बड़ी चर्चा है कि इस बार का बजट गांव, खेती-किसानी के लिए है। बजट का पूरा सच जानने से पहले कुछ बातों पर गौर करना बेहद जरूरी है। 5 सालों में किसानों की आय दुगुनी करना कितना सच है? भारत सरकार में रहे वित्त सचिव का कहना है कि यह बयान सत्य से परे है। क्योंकि यदि इसे पूरा करना है तो 5 सालों में कृषि की विकास दर 15 प्रतिशत होना आवश्यक है। जबकि भारत क्या दुनिया के किसी भी देश की यह विकास दर सम्भव ही नहीं है। वैसे अभी किसानों की मासिक आय एक रिपोर्ट के अनुसार 1,632 रुपए है और 5 साल के बाद यह 3,264 रुपए हो जाएगी। इस तरह की बयानबाजी मोदी और उनके मंत्रियों की वैसे ही है जैसे कि विदेश से काला धन लाकर उनके खाते में 15 लाख रुपए जमा हो जाएगा। इसी तरह की ढेर सारी कलाबाजी बजट में दिखती है।
आइए, कुछ तथ्यों पर गौर करें। इस साल का कुल बजट 19,78,060 करोड़ रुपए का है। इस बजट में जिस कृषि क्षेत्र की बड़ी बात की जा रही है और किसानहितैषी बनने का दावा किया जा रहा है, उस कृषि क्षेत्र को सरकार ने दो प्रतिशत से भी कम महज 35,983.69 करोड़ रुपया दिया है। जब वित्त मंत्रालय की वेबसाइट में बजट का ब्योरा देखा तो पाया कि इसमें भी 15,000 करोड़ रुपया कृषि वित्तीय संस्थान को दिया गया है और जब इस संस्थान को इंटरनेट पर सर्च किया तो पाया कि इस नाम पर मात्र बीमा और फाइनेंस कंपनियां हैं। मतलब साफ है कि कृषि पर बजट बढ़ाने का ढिंढोरा पीट रही सरकार की कृषि बजट में वृद्धि बीमा कंपनियों के लिए है, न कि किसानों के लिए और बीमा क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई करके यह भी साफ कर दिया है कि किन बीमा कम्पनियों के लिए यह बजट बढ़ा है।
मोदी जी महाराष्ट्र से लेकर बरेली तक किसान रैली में मृदा और जल संरक्षण पर बड़ी बात करते हैं और इसे कृषि विकास का रास्ता बताते हैं। पर इस मद में पिछले साल आवंटित 19.83 करोड़ की तुलना में 20.96 करोड़ आवंटित किए यानी महज 1.13 करोड़ रुपए की वृद्धि की गयी है। सिंचाई को अपने बजट में कृषि विकास की शीर्ष प्राथमिकता बताते हैं और अगले 5 वर्षों के लिए 80 हजार करोड़ इस पर खर्च करने की बात करने वाले वित्त मंत्री इस बजट में सिंचाई पर महज 5,717 करोड़ रुपए आवंटित करते हैं, जिसमें भी त्वरित और जारी सिंचाई परियोजनाओं के लिए आवंटित बजट वर्ष (2014-15) में आवंटित 3,276.56 करोड़ की तुलना में घटाकर 1,377 करोड़ रुपए कर दिया जाता है। गौरतलब है कि जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की घोषणा की गयी थी।
अपने पहले बजट में आवंटित 1,000 करोड़ रुपए में सरकार सालभर में मात्र 30 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई थी। सरकार ने उर्वरक पर खर्च होने वाले बजट को 77,147.80 से घटाकर 74,139.37 करोड़ कर दिया। इसमें भी किसानों को दिया जाने वाला बजट घटा दिया और उर्वरक बनाने वाली कंपनियों को आवंटित बजट वैसे ही रखा गया है। ऐसे समय जब संसद द्वारा पारित खाद्य सुरक्षा कानून को पूरे देश में लागू होना है, बजट में दूसरी बड़ी कटौती खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बजट में की गयी है। जिसे 1,62,249.41 करोड़ से घटाकर 1,52,704.11 करोड़ कर दिया है। इसमें भी खाद्यान्न के भंडारण पर आवंटित बजट को घटाया गया है। मंशा साफ है, फसल बाजार में सौ प्रतिशत एफडीआई करने की घोषणा करने वाले वित्तमंत्री और उनकी सरकार किसानों और गरीबों पर बड़ा हमला करने जा रही है। आने वाले वक्त में न तो किसानों से उनकी उपज की सरकारी खरीद होगी और न ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीबों को सस्ता अनाज मिलेगा।
