31.3.16

डॉ. नारंग की मौत के सबक

जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है

नवाज देवबंदी का ये मशहूर शेर मुझे तब याद आया जब डॉ. नारंग की जाहिलों ने पीट पीट कर हत्या कर दी | डॉ. साहब के बारे में पहले ही इतना कुछ लिखा जा चुका है कि नया कुछ लिखने की जरूरत नहीं | पर फिर भी मेरे पास कुछ महत्वपूर्ण सवाल है | जो मैं आपके सामने रख रहा हूँ | प्रश्न अब सर्वाइवल का है | इन सवालों के उत्तर खोजिएगा | शायद जीवित रहने में थोड़ी मदद मिले |



पहला डॉ. नारंग कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं जो जाहिलों की हिंसा के शिकार हुए हैं | ऐसे कई मामले पहले भी हुए हैं और आगे भी बदस्तूर जारी रहेंगे | डॉ. नारंग, अरुण माहौर, सुजीत, प्रशांत पुजारी, ये तो महज कुछ नाम हैं जो हाल ही में प्रकाश में आये हैं | लिस्ट तो बहुत लम्बी है | सवाल ये है कि इन हमलों से बचने के लिए आपकी तैयारी क्या है ? क्या आप ऐसे अचानक हुए हमलों से निपटने में सक्षम हैं ? सोचिये |

दूसरा जागरूकता दुश्मन से लड़ने के लिए आपके पास उसका पूरा ब्यौरा होना जरूरी है | दुश्मन कौन है ? उसकी ताकत क्या है ? इसकी पहचान जरूरी है | पर इसके भी ज्यादा जरूरी वो कारण हैं जिनके कारण वो आपको मारने के लिए उद्यत है | कारणों का पता लगाइए उन्हें चिन्हित कीजिये | सोचिये क्या ये कारण शास्वत हैं या इनका कोई हल भी है ? इतिहास के पन्नों को उलटिए | शायद थोड़ी मदद मिले | यदि जबाब मिल जाये तो इन कारणों को खुद तक सीमित मत रखिये | अपनी जिम्मेदारी समझिये | खुद जागरूक बनिए और दूसरों को भी जागरूक कीजिये |

तीसरा मैंने पहले लिखा था कि “ जो कौम अपने इतिहास से सबक नहीं लेती वो इतिहास के पन्नो पर छप जाती है | ” हिन्दू एक अकेली एसी कौम है जो अपने इतिहास से कभी सबक नहीं लेती | आप किसी भी शताब्दी का इतिहास उठा कर देख लीजिये | पन्ने भरे पड़े हैं हमारे अपने खून से जो विदेशी लुटेरों ने बहाया | और कारण सिर्फ 2 ही हैं | पहला अपनों की गद्दारी और दूसरा अपना संगठित न होना | विडम्बना देखिये आज भी हम इन्हीं दो चुनौतियों से जूझ रहे हैं | जहाँ देखो आपको गद्दारों की फ़ौज मिल जाएगी | स्वरूप अलग हो सकते हैं पर उनका मकसद एक ही है | और वो है हमारी बर्बादी | तो ऐसे गद्दारों से निपटने के लिए आपकी तैयारी क्या है ? क्या आप इन्हें पहचान भी पा रहे हैं ? क्या हम अपने इतिहास से सबक ले रहे हैं या हम अपने इतिहास को भुला रहे हैं ?

चौथा अपना संगठन | डॉ. नारंग जैसो के पास पार्क में जाकर हा हा ही ही करने का समय तो है पर चार लोगो को इकट्ठा कर लट्ठ चलाने का समय नहीं है | अपने पड़ोसियों के हाल चाल जानने का समय नहीं है | एसा क्यों है ? पहले ज़माने में एक- दूसरे से मिलने के लिए मेले का आयोजन होता था | लोग आपस में मिलते थे | अपनी समस्यायें बताते थे | बाकी के लोग मिल जुल कर उनका हल खोजते थे | समाज के अपने-अपने संगठन हुआ करते थे | उनकी बैठके हुआ करती थी जिसमे समाज किन किन समस्यायों से जूझ रहा है इस पर चर्चाएँ हुआ करती थी | आज एसी बैठके होती तो हैं पर वो गप शप के अड्डो में तब्दील हो चुकी हैं | चाय से शुरू होती है चाट पकौड़ों पर खत्म | इनका रचनात्मक योगदान अब सिफर है | इन्हें वापस इनके मुख्य मकसद तक पहुचाइए और कुछ सार्थक हासिल कीजिये | कहीं एसा न हो कि देर हो जाये और आप हाथ मलते रह जाएँ | 

संगठन में शक्ति होती है | संघे शक्ति कलौयुगे | चार लकड़ियों को अलग- अलग तोडना आसान है पर चारों को मिलकर तोडना कठिन | ये सब हमने बचपन में पढ़ा था | इतनी महत्वपूर्ण बात हमने कैसे भुला दी ? क्यों हम लोग “हम” से “मैं” पर आ गए | आपसी प्रतिस्पर्धा ने कब वैमनस्य का रूप ले लिया हमें पता न चला | जिसके कारण ये संकट उत्पन्न हुआ है | हमे वापस “मैं” से “हम” पर जाना होगा | किताबों की सूक्तियों को वास्तिविकता के धरातल पर उतारना होगा | एक दूसरे के आपसी सुख दुःख में सम्मिलित होना होगा | डॉ नारंग की नृशंस हत्या से सबक लीजिये | एक होना होगा जीने के लिए | संगठित होना होगा सुरक्षित जीवन के लिए | याद रखिये जान है तो जहान है | आपकी जान अमूल्य है इसे सुरक्षित संभाल कर रखिये |

-अनुज अग्रवाल 

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