-प्रभुनाथ शुक्ल-
फ्रांस के शहर पेरिस में कंबोडियाई रेंस्तरा और एक स्टेडियम के बाहर आतंकी हमले से पूरी दुनिया को दहला दिया है। एक बार आतंकबाद पुनः वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देते हुए अपने अतिवाद को सबसे ताकतवर ठहराने की कोशिश की है। इस आतंकी हमले में 127 से अधिक लोगों की जान गयी। फ्रांस में यह दुसरा सबसे बड़ा आतंकी हमला है। आतंकवाद की असहिष्णुता से पूरी दुनिया झुलस रही है। लेकिन इसके खिलाफ एक मंच पर आवाजें नहीं उठ रही हैं। आतंकवाद के खात्मा के लिए बस घड़ियाली आंसू बहाए जा रहे हैं। भारत की पीड़ा को दुनिया के लोग नहीं समझ रहे हैं। आतंक भारत के प्रति कितना असहिष्णु है इस पर विचार करने के बाद भारत में हिंदुवादी तालिबानी शासन की बात की जा रही है और तालिबान के कारनामें पर तालिया पीटी जा रही हैं। उन्हें आतंक की असहिष्णुता नहीं दिखाई दे रही है।
दुनिया भर में फैलती वैश्विक आतंकवाद की असहिष्णुता से कहर बरपा रखा है। इस हमले की जिम्मेदारी भी आईएस ने ली है। हमले में शामिल सभी आठ आतंकी मारे भी गए हैं। लेकिन सैकड़ों बेगुनाहों की मौत हमारे लिए सबसे बड़ी सबसे बड़ी चुनौती है। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका, चीन, फांस, आस्टेलिया, पाकिस्तान, इराक, भारत सभी परेशान हैं। दुनिया भर में इस हमले की निंदा की जा रही है। फिदायनी हमला करने वाले आतंकी सीरिया की बदला लेने के की बात कर रहे थे। इस हमले की दुनिया भर के राष्टाध्यक्षों की ओर से निंदा की जा रही है। इसे मानवता और इंसानियत के खिलाफ बताया जा रहा है। लेकिन अतिवाद से परेशान दुनिया के देश एक मंच पर नहीं आ रहे हैं। भारत को हिंदू तालीबानी शासनवाला देश बताया जा रहा है। भारत में सभी धार्मों का सम्मान होता था। लेकिन आज दुनिया भर को जो आतंकवाद निगला रहा है उसके मूल में क्या छिपा है। इस आतंकवाद का उद्देश्य क्या है। आतंकी विचारधारा को पोषित करने वाले संगठन क्या संदेश देना चाहते हैं।
उनके विचारधारा में क्या धार्मिक असहिष्णुता की बात नहीं है। उनका मिशन ही धार्मिक असहिष्णुता बढ़ाने का है। लेकिन भारत को तालीबानी हिंदू शासन वाला का देश बताया जा रहा है। अनीश कूपर को दुनिया भर में आतंकी हमले में असहिष्णुता नहीं दिखती। फ्रांस में हुआ आतंकी हमले को क्या मानवीयता कहा जाएगा। अब दुनिया भर के लोग भारत में अनावश्यक असहिष्णुता फैलने का आरोप लगा रहे हैं। हमारे पीएम ब्रिटेन में गए तो वहां खुद अपनों ने तालिबानी शासन का जुमला पढ़ा। यह बात एक ऐसे श्ख्स की ओर से व्रिटेन के सबसे सम्मानित अखबार अंग्रेजी दैनिक गार्जियन में प्रकाशित हुआ। संभवत जब भारत को समझने की उम्र आयी तो अनीश कपूर भारत छोड हमेंशा के लिए इंग्लैंड में बस गए और वहीं के होकर रह गए। उन्होंने फिर कभी भारत को समझने की कोशिश नहीं की। अनीश एक जानमाने शिल्पकार है। उन्हें बेहतर शिल्पकारी के लिए पुरस्कार और सम्मान भी मिल चुके हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं की जिस धरती से आज उनका वजूद है उसी पर अंगुली उठाएं।
पेरिस की आतंकी घटना पर उनका बयान क्यों नहीं आया। जब कश्मीर से हजारों ंिहदुओं को पलायित होना पड़ा तो उनकी सहिष्णुता कहां गयी थी। आज जब भारत दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है तो उसे असहिष्ण्ुता की आड़ में बदनाम किया जा रहा है। उस समय हमारे साहित्यकार और शिल्पकार और सहिष्णुता की वकालत करने वाले कहां रहे जब जब रंगभेंद, नस्लभेंद के जरिए लोगाों की हत्या कर दी जाती है। उस वक्त उनकी जुबान क्यों नहीं खुलती है। लेकिन दुनिया के लिए अगर सबसे बड़ी असहिष्णुता कहीं है तो वह आतंकबाद है। यह हमारे सामने कई अहम सवाल खड़ा कर रहा है। अतिवाद, आतंकवाद और चरमपंथ ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी गला घोंटला शुरु कर दिया है। अभी हाल में बंग्लादेश में एक ब्लागर की हत्या हुई है। क्या यह सहिष्णुता है। इस हमारे साहित्यकार क्यों नहीं पुरस्कार लौटाते। आतंकी हमले पर क्यों बयान नहीं आता। इस तरह के बयान देकर सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में बने रहने से अधिक और कुछ नहीं है। फ्रांस में यह दूसरा सबसे बड़ा हमला है। इसके पहले मशहूर व्यंग मैंगजीन शार्ली अब्दो के कार्यालय पर आतंकी हमला गया गया था। आतंकवाद सभ्य समाज और मानवता के लिए बड़ा संकट खड़ा करने वाला है। धार्मिक कट्टरता ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घला घोंटा है। जहां अभिव्यक्ति पर किसी खास विचारधारा का हमला होगा एक विनाशक और जहरीली सभ्यता का विकास होगा। लोकतंत्र में व्यक्ति और विचारों की आजादी खास अहमियत राखती है।
