6.11.15

चम्बल को न बदनाम करो ऐसे दोस्तो...

[ ताकि सनद रहे ]
 
@ डॉ राकेश पाठक
प्रधान संपादक , डेटलाइन इंडिया

बिहार में चुनाव आज ख़त्म हो जायेगा लेकिन हमारी राजनीति  पर कई बदनुमा दाग छोड़ जायेगा।बदजुबानी ,बदमिजाजी ,बदतमीजी का  इतिहास इस चुनाव ने  लिख डाला है। विडम्बना ये है कि देश के ''महामानव'' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी  दूसरों की देखा देखी कई पायदान नीचे  उतर आये।वे अकसर भूल जाते हैं  कि वे सिर्फ बीजेपी के नेता नहीं देश के प्रधानमंत्री हैं. उनके ''बोलने'' पर बहुत बात  चुकी है लेकिन चम्बल पर उनके फतवे की बात होना बाकी  है। दरअसल मोदी जी ने  पूर्णिया जिले के  हालात को कोसने के लिए चम्बल को निशाने पर ले लिया। आदतन अपनी रौ में कहते भये  कि चम्बल में डाकू लड़कियों को उठा ले जाते हैं और भी न जाने क्या क्या कह डाला। साहेब नही जानते कि उनके इस कड़वे बोल से चम्बल क्षेत्र को कितना नुकसान  हो गया है।दशकों से डाकुओं पर बनतीं रहीं दोयम दर्जे  की मुम्बईया फिल्मों ने जितना  नुक्सान नहीं किया, उससे ज्यादा देश के मुखिया के  बयान ने कर दिया।



पहली बात तो ये कि देश के मुखिया को इस तरह किसी क्षेत्र विशेष को अपराध का क्षेत्र बताना शोभा नहीं देता। दूसरी ये कि चम्बल जिस मध्य प्रदेश में है वहां  बारह साल से उनकी पार्टी की ही सरकार है जो  दावा करती रहती है कि दस्यु समस्या ख़त्म हो गयी है। उससे भी अधिक हैरान करने वाली बात है कि अभी मात्र डेढ़ साल पहले  मोदी जी चुनाव  प्रचार में चमबल घाटी की आन, बान, शान के कसीदे पढ़ रहे थे।  भूल गए कि  की तीनों [भिंड ,मुरैना, ग्वालियर ]लोकसभा सीटों पर उन्ही की पार्टी के सांसद हैं।अब जे तीनों  तौ कछु कहेंगे नईं काय सें कि जे तौ हस्तिनापुर के सिंघासन से बंधे हैं लेकिन हम चुप नईं रहेंगे।

प्रधानमंत्री जी , आपको नहीं मालूम होगा कि  भिण्ड , मुरैना ऐसे जिले हैं जो देश की सेनाओं और अर्द्ध सैनिक बलों को सबसे ज्यादा जवान देते हैं। सरहद पर और देश के भीतर भी सबसे ज्यादा बलिदान देने वालों में चम्बल घाटी के वीर जवानों की संख्या सबसे ज्यादा है। जी हाँ हज़ारों में। शांतिकाल में भी शायद ही कोई महीना जाता है जब एक न एक जवान तिरंगे में लिपट कर अपने गाँव  न आता हो। यकीन न हो तो देख आइये सैकड़ों गाँव में  शहीदों के चबूतरे बने हैं। ''विधवाओं का गाँव '' तो आपने सुना भी नहीं होगा लेकिन है भिंड जिले में। विधवाओं का इसलिए क्योंकि अधिकतर जवान लड़के अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए कर चुके हैं।  एक ही गाँव ,एक ही  घर के तीन  भाइयों को  ''अशोक चक्र'' मिलने की दूसरी मिसाल  देश भर में आज तक नहीं मिली । जी हाँ मुरैना के गांव चुरहला में डकैतों से लोहा लेने में शहीद हुए तीन भाइयों को  देश  का सर्वोच्च सम्मान "अशोक चक्र" मिला था।  लेकिन प्रधानमंत्री तो जानकारी के बजाये जुमले में यकीन रखते हैं सो  पूर्णिया को मिनी चम्बल बता दिया।आंकड़े  उठा कर देख लीजिये कुछ सैकड़ा डकैतों के  मुकाबले लाखों जी  लाखों जांबाजों की धरती को कलंकित नहीं  सकता।  वैसे यह भी बता दें कि दस्यु समस्या के इतिहास में लड़कियों को उठा ले जाने के किस्से सुने भी नहीं गए। जुल्मो सितम के खिलाफ बन्दूक उठा कर बीहड़ में कूदने वाले खुद को बाग़ी थे। उनके भी कुछ तो उसूल थे ही। फिर भी डकैतों को महिमामंडित करने करने की हर कोशिश गलत ही  है लेकिन उनके नाम पर  पूरे चम्बल को देश दुनिया  इस तरह बदनाम करने का हक़ भी किसी को  नहीं है। चाहे वो देश  का मुखिया ही क्यों न हो। आई ऑब्जेक्ट मिस्टर प्राइम मिनिस्टर !!!
जि बात हम चामिल बारेन कों बहुतई बुरी लग गई साब ! इत्ती बुरी लगी कि सही नईं जाय रई...!

और साहेब आपको मिसाल देना ही थी तो देश की राजधानी दिल्ली की देते जो आपके सीधे अधिकार में है. आपकी नाक के नीचे  अपराध से बजबजाती दिल्ली ज्यादा माकूल मिसाल होती। हम चम्बल घाटी के लोगों को आपकी इस एक जुमलेबाजी का खामियाजा कितना और कब तक भुगतना पड़ेगा ये आप भी नहीं सकते समझना तो दूर की बात है। साहेब भिण्ड के ही वरिष्ठ कवि धीरेन्द्र शुक्ल ने बरसों पहले  लिखा था सो आप भी सुन लीजिये --

हम भिण्ड के ज़रूर हैं पर हद में रहते हैं
बदले की आग लेके अपने मद में रहते हैं,
चम्बल को न बदनाम करो ऐसे दोस्तो
डाकू तो सभी देश की सं.… में रहते हैं।
   
सं.… के खाली स्थान को पाठक माई बाप खुद भर लेंगे।

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