राजे-रजवाड़े तो इतिहास के पन्नों में खुर्द-बुर्द हो गए, मगर नौकरशाहों के जलवे आज भी इन रजवाड़ों की तरह ही कायम हैं। इनमें सत्ता में बैठे राजनेताओं को भी शामिल किया जा सकता है, जिन्हें दिखावे के लिए जनप्रतिनिधि का किरदार भी किसी बेहतरीन फिल्म अभिनेता की तरह समय-समय निभाना पड़ता है। मध्यप्रदेश में चूंकि विपक्ष यानि कांग्रेस लगभग है ही नहीं, जिसका फायदा 12 सालों से भाजपा सत्ता सुख के रूप में भोग रही है।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी अपना एक दशक पूरा करने जा रहे हैं। आम आदमी से लेकर किसानों की चिंता में भले ही मुख्यमंत्री दुबले नजर आएं, मगर उनके नौकरशाहों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अभी मुख्यमंत्री ने 161 आला अफसरों को तीन दिन तक पीडि़त किसानों से रूबरू होने और फसल प्रभावित इलाजों में दौरा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया, जिसके पालन में ये नौकरशाह दौरों पर निकले भी और जैसा कि होता आया है वैसी मैदानी रिपोर्ट अधीनस्थों के जरिए बनवाकर मुख्यमंत्री को प्रस्तुत भी कर देंगे।
कुछ होशियार नौकरशाहों ने किसानों से चौपालों पर चर्चा करते हुए अपने फेसबुक भी अपडेट कर लिए ताकि एक्शन में सरकार बहादुर नजर आएं। शिवराज सरकार के मुख्य सचिव हैं एंटोनी डिसा... मुझे तो कभी भी ये जनाब अपनी कार्यशैली से इस पद के योग्य नहीं लगे, जबकि मुख्य सचिव प्रदेशभर के अफसरों का खुदा होता है और उसके एक इशारे पर प्रमुख सचिवों से लेकर कलेक्टरों की घिग्घी बंध जाना चाहिए, मगर ऐसे दबंग और कड़क मुख्य सचिव अब इतिहास में दफन हो गए, क्योंकि सत्ता यानि मुख्यमंत्री को भी रीढ़ विहिन अफसर ही ज्यादा पसंद आते रहे हैं।
अभी पिछले दिनों इंदौर में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला गया, जिसके पासों और टिकटों को लेकर भारी मारामारी मची, मगर इंदौर के साथ-साथ प्रदेशभर के तमाम आला नौकरशाहों ने मय परिवार ये मैच शानदार तरीके से देखा। यहां तक कि भोपाल से मुख्य सचिव एंटोनी डिसा भी इस क्रिकेट मैच को देखने मय परिवार इंदौर पहुंचे और पूरे वीवीआईपी बॉक्स पर कब्जा जमाकर मैच देखा और सारे अफसर उनकी सेवा-चाकरी में जुटे रहे। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के सपनों के शहर इंदौर में तमाम समस्याएं मौजूद हैं।
कचरे के ढेर से तो जनता को मुक्ति मिली ही नहीं, वहीं आवारा पशुओं, सूअरों, कुत्तों के साथ-साथ अवैध निर्माण, अतिक्रमण, गुंडागर्दी व अन्य अव्यवस्थाएं भी मौजूद हैं और स्मार्ट सिटी से लेकर मेट्रो जैसे तमाम प्रोजेक्ट कागजों पर ही हैं। एक बीआरटीएस को लेकर ही जनता दुखी है और ऐसी तमाम समस्याओं को लेकर कभी भी मुख्य सचिव को फुर्सत नहीं मिली कि वे पूरा दिन इंदौर में बिताएं और मैदानी हालात जानें, मगर क्रिकेट मैच के लिए उनके पास पूरा दिन था।
अभी यह भी पता चला कि किसानों की चौपालों पर भी मुख्य सचिव ने पूरा समय नहीं दिया और थोड़ा-बहुत दौरा कर किसानों से चर्चा की, जिसके फोटो भी छप गए और बाद में वे सपरिवार मढ़ई में जंगल सफारी का लुत्फ लेते रहे। तवा डेम के बैक वॉटर में नौकायन का आनंद भी मुख्य सचिव ने लिया। जायज है कि तमाम अधिनस्थ बड़े साहब की सेवा-चाकरी में ही लगे होंगे। किसानों का क्या है, उनके नसीब में तो आत्महत्या लिखी ही है...
(लेखक राजेश ज्वेल जाने-माने हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं) सम्पर्क - 098270-20830 Email : jwellrajesh@yahoo.co.in
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