वैश्विक आतंकवाद के खतरे को समय रहते दुनिया के मुल्कों को भांपना होगा। वरना आने वाला समय मानव सभ्यता के लिए सबसे खतरा बनेगा। दुनिया के कई मुल्कों में घटी आतंकी घटनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। जहां कभी आतंवादवाद की कल्पना नहीं की जा सकती थी लेकिन वहां भी आतंकी हमले हुए। अमेरिका में 9.11 का हादसा आज भी दिल दहला देता है। पिछले साल दिसंम्बर में पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल में आतंकी हमले से मानवता कांप गयी। जिस तरह तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों ने 132 मासूमों संग 141 लोगों को गोलिया बरसा कर हत्या कर दी।
यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दूसरी घटना आस्टेलिया के सिडनी हुई। जहां शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके में स्थित एक रेस्तरां में आतंकवादियों ने कई लोगों को बंधक बना डाला। इसके बाद आस्टेलियाई सुरक्षा बलों की तरफ से चलाए गए आपरेशन में दो लोगों को जान गवांनी पडी। आतंकी तंत्र हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त करना चाहते हैं। वह दुनिया में कट्टरवाद का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। दुनिया को तबाह करने की उनकी तैयारियां हमारी व्यस्था से कहीं अधिक मजबूत हैं। उनका नेटवर्क मुल्कों की व्यस्था से कहीं अधिक आधुनिक है। उन्हें खास तौर का प्रशिक्षण हैं। वे खाने पीने जैसी तैयारियों के साथ अपने मिशन पर निकलते हैं। साल 2014 की दिसंबर में जम्मू-कश्मीर में आतंकी मुठभेंड के बाद उनके पास से जो खाने पीने की सामग्री सुरक्षा बलों ने बरामद की थी। उससे यही जाहिर होता हैं कि इनका मिशन हमारी व्यस्था से अधिक ठोस है। फ्रांस में इसके पहले जो हमला हुआ था उसमें शामिल आतंकी इस्लामिक शरणार्थी थे। दुनिया का कोई भी धर्म कट्टरता को कभी तवज्जों नहीं देता है।
आतंक और बुरी नीयति का न कोई चरित्र होता और न धर्म। इसका मकसद की सिर्फ मानवता और उसकी तहजीब का कत्ल करना होता है। अब समय आ गया है जब सभी इस्लामिक देशों संग पूरी दुनिया को आतंकवाद के सफाए के लिए एक मंच पर आना होगा। इस पर इंटरपोल जैसी सुरक्षा एजेंसी विकसित करनी होगी। एक दूसरे सुरक्षा एजेंसियों की बीच मिल कर साझा कार्यक्रम और आतंक से जुड़ी खुफिया सूचनाओं को साझा करना होगा। जिससे समय रहते आतंकवाद का मुंहतोड़ जबाब दिया जा सके। भारत काफी वक्त से इस पीड़ा को झेल रहा है। संयुक्तराष्ट से लेकर और दूसरे मंचों पर वह आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाता रहता हैं। दुनिया के मुल्कों को आतंकवाद को घरेलू समस्या समझने के बजाय इसे वैश्विक चुनौती के रुप में देखना होगा। दोहरी नीति से निकलना होगा। अमेरिका को भी अपनी आतंकवाद नीति पर पारर्दिर्शता अपनानी होगी। वह आतंकवाद के सफाए बात करता हैं लेकिन आतंक पर पाक की नीति का पर्दे के पीछे समर्थन करता दिखता हैं यह सबसे खतनाक स्थिति है। दुनिया को आतंक से लड़ने के लिए इंटरपोल जैसी सुरक्षा एजेंसिया तैयार कर इनके गढ़ को जमींदोज करना होगा। जब तक दंुनिया के देश खुले मन से एक साथ मंच पर नहीं आते आतंक का सफाया संभव नहीं विकसित और विकासशील देशों को इस चुनौती को समझना समय की मांग है। अगर ऐसा संभव नहीं हुआ तो दुनिया भर में बढ़ती आतंकी असहिष्णुता निगल जाएगी।
लेख प्रभुनाथ शुक्ला स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क: pnshukla6@gmail.com
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