1.11.15

अखिलेश कैबिनेट में फेरबदल : गुणा-भाग में उलझा बड़ा बदलाव

अजय कुमार,लखनऊ

बदलाव सहज प्रक्रिया है।इसे न रोका जा सकता है और न ही इससे बचा जा सकता है। कुछ ऐसा ही बदलाव अखिलेश यादव की शख्सियत में भी दिखाई दे रहा है।यह बदलाव तब और भी सुर्ख हो गया जब युवा सीएम ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया।इस बदलाव से यह साफ हो गया कि बाहुबली डीपी यादव को सपा में आने से रोक कर अखिलेश ने अपनी मिस्टर क्लीन वाली जो छवि बनाई थी उसके बोझ को वह और ज्यादा नहीं ढोना चाहते हैं।इसी वजह से पवन पांडेय जैसे बाहुबली नेता उनके मंत्रिमंडल में शामिल हो गये और सीएमओ कांड के कारण चर्चा में आये विनोद पंडित का कद बढ़ा दिया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव करके एक बार फिर अपनी टीम को मजबूती प्रदान की है।संभवता अखिलेश सरकार का यह आखिरी बढ़ा बदलाव साबित होगा। इसी टीम के साथ समाजवादी 2017 को फतह करने निकलेंगे।अखिलेश ने अपने मंत्रिमडंल में 12 नये चेहरे शामिल किये गये तो उन मंत्रियों का कद बढ़ाया गया जिनके कामकाज से नेताजी और अखिलेश खुश थे।



अच्छा काम करने वालों को तरक्की मिली तो इस गुणा-भाग में आठ मंत्रियों की कुर्सी जाती रही।मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही मंथन का भी दौर शुरू हो गया है।मीडिया,राजनैतिक पंडितों और राजनैतिक दलों द्वारा अपने-अपने हिसाब से इस बदलाव का आकलन किया जा रहा है।किसी को यह बदलाव जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाये जाने का प्रयास लगता है।ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि विस्तार में पार्टी के प्रति वफादार और  ईमानदार नेताओं को महत्व मिला है।इसके उलट सच यह भी है कि इस बदलाव में कुछ और दागी-दबंग भी ‘सरकार’ बन गये हैं।मंत्रिमंडल विस्तार से एक संकते और साफ निकल कर आया कि अखिलेश यादव पार्टी के भीतर मुसलमानों की एक नई लीडरशीप भी तैयार करना चाहते हैं ताकि एक-दो मुस्लिम चेहरांे के सहारे सपा की नैया को आगे बढ़ाने की परम्परा को विराम दिया जा सके,जो अक्सर सपा के लिये घातक सिद्ध होती रही है।इसी के चलते खान साहब की नाराजगी की परवाह न करते हुए उनके विरोधी रियाज अहमद को लाल बत्ती मिल गई वहीं कमाल साहब को कैबिनेट का दर्जा प्राप्त हो गया। अखिलेश सरकार का विस्तार अमर छाया से भी अछूता नहीं रहा।अमर सिंह के साथ बगावत का झंडा लेकर घूमने वाले एक नेताजी को भी अमर के पुनःसपा के करीब आते ही लालबत्ती का सुख मिल गया।

सबसे हैरान करने वाला चयन सरदार जी का रहा,जिसके बारे में कहा जाता है कि वह ने तो किसी सदन के सदस्य हैं और न ही उसका यूपी से कभी कोई नाता ही नहीं रहा।मगर बताया यह भी जाता है कि वर्षो पूर्व ‘मिले मुलायम-कांशीराम,उड़ गये हवा में राम’ नारे को सरदार जी ने ही गढ़ा था।1996 में रामू वालिया मुलायम के साथ केन्द्र में मंत्री रह चुके हैं।मुलायम ने रामू को राज्यसभा में भी भिजवाया था। विस्तार में क्षत्रियों, ब्राहमणों, मुसलमानों,पिछड़ों और दलितों सब पर अखिलेश की नजर रही।दलितों को लुभाने के लिये बहराइच के बंशीधर बौद्ध को सरकार में जगह दी गई।बौद्ध कुछ समय पूर्व चर्चा में आये थे।वह आज भी एक झोपड़ी में रहकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं।ईमानदारी की इससे बड़ी मिसाल शायद ही कोई और मिल सकती है।बौद्ध की पहचान मायावती विरोधी नेता के रूप में की जाती है। वहीं वफादारी का इनाम बलवंत सिंह उफ रामू वालिया को मिला। भले ही वालिया यूपी के नहीं हैं लेकिन पुराने समाजवादी जरूर हैं।बुंदेलखंड इस बार भी ‘सूखा’ रहा।यहां से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया।

