उन्होंने आगे कहा कि समाज में व्याप्त मौलिक दिक्कतों और समस्याओं से आम जनता का ध्यान बताने के लिए प्राचीन 'परम्पराओं, रस्मोरिवाज और मन को विस्मित कर देनेवाली प्रक्रियाओं से बनी युगों पुरानी अंधश्रद्धाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसमे पैसा, श्रम के साथ साथ व्यक्ति एवं समाज की ऊर्जा लग रही है. आधुनिक समाज ऐसे मूल्यवान संसाधनों को बरबाद नहीं कर सकता। दरअसल अंधश्रद्धाएं इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि गरीब एवं वंचित लोग अपने हालात में यथावत बने रहें और उन्हें अपने विपन्न करनेवाले हालात से बाहर आने का मौका तक न मिले. उत्सवों पर करदाताओं का पैसा बरबाद करनेवाली, कुम्भमेला से लेकर मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों के रखरखाव और सुन्दरीकरण जैसे कार्यों के लिए पैसा व्यय करनेवाली सरकारों पर जनता द्वारा यह दबाव होना चाहिए कि वह पानी, उर्जा, कम्युनिकेशन, यातायात, स्वास्थ्यसेवा, प्राथमिक शिक्षा और अन्य कल्याणकारी एवं विकास सम्बन्धी गतिविधियों के लिए वह इस धनराशि का आवण्टन करें।
श्री गाताडे ने कहा कि विकास के वर्तमान दौर में हमने पर्यावरण के महत्व को बहुत हद तक नजर अंदाज कर दिया है जिसका खामियाजा भी हमे समय समय पर भुगतना पड़ रहा है. विकास की योजनाये बनाये समय उसके पर्यावरणीय और सामाजिक दुष्प्रभावों पर गंभीर चितन होना चाहिए. संगोष्ठी का विषय प्रवेश डा एस. पी. राय संचालन वल्लभाचार्य पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन देवराज जी ने किया. अंजली, डा आनंद प्रकाश तिवारी, सतीश सिंह, डा, त्रिभुवन सिन्हा, जागृति राही, संजय भट्टाचार्य, डा मुनीजा, कुमार विजय, अखिलेश सिंह, रवि शेखर, एकता, डा लेनिन रघुवंशी, डा राजेश श्रीवास्तव, संतोष कुमार, बिन्दु सिंह, प्रदीप सिंह, दिलीप दिली, लक्ष्मण, मेहदी बख्त शिव प्रसाद सिंह, अतुल सिंह आदि ने भी विचार रखे.
प्रेस विज्ञप्ति
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