार युनियनों की आईएफडब्ल्यूजे के पारस्परिक संबंद्ध हो चुके है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जिनेवा तथा यूनेसको के जनसंचार विकास के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की योजना में सक्रियता से योगदान दे रहा है।
मीडिया तथा श्रम संबंद्धित सभी शासकीय समितियों जैसे वेतन बोर्ड, प्रेस कौशिल, संवाददाता मान्यता की प्रेस सलाहकार परिषद तथा विदेश यात्रा शिष्ट मंडलों के लिए आईएफडब्ल्यूजे मान्य है। विगत 65 वर्षों में सतत संघर्ष द्वारा आईएफडब्ल्यूजे ने पत्रकारों के लिए कई श्रमिक लाभ हासिल किए है। जैसे 1956 में संसद द्वारा पारित सर्वप्रथम श्रमजीवी पत्रकार एक्ट जिसमें काम के घंटे, वेतन कानून आदि निर्धारित हुए। 1954 तथा 1980 में प्रेस आयोग की रचना करना, वेतन बोर्ड का गठन एवं प्रेस परिषद की स्थापना आईएफडब्ल्यूजे की विशेष उपलब्धि है।
फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव परमानंद पाण्डे के नेतृत्व में भारत की राजधानी दिल्ली के जतर मंतर पर अपनी स्थापना के 65वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है। इस स्थापना दिवस पर हम प्रेस एक्ट संशोधन की मांग कर रहे है, जिससे इलेक्ट्रानिक मीडिया और वेब मीडिया में कार्य कर रहे पत्रकार भी प्रेस एक्ट के दायरे में आ सके। हमारी सरकार से मांग है कि मजीठिया आयोग की सिफारिशों का लाभ देश के समस्त पत्रकारों को मिले। एक बार मैं इस स्थापना दिवस पर देशभर के तमाम उन पत्रकारों से अपील करता हूं कि जो इलेक्ट्रानिक, प्रिंट एवं वेब मीडिया में अहम भूमिका का निर्वहन कर रहे है वे देश के पुराने एवं प्रसिद्ध संगठन इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट से सीधे जुड़े। यह एकमात्र ऐसा संगठन है जो वर्षों से पत्रकारों के हितों की लड़ाई लड़ रहा है।
हमारे संगठन के राष्ट्रीय महासचिव परमानंद जी पाण्डे जो ख्यात पत्रकार के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित अधिवक्ता भी है के प्रयासों से मजीठिया आयोग की सिफारिश पत्रकारों के हित में लागू करने में सफलता मिल सकी है। उनके एक दशक से भी अधिक संघर्षों का प्रतिफल मजीठिया आयोग के वेतनमान के रूप में पत्रकारों को मिला है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया आयोग के संबंध में आदेश जारी करते हुए श्री परमानंद पाण्डे की भूरि भूरि प्रशंसा की। देश के ख्यात पत्रकारों का भी मानना है कि मजीठिया आयोग की सफलता में पाण्डे जी का महत्वपूर्ण योगदान है।
इतना ही नहीं मजीठिया आयोग की सिफारिशों को देश के मीडिया समूहों दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, ई नायडु जैसे संस्थानों में लागू कराने की लंबी लड़ाई राज्य सरकारों से श्री पाण्डे लड़ रहे है। इनके साथ उन समस्त मीडिया समूह में कार्य कर रहे पत्रकार भी आंदोलनरत है। आईएफडब्ल्यूजे ने हमेशा पत्रकारों के हित में अपनी आवाज बुलंद की है और आगे भी अनवरत यह क्रम चलता रहेगा। मैं इन सभी हुत्तात्माओं को श्रद्धांजलि देना चाहता हूं जिन्होंने आईएफडब्ल्यूजे रूपी मजबूत ईमारत की नींव रखी थी, साथ ही उन सभी वर्तमान साथियों को संगठन की स्थापना के 65वें वर्ष पूर्ण होने पर बधाई देता हूं।
लेखक कृष्णमोहन झा आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय सचिव हैं.
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