28.12.15
किस्सा-ए-एकता
शिवेन्दु राय
देश में एकता हो, यह हर देशवासी की दिली तमन्ना है | यूँ तो देश में एकता पर हमेशा ही बड़ा जोर दिया जाता रहा है | हर रोज किसी न किसी नेता का बयान आ ही जाता है | जिसमें एकता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा जाता है कि हम सब एक है हमें कोई तोड़ नहीं सकता है | एकता की बात घर में हम भाई-बहन को पापा-मम्मी से, पापा-चाचा को दादा-दादी से देश की जनता को पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी से बचपन से ही सुनता आ रहा हूँ | आज तक भ्रम में हूँ कि एकता के साथ रहने, मिलने से रोक कौन रहा है ?
आजकल कोई भी एकता-एकता बडबडाता रहता है तो लोग समझ लेते है कि हो न हो यह शख्स नेता है और वह निकलता भी है | अगर सुबह से शाम तक एकता की बात करता है तो सत्ता पक्ष वाला है | सुबह से शाम तक और सोने के बाद भी एकता की माला जपता है तो पक्का विपक्ष वाला है | सुबह से शाम, सोने के बाद, और जगने के बाद गली-गली बेहोशी की अवस्था में एकता को ढूढने वाला फ़क़ीर पक्का कॉमुनिस्ट निकलता है | सत्ता और विपक्ष को एकता मनोरंजन के लिए कभी कभी मिल भी जाती है तो बेचारे कॉमुनिस्ट को फ्रेस एकता का सुख कभी नहीं मिलता है |
मैं भी एकता की बात करता हूँ मुझे भी देश की तरह ही एकता पसंद है | लेकिन एकता कैसी हो नेता जी क्यूँ तय करेंगे ? मेरे पिता जी क्यूँ तय करेंगे ? मेरे बड़े भाइयों ने कहा है कि पिता जी जैसा चाहेंगे वैसी होगी एकता | मैं नहीं मान रहा उनकी बात | लेकिन मैं नहीं चाहता कि एकता वाली बात को लोग तोड़-मरोड़कर कर पिता जी या देश के सामने प्रस्तुत करें | हमारी एकता को तोड़ने वालों को कभी माफ़ नहीं किया जायेगा | देश की सभी राजनीतिक पार्टियाँ एकता पर जोड़ दे रही है | मैं उन्हें रोक रहा हूँ क्यूँ कि ये मेरा निजी मामला है भाई | एक आप लोग हो कि इस खेल में बहुत ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे हो |
कुछ लोग एकता को एक खेल के रूप में लेते हैं | भाई खेल के रूप में आपने ले भी लिया तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है | आपत्ति इस बात से है कि आप हर रोज, हर महीने, हर साल क्यूँ नहीं इस खेल का आयोजन करा रहे हैं | चुनाव के वक्त ही क्यूँ हो इस खेल का आयोजन ? आप ही लोग खिलाड़ी और रेफरी भी बन जाते हैं | भाई हमारी भी तो भागीदारी बनती है न | कम से कम अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में ही सही | खिलाड़ी तो खिलाड़ी होता है आप लोग धर्म और जाति के आधार पर टीम क्यूँ बना रहे हैं ? खैर, अब बना ही लिया है तो हिन्दू वाली टीम में मुझे और मुस्लिम वाली टीम में भाई जान को तो रख लेते | आपकी टीम में दलित प्रतिनिधि का अभाव साफ-साफ दिख रहा है | आप लोग अगर संतुलित टीम नहीं बना सकते हैं तो !!!! हम कुछ नहीं कर सकते हैं | हम जाति एकता के खिलाफ क्यूँ कुछ बोले | सवाल मेरी अस्मिता का भी तो है | आप अपना खेल खेले | हम दर्शक के रूप में ताली मरते रहेंगे | इतना तो आप भरोसा कर ही सकते हैं | एकता के लिए इतना फर्ज तो मेरा भी बनता है |
एकता पाने के लिए पिता जी ने कभी घर में मीटिंग नहीं की | माँ को भी अपना पक्ष रखने नहीं दिया | बड़े भाई ने पिता जी द्वारा चुनी गई एकता के साथ समझौता कर लिया हैं | देश में लोकतंत्र है घर की तरह देश में एकता थोपा नहीं जा सकता हैं | मीटिंग तो बुलानी पड़ेगी, सबको बराबर प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा | कम से कम बारहवें खिलाड़ी के रूप में ही सही, खेल में शामिल करना होगा | अगर नहीं किया गया ऐसा तो एकता किसी को साबूत नहीं मिलने वाली हैं | कॉमरेड,भाई साहब,भाई जान और फादर आप टुकड़ों वाली एकता से खुश नहीं रह सकते हैं | असहिष्णुता-असहिष्णुता चिल्लाते रहने से भी एकता नहीं मिलने वाली | संस्था खोल कर एकता को ढूढ़ने की जरुरत नहीं है | संगोष्ठी,धरना, पुरस्कार वापसी और किताब वापसी से कुछ नहीं होगा | अगर देश को परिवार मानते हैं तो परिवार के हर मेंबर को उसकी एकता लौटानी होगी | जिसको आपने नाजायज ढंग से सदियों से अपने पास रखा है | | खैर लाल सलाम,जय श्री राम, खुदा हाफिज |
शिवेन्दु राय मूलत: जमुआँव, जिला – सिवान (बिहार) के रहनेवाले। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मीडिया विषय में परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की | वर्तमान में महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यलय में पीएचडी शोधार्थी (संचार एवं मीडिया) है | इसके साथ ही देश के तमाम प्रतिष्ठित एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादकीय पृष्ठों के लिए समसामयिक एवं वैचारिक लेखन | स्वतंत्र पत्रकारिता में सक्रिय एवं विभिन्न विषयों पर नया मीडिया पर नियमित लेखन। इनसे shivendu_rai@yahoo.com एवं 08964028587 पर संपर्क किया जा सकता है |
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