30.1.16

क्या माउंटबेटन जानते थे कि किसने मारा गाँधी को?


Rakesh Mishra
“माउंटबैटन ने बिड़ला हाउस पहुँचने पर बाहर जब किसी के मुंह से सुना कि गांधीजी को किसी मुसलमान ने मार डाला, उन्होंने बगैर पूरी जानकारी के भी उस आदमी को डपट दिया - बेवकूफ, वह मुसलिम नहीं हिन्दू था। बाद में वह हिन्दू ही निकला”। बीबीसी  के  संवाददाता  की पेश  की  गयी  इस कहानी  पर में अंग्रेजी स्टेट्समैन माउंटबेटन की इस प्रतिक्रिया के  तमाम  मायने  निकलते  हैं| इस पर जनसत्ता ओम थानवी का निष्कर्ष है कि, “माउंटबैटन ने तुरतबुद्धि से यह भयानक कल्पना की होगी कि हिन्दू-मुसलिम अविश्वास और खून-खराबे के ताजा अतीत को देखते गांधीजी की हत्या मुसलमान के नाम से प्रचारित हुई तो देश का क्या हश्र होगा ... अफवाहें फैलाने वाले तब भी कितने मौजूद थे”!


इस सन्दर्भ में थानवी जी ने जो निष्कर्ष ज्ञापित किया उसके लिए थानवी जी की सहजता सरलता को नमन| वैसे माउन्टबेटन जो कि ताउम्र सैनिक और खुफिया तंत्र के साथ चलनेवाले रहे उनके लिए ये पता होना कि गाँधी की हत्या की पहले कितनी कोशिशें हुईं ?क्या थानवी जी को असंभव लगता है? क्या थानवी जी  भी मानते हैं कि इतने बड़े देश का अकेला वारिस वह स्टेट्समैन कोई भी प्रतिक्रिया अपनी बात का मतलब समझे बिना दे देगा| या वे ये मानते हैं कि माउंटबेटन ने जो कहा उसका पोस्टमॉर्टेम मीडिया को नहीं करना चाहिए? और बिना तस्दीक किये देश का इतना बड़ा स्टेट्समैन कैसे कह सकता है कि “मारने वाला एक हिन्दू था”| इतनी नासमझी और बेरुखी तो आज के हिंदुस्तान का कोई विधायक भी नहीं दिखाते हैं| साधारण घटनाओं पर भी यही कहते सुना जाता है कि "मामले की निष्पक्ष जांच करवाई जाएगी" हम दोषियों पर कड़ी कारवाई करेंगे".... इत्यादि-इत्यादि| “माउंटबेटन ने ये कह दिया और उसका तो एक ही अर्थ है कि माहौल को सँभालने के लिए उन्होंने ऐसा कहा”| ऐसे में शिखर पुरुष थानवी जी का ये निष्कर्ष भारतीय  पत्रकारिता की जहीनियत जाहिर करता है|

दक्षिण पंथी कहते रहे हैं कि “भारत सदियों  तक  विश्व गुरु  रहा  है” पत्रकारिता के मामले में तो लगता है कि “गुरु गुड रह गए चेले चीनी हो  गए”| दुनिया में अंग्रेजी हुकूमत के सबसे बड़े उपनिवेश के वारिस गवर्नर जनरल के लिए जिस तरीके से प्रतिक्रिया थानवीजी ने दी है उस पर सवाल ये है कि ढाई सौ सालों तक सोने की चिड़िया लूट के बैंक बनाने वालों को आप लोग कब तक इतने दोयम दर्जे का समझते रहेंगे? और कब  तक  नासमझ आम  जनता  को  भरमाते  रहेंगे? आपके और फज़ल साहेब के लेख को पढ़ के और इस कहानी में माउंटबेटन के बयान ही आधार मानकर घटनाक्रम को समझने के लिए बिन्दुवार कुछ तथ्य और रखता हूँ...

1. होम डिपार्टमेंट सरदार पटेल के जिम्मे था| क्या माउंटबेटन साहेब ने इमीडियेट सुब-ओर्डीनेट से मशविरा नहीं किया होगा?
2. देश के गवर्नर जनरल से सबसे बड़े जननायक गाँधी की इतनी गंभीर उपेक्षा की आशा कैसे कर सकते हैं?
3. “मारने वाला मुस्लमान नहीं हिन्दू था”...इस बयान से ये संदेह नहीं खड़ा  होता कि "माउंटबेटन को पता था कि हत्या किसने की"? कम  से  कम  एक स्टेट्समैन  तो  जानता ही होगा  कि कानून  और  अदालत  के  लिए  इस  बयान  के क्या  मायने  होंगे |
4. माउंटबेटन के इस बयान और गोडसे का नाम मीडिया में आने के बाद हुआ महाराष्ट्र के चित्पावन ब्राह्मणों का नरसंहार चौरासी के सिख दंगों से कम तो नहीं था| ऐसे में आप माउंटबेटन के नंबर बढ़ा कर कितने मासूम चित्पावन ब्राह्मणों की निर्दोष हत्या को नज़र-अंदाज कर रहे हैं|

रेहड़ी लगाने वाला भी मोदी को अपने बगल में खड़ा करके नहीं तौलता| स्टेट्समैन को व्यवस्था पर उसकी नज़र और उसके कामों और बातों के असर से अनुमान करके चरित्र चित्रण करता है| और आप लोग सबको "आम आदमी सिंड्रोम" से पीड़ित मान लेते हैं| आपके लेख से लगने वाली इस बीमारी से बन रहे सरल रेखीय, अंकगणितीय, यांत्रिक लोकतंत्र का क्या भला होगा, कैसे  भला  होगा ये तो नहीं पता लेकिन आज नहीं तो कल सच तो सामने आयेंगे ही|
अब रही रेहान साहेब के लेख की बात, वह अमूल्य लेख पढ़ के सिर्फ इतनी  प्रतिक्रिया दे पा रहा  हूँ कि “दिस आर्टिकल सर्व्ड मोस्ट फनी लाइन्स ऑफ़ द डे”  गांधीजी ने तुरंत  अपनी चप्पल पहनी और अपना बायां हाथ मनु और दायां हाथ आभा के कंधे पर डालकर सभा की ओर बढ़ निकले. रास्ते में उन्होंने आभा से मज़ाक किया.
गाजरों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज तुमने मुझे मवेशियों का खाना दिया. आभा ने जवाब दिया, ''लेकिन बा इसको घोड़े का खाना कहा करती थीं.'' बाकी पाठकों के विवेक पर छोड़ते  हैं| दिनचर्या और चर्चायें लिखने और कहने का कोई आशय कोई सार्थक उद्देश्य मिलेगा तो वे जरुर साझा करेंगे|
''पिछले महीनों, हममें से हर एक जिसने मासूम मर्दों, औरतों और बच्चों के ख़िलाफ़ अपने हाथ उठाए हैं या ऐसी हरकत का समर्थन किया है, गांधी की मौत का हिस्सेदार है.'' हत्या के तुरंत बाद मिली तमाम प्रतिक्रियाओं में पाकिस्तान से मियां इफ़्तिखारुद्दीन की तरफ़ से मिले इन भावुक शब्दों के साथ गाँधी के शहीद  दिवस पर विनम्र  श्रद्धांजलि| राष्ट्रपिता को शत-शत नमन!  

लेखक Rakesh Mishra से संपर्क 9313401818, 9044134164 के जरिए किया जा सकता है. 

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