मनरेगा में पिछली बार आवंटित 34,699 करोड़ रूपए की तुलना में इस बार 38,500 करोड़ रूपया आवंटित किया गया है। इसकी सच्चाई यह है कि पिछली बार आवंटित बजट में से 6,000 करोड़ रूपए खर्च ही नहीं हुए। इस तरह से यदि इस राशि को भी जोड़ लिया जाए तो मनरेगा में लगभग 41,000 करोड़ का धन आवंटन होना चाहिए। यहीं नहीं मनरेगा में 2010-11 में आवंटित बजट इससे ज्यादा था और इस वक्त यदि मनरेगा में सौ दिन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है तो कम से कम 65,000 करोड़ रूपए का बजट आवंटन किया जाना चाहिए। ऐसे समय जब देश में सूखा पड़ा हो और मनरेगा में और काम देने और इसे 100 दिन से बढ़ाकर 200 दिन करने की बात की जा रही हो, तब इस आवंटित बजट से मात्र 38 दिन का ही रोजगार एक परिवार को मिलेगा। जब सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आने वाली हो तब भी इन्कम टैक्स के स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया। ठेका मजदूरों, निर्माण मजदूरों समेत असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों के जमा पूंजी के ईपीएफ और कर्मचारियों के पीपीएफ से पैसा निकासी पर टैक्स लगा दिया है। बजट में किसान हितों के नाम पर 0.5 प्रतिशत सेस से लेकर जनता पर लगाए टैक्सों की भरमार है। जो महंगाई ही बढ़ायेगा और महंगाई की मार से पीड़ित जनता के जीवन के संकट में डालेगा। विश्व बैंक और आईएमएफ के दिशा-निर्देश पर राजकोषीय घाटा कम करने के नाम पर आम जनता के जीवन के लिए जरूरी अन्य मदों में भी कटौतियां की गयी है। उदाहरण के लिए स्कूली शिक्षा पर आवंटित बजट 63,826.65 करोड़ पिछली बार आवंटित 69,794.50 से कम है।
इसी प्रकार स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर राज्यों को दिए जाने वाले बजट में 2014-15 की तुलना में करीब 6,000 करोड़ की कटौती कर दी गयी है। वहीं 2006 से अब तक पूंजी घरानों को 42 लाख करोड़ रूपए की टैक्स माफी की परम्परा को जारी रखते हुए इस बजट में भी बड़ी करपोरेट कम्पनियों पर ‘पुरानी तिथि से लागू होने वाला कर‘ नहीं लगाने की घोषणा कर पूंजी घरानों के करीब सत्तर हजार करोड़ रूपए कर माफ कर दिए गए हैं। पिछले तीन सालों में सरकार ने एनपीए में कारपोरेट के कर्जे के 1.14 लाख करोड़ रुपए माफ कर दिए है। कारपोरेट पर की गयी इस मेहरबानी से बर्बाद हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों को उबारने के नाम पर बजट में दिए गए 25,000 करोड़ भी वास्तव में कारपोरेट को पुनः कर्ज देने के लिए ही है। एक तरफ किसान, मध्य वर्ग, गरीब, छोटे-मझोले उद्यमियों और आम नागरिकों के हितों पर हमला और दूसरी तरफ कारपोरेट हितों की सेवा ही इस बजट की अंर्तवस्तु है।
दिनकर कपूर
आईपीएफ
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