परिर्वतन से यह भी साफ हो गया कि बदलाव में मुलायम,अखिलेश और शिवपाल यादव की ही चली। कुछ चेहरे जिनके शपथ ग्रहण करने की बेहद उम्मीद थी,अंत समय में उनका नाम कहीं नहीं दिखाई दिया।इसमें मधु गुप्ता, सरोजनी अग्रवाल के अलावा सबसे खास नाम अशोक बाजपेयी का था।हरदोई से सियासी दुनिया में कदम रखने वाले अशोक वाजपेयी 2014 में लखनऊ से लोकसभा के प्रत्याशी थे,लेकिन ऐन मौके पर इनका टिकट काट कर युवा नेता अभिषेक मिश्रा को उतार दिया गया था।बताने वाले वाजपेयी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाने की वजह राज्यसभा सदस्य और हरदोई के ही नेता नरेश अग्रवाल को मानते हैं।वाजपेयी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलना और नरेश अग्रवाल के पुत्र नितिन अग्रवाल का अखिलेश सरकार में कद बढ़ना यह बताने के लिये काफी है कि अशोक वाजपेयी को लाल बत्ती देकर हरदोई में नई मुसीबत नहीं खड़ी करना चाहते हैं। दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है।अशोक वाजेपयी की जगह ब्राहमण चेहरा समझे जाने वाले पवन पांडेय को मंत्रिमंडल में जगह मिलना भले ही कुछ लोगों के गले नहीं उतरा हो,लेकिन अखिलेश, पवन पांडेय के सहारे अयोघ्या-फैजाबाद में अपनी जड़े मजबूत करना चाहते हैं। मित्रसेन यादव की मौत के बाद यहां एक खालीपन आ गया था। फायदे की बात की जाये तो अखिलेश मंत्रिमंडल में गाजीपुर से  चार नेता विजय मिश्रा,कैलाश नाथ,ओम प्रकाश और शादाब फातिमा मंत्री बन गये हैं।अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल होने वाली फातिमा दूसरी महिला नेत्री हैं।

बहरहाल,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल में बदलाव करके जाते हुए 2015 में एक नया रंग भर दिया।मंत्रिमंडल का विस्तार करते समय उन्होंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की कि सियासत और सत्ता के रंग ‘निराले’ होते हैं।यहां कुछ करो तो हलचल और न करों तो परेशानी। सोचो कुछ,होता कुछ और है।चुप रहों तो मुश्किल और मुंह खोलो तो आफत।कहो कुछ,मतलब उसका कुछ और निकाला जाता है।इमेज बनाने के चक्कर में डैमेज होती चली जाती है।गैरों से  क्या गिला, यहां अपने भी जख्म देने में पीछे नहीं रहते हैं।मौकापरस्ती तो सियासत की रग-रग में बसी है।इस बात को देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बेहतर कौन समझ सकता है।जब से अखिलेश ने सत्ता संभाली है,वह ऐसी तमाम बातों के भुक्तभोगी है।वह जब सबको साथ लेकर चलते हैं तो कहा जाता है कि ‘चाचाओं’ के आगे उनकी(अखिलेश) चलती ही नहीं है।सपा सुप्रीमों, पिता मुलायम उन्हें नसीहत देते हैं तो विरोधियों को यह समझने में देर नहीं लगती है कि पर्दे के पीछे से मुलायम सत्ता की बागडोर संभाले हुए हैं। सरकार को घेरने के लिये विरोधियों के पास अपने-अपने तर्क  हैं,जिनको काटना मुश्किल है।ताज्जुब है,अखिलेश मंत्रिमंडल में बदलाव हुआ,क्यों हुआ,यह बताने को कोई तैयार ही नहीं है।मीडिया से लेकर राजनैतिक पंडित तक हवा में तीर चला रहे हैं।आखिर उन्हें भी तो अपनी ‘दुकान’ चलानी है।

