9.11.15

महंगाई की मार.... क्या यही हैं अच्छे दिन? जनसंगठनों का BHU गेट पर संयुक्त विरोध मार्च

इन दिनों रोजमर्रा की चीजों में महगाई दिनोंदिन बढ़ रही है.... अरहर दाल, प्याज, टमाटर से लेकर आटा तक के दाम आसमान छू रहे है, बहुत हुयी मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार का नारा देने वाली केंद्र की भाजपा सरकार हो या समाजवादी यूपी सरकार , दोनों इस जरुरी मुद्दे पर असफल दिखाई दे रहे है त्यौहारों के मौसम में रोटी दाल की थाली से भी वंचित होने औ भूखो पेट सोने के कगार पर पँहुचने से व्यथित होकर आज विभिन्न संगठनों के लोगों ने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय मुख्य द्वारा पर महगाई विरोधी मार्च निकाला, मार्च विवि सिंघद्वार से मंहगाई कम करो ! कालाबाजारी बंद करो ! दलालों से मुक्ति दिलाओ ! राशन व्यवस्था चुस्त ! गरीब विरोधी सरकार ! हाय ! हाय !! के नारों के साथ रविदास गेट लंका चौराहे तक गया और फिर पुनः सिंघद्वार पर वापस आकर सभा की शक्ल में तब्दील हो गया।




सभा में वक्ताओं ने कहा कि  नरेन्द्र मोदी का एक चुनावी वायदा था कि महंगाई कम करेंगे, किंतु हो उल्टा रहा है,  अरहर दाल का दाम चार माह में ही रु. 100 प्रति किलोग्राम से बढ़कर रु. 150-160 हो गया है, यानी डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ोतरी। भला भारत का गरीब इंसान जिसका भोजन उसकी दिहाड़ी पर निर्भर है कैसे अपने बच्चों को दाल खिला पाएगा जो प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। याद रखें कि भारत में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यानी जो कुपोषण का शिकार है वह अब भुखमरी का भी शिकार हो सकता है। आम इंसान यदि दाल छोड़ कर रोटी के साथ सिर्फ सब्जी खाना चाहे तो भी मुश्किल है। प्याज का दाम रु. 30-35 प्रति किलो से बढ़कर रु. 60, यानी दोगुना, हो गया है। रोटी के साथ प्याज खाना भी दूभर हो गया है। इसी तरह ज्यादातर सब्जियों के दाम भी करीब-करीब दोगुने हो गए हैं। ऐसा लगता है की सरकार ने अंततः गरीबी खत्म करने का अनोखा तरीका खोज ही निकाला  है की गरीब को ही खत्म कर दो!

इस क्रम में वक्ताओं ने चिंता जताई कि महंगाई की वजह से गरीब के लिए जीना कितना कठिन हो गया है यह कहीं बहस का मुद्दा ही नहीं है। बिहार चुनाव में भी इस पर चर्चा नही हुयी। आज किसान बेहाल है, उसको अपने उत्पाद की पूरी कीमत नहीं मिलती। सरकार की तरफ से जो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए वह दलालों के लगे होने के कारण नहीं मिलता। गर्मी में बेमौसम बरसात से फसल बरबाद हो गई। फिर समय से वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ा। सरकार ने किसानों को न तो फसल नुकसान होने का और न ही उन परिवारों को जिनके यहां किसी सदस्य ने आत्म हत्या कर ली ठीक से मुआवजा दिया। बीमा कम्पनियां तो कहीं नजर ही नहीं आईं। आखिर ये किसान का बीमा किस उद्देश्य से कराती हैं? अजीब विडम्बना है कि पैदा करने वाला तो कर्ज के बोझ में आत्म हत्या कर रहा है क्यों कि उसके उत्पाद का उसे ठीक से मूल्य नहीं मिल रहा और फिर भी उत्पाद का मूल्य बाजार में उपभोक्ता के लिए इतना महंगा कैसे? यह किसी से छिपा नहीं है कि व्यापारी वर्ग भाजपा का एक मजबूत समर्थक है। यानी अच्छे दिन आने के बाद मेहनत करने वाले की कीमत पर बिचैलियों की चांदी हो गई।

देश में कटरपंथी ताकतों द्वारा ऐ दिन अनर्गल साम्प्रदायिक प्रलाप उपरोक्त जरूरी मुद्दों से जनता को भटकने के लिए रचे जा रहे है ये साजिश है और हम छात्रों, नौजवानों, मजदूरों, किसानों, ठेले खोमचे वालों को सड़क पर उतर कर इसका विरोध करना ही होगा। विरोध मार्च में प्रमुख रूप से गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति, साझा संस्कृति मंच, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय उ प्र, भगत सिंघ छात्र मोर्चा ( BCM ), भारतीय किसान यूनियन, भारतीय राष्ट्रिय छात्र संगठन ( NSUI ) से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और विश्व विद्यालय के छात्र सम्मिलित रहे  प्रमुख रूप से चिंतामणि सेठ, धनञ्जय त्रिपाठी , उर्मिला विश्वकर्मा, सुरेश राठौड़,शैलेश, राम जी पाण्डेय, लक्ष्मण प्रसाद, महेंद्र, एकता, राजेश्वरी देवी, रवि शेखर,वागीश, दीनदयाल, सूरज, मनीष , बुद्धिराम आदि मौजूद रहे।  

धनञ्जय त्रिपाठी
साझा संस्कृति मँच
वाराणसी
7376848410, 9450857038

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