'बदलाव की चौपाल' में नेवादा गांव के लोग
गांव में बदलाव का मतलब होता है कच्ची सड़क पक्की हो जाए। खेती में नया प्रयोग, आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल। गांव में अस्पताल हो, पढ़ने के लिए कोसों दूर ना जाना पड़े। बिजली से गांव जगमगाए और ट्रेन के टिकट के लिए मीलों दूर ना जाना पड़े। किसी का लड़का कलक्टर तो किसी का इंजीनियर, डॉक्टर, मास्टर या मुंशी बन जाए। पर्दे से बाहर निकलकर महिलाएं गांव के विकास में भागीदार बने। लड़कियां गांव के स्कूल से निकलकर कॉलेज, महाविद्यालय से विश्वविद्यालय तक जाएं। साइकिल चलाने वाली लड़की घर से बाहर निकलकर प्लेन उड़ाए, सीमा की रखवाली करे। पंचायत के फैसलों में सबकी बात सुनी जाए। इस सबके बीच गांव में 'बदलाव' का एक मतलब ये भी है कि डिजिटल माध्यम से तुरंत गांव की खबर गांव तक पहुंच जाए। दुनिया की बात मिनटों में खेत में काम कर रहे किसान तक पहुंच जाए । BADALAV.COM की टीम इन्हीं सभी बिंदुओं पर काम कर रही है। डिजीटल मीडिया के जरिए संवाद की कोशिश कर रही है। और इसी कड़ी में जमीनी धरातल पर जाकर लोगों से आमने-सामने की बातचीत की गई जौनपुर के गांव नेवादा में।
बदलाव की चौपाल में महिलाएं भी शामिल हुईं।
सई-गोमती के दोआब पर बसा जौनपुर जिला शुक्रवार को बदलाव की पहली चौपाल का गवाह बना। चौपाल के आयोजक डॉक्टर ब्रजेश कुमार यदुवंशी ने बिना लाग लपेट के ‘बदलाव’ के लक्ष्य को गांव वालों के सामने रखा और उसका भागीदार बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि ऐसी छोटी से पहल से बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत होती है, हो सकती है। 'बदलाव' जैसे प्रयास गांव और शहरों के बीच विचारों की खाई को पाटने और एक पुल का निर्माण करने में मददगार हो सकते हैं।
बातचीत का क्रम चला तो सब खुलकर अपनी बात कहने लगे। श्रीमति सीता ने कहा- "भैया इ त बहुत बढ़ियां लागत बाटे, ऐसन हो जाई तो हमर सब के काम आसान हो जाई। बदलाव के सोच के आगे बढ़ावल जाई।" डॉक्टर कमलेश ने कहा कि गांव में ज्यादातर लोग डरे सहमे रहते हैं, अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते। बदलाव ऐसे लोगों की आवाज़ बन सकता है। वहीं राजू ने कहा- इस मुहिम में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की जरूरत है। क्योंकि संघे शक्ति कलियुगे। नेवादा गांव के पूर्व प्रधान श्रीनाथजी ने कहा- गांव में भी लोगों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। बदलाव इस बिखराव को समेट कर एक मंच पर ला देता है तो ये भी एक बड़ी बात है।
इस चौपाल की सार्थकता बस इतनी है कि संवाद की प्रक्रिया से लोग एक दूसरे के थोड़े से करीब आएं। सुखद अचरज कि बातचीत के दौरान ही एक बुजुर्ग आए। उन्होंने कहा - बाबू हमर वोटर आईडी नहीं बन पावत बा। बहुत दिन से परेशान बाटी। इतना सुनते ही डॉक्टर ब्रजेश ने आगे बढ़कर कहा- दादा अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं। उन्होंने राजू को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। राजू ने भी सहर्ष इसे ये कहते हुए कबूल किया- चलिए बदलाव की चौपाल के जरिए एक नेक काम करने का मौका मिला।
इस बीच हर किसी को बदलाव पर प्रकाशित चुनिंदा रिपोर्ट दी गई, जिसे पढ़ने के बाद लोगों की उत्सुकता और बढ़ गई। वहां मौजूद लोगों के लिए ये कौतूहल का विषय रहा कि आखिर कोई लड़की कैसे जैविक खेती कर गांव की सूरत बदल रही है । यही नहीं लोगों ने बदलाव पर मधेपुरा के एसपी की रिपोर्ट (‘लव योर पुलिस’- इस मुहब्बत में मुश्किलात बहुत हैं जनाब ) पढ़ी तो यकीन नहीं हुआ कि समाज में ऐसा कुछ भी हो रहा है कि कभी पुलिस, पब्लिक की दोस्त भी हो सकती है । मुजफ्फरनगर में एक महिला के प्रयास से कई अनाथ बच्चों की जिंदगी में आई बहार को जानकर सभी लोग हैरान रह गए । (मुज़फ़्फ़रनगर की ‘भारत मां’) गोपालगंज के जिलाधिकारी राहुल कुमार के सार्थक पहल (डीएम साहब, सम्मान का ये ‘निवाला’ वो कभी नहीं भूलेगी) को भी लोगों ने जाना। इस तरह के तमाम छुए-अनछुए पहलुओं (वजीफन ने हौसलों से जीती हर जंग) पर बदलाव के जरिए लोगों की नजर पड़ी । टीम बदलाव के साथी अरुण यादव ने लोगों को बदलाव के मकसद के बारे में बताया और समझाया कि एक दूसरे की मदद से कैसे आगे बढ़ा जा सकता है।
गांव की पढ़ी लिखी महिलाओं को आस-पास के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया और बताया कि घर बैठे किस तरह प्ले स्कूल की तर्ज पर आप बच्चों को एक सही दिशा दे सकती हैं । चौपाल में मौजूद महिलाएं और युवाओं ने बदलाव की इस मुहिम की सराहना की। बदलाव की पहली चौपाल में नेवादा गांव के पूर्व प्रधान श्रीनाथ कन्नौजिया के अलावा डॉक्टर कमलेश कुमार समेत कुल 25-30 लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर ब्रजेश यदुवंशी ने किया तो वहीं संयोजन में राजू का पूरा सहयोग मिला।
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