सबसे बड़ा सवाल तो सीएम अखिलेश पर ही उठाया जा रहा है जिनके पास गृह विभाग भी है और कानून व्यवस्था का मसला गृह विभाग से ही जुड़ा हुआ है।प्रदेश की जनता सपा राज में सबसे अधिक त्रस्त प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था से ही रहती  है।सबसे पहले तो अखिलेश को अपने आप आईना देखना चाहिए था।ऐसे लोगों की भी  लम्बी-चैड़ी लिस्ट है जिनका मानना है कि सीएम अखिलेश ने अपने मंत्रिमंडल के आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी के खेल में कुछ अच्छों को बुरा और कुछ बुरो को अच्छा साबित कर दिया।वर्ना प्रजापति जैसे विवादित मंत्री नही बचते और चेयरमैन तोताराम के बोगस वोटिंग कराने वाले वीडियों के वायरल होने के शक मे आलोक शाक्य को अपनी कुर्सी नहीं गंवाना पड़ती।कोई कहता है कि अखिलेश सरकार  2017 के लिये मेकओवर कर रही है।किसी को लगता है कि अब ऐसे कदम उठाने से सपा को कोई फायदा होने वाला नहीें हैं।उसकी स्थिति ‘एक तरफ कुआ और दूसरी तरफ खाई, निगलों तो अंधा,उगलो तो कोढ़ी जैसी है।इस सबसे इत्तर चर्चा इस बात की भी चल रही है कि आखिर ऐसे कौन से कारण थे जो इन मंत्रियों से इस्तीफा मांगने की बजाये उन्हें बर्खास्त करना जरूरी हो गया।आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी की नौबत आ गई लेकिन सरकार ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि इनको क्यो बर्खास्त किया गया।आखिर मतदाताओं को इस बात का अधिकार मिलना ही चाहिए कि उसे यह पता चले कि उसके द्वारा चुने गये नुमांइदे ने ऐसे क्या किया जो उसे बर्खास्त करने की नौबत आ गई।सवाल कई हैं,लेकिन राजनीति की दुनिया में जबाव देने की परम्परा ही नहीं रही है।कभी जबाव दिया भी जाता है तो उसे पूरी तरह से राजनीति की चासनी में लपेट दिया जाता है।कमोवेश यह स्थिति सत्तारूढ़ होने वाले तमाम दलों में देखी जाती रही है।

बात अखिलेश मंत्रिमंडल के फेरबदल की कि जाये तो इस बदलाव से सपा के चाल-चरित्र और चेहरे में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है।अब इतना समय नहीं बचा है कि जो बदलाव करीब पौने चार वर्षो में नहीं हो पाया वह बाकी बचे सवा साल में इस बदलाव से हो जायेंगा,जो नये मंत्री बनेंगे उनके पास काम करने का तो मौका बहुत कम रहेगा,लेकिन इस बदलाव के सहारे सपा जातीय गणित जरूर मजबूत करना चाहेगी।वहीं भाजपा इस बात से खुश है कि समाजवादी पार्टी नेतृत्व ही 2017 के विधान सभा चुनाव के लिये उसके पक्ष में माहौल बना रही है।अखिलेश ने अपने कुछ मंत्रियों को सिर्फ इसी लिये मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिखाया है क्योंकि यह मंत्री भाजपा नेताओं से करीबी बना रहे थे और चुनाव आते-आते यह सपा से नाता तोेड़कर भाजपा का दामन थाम सकते थे।ऐसे में यह चर्चा उठना लाजिमी है कि क्या अखिलेश के कद्दावर नेताओं और मंत्रियों को भी इस बात का भरोसा नहीं है कि 2017 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की वापसी होगी।कुल मिलाकर यह बदलाव नहीं 2017 के लिये बिसात बिछायी गई है।नये मंत्रियों में सबसे अधिक पांच पिछड़ा वर्ग से और दो -दो ठाकुर और दलित हैं।इसके अलावा एक सिख,एक मुस्लिम महिला,एक ब्राहमण को भी शपथ दिलाई गई।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमण्डल का छठां विस्तार किया।इसमें 12 नए चेहरे मंत्री बनाए गए हैं और नौ मंत्रियों का कद बढ़ाया गया। संभवता इस नई टीम के साथ ही अखिलेश 2017 के चुनावी जंग में उतरेंगे।

ये बने कैबिनेट मंत्री
अरविंद सिंह गोप, कमाल अख्तर,विनोद कुमार उर्फ,पण्डित सिंह, बलवंत सिंह रामू वालिया,साहब सिंह सैनी।

राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
रियाज अहमद, फरीद महमूद किदवई,मूलचंद चैहान,राम सकल गुर्जर, नितिन अग्रवाल,यासर शाह,मदन चैहान, शादाब फातिमा

राज्यमंत्री
राधे श्याम सिंह
शैलेन्द्र उर्फ ललई यादव
ओंकर सिंह यादव
तेज नारायण पाण्डेय उर्फ पवन पाण्डेय
सुधीर कुमार रावत
हेमराज वर्मा
लक्ष्मीकांत उर्फ पप्पू निषाद
बंशीधर बौद्ध
शपथ ग्रहण करने वाले नये विवादित मंत्री
1.पवन पांडेय( पूर्व में मंत्री रह चुके हैं,हटाये गये थे)
2. ललई यादव
3.शादाब फातिमा



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