7.3.16
बीडीएस कन्वेंशन में इज़रायल के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान
नई दिल्ली : फ़िलिस्तीन के विरुद्ध इज़रायल की नस्लभेदी नीतियों और जनसंहारी मुहिम के विरोध में आज यहां आयोजित बीडीएस कन्वेंशन में इज़रायल के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया गया। 'फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन' की ओर से आयोजित बीडीएस यानी बहिष्कार, विनिवेश, प्रतिबंध कन्वेंशन में देश के विभिन्न भागों से आये बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित भारत यात्रा रद्द करने की भी मांग की।
वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार मुरलीधरन ने कहा कि भारत हमेशा से फ़िलिस्तीन की मुक्ति का समर्थक रहा है लेकिन हाल के वर्षों में यह नीति बदल गई है। पिछले वर्ष पहली बार भारत के राष्ट्रपति ने इज़रायल की यात्रा की हालांकि इज़रायल ने उसी समय फ़िलिस्तीन के लिए भेजी राहत सामग्री को ज़ब्त करके एक तरह से उनका अपमान ही किया। आज गाज़ा को 20 लाख लोगों की जेल में तब्दील कर दिया गया है।
पत्रकार सौरभ कुमार शाही ने कहा कि पश्चिमी देशों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में भावनाओं का ज़बर्दस्त उभार हुआ है जिससे वहां इज़रायली कंपनियों का बड़े पैमाने पर बहिष्कार शुरू हो गया है। इसीलिए इज़रायल ने भारत और चीन पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। भारत में हिन्दुत्ववादी राजनीति ने मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भुनाने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया है।
लेखिका पेगी मोहन ने कहा कि यहूदी धर्म और ज़ायनवाद में वही फर्क है जो हिंदू धर्म और हिन्दुत्व की राजनीति में है और इसीलिए इन दोनों घोर दक्षिणपंथी ताकतों के बीच आपसी एकता भी है। जिस तरह यहां हिंदुत्ववादी राजनीति युवा लोगों को अंधराष्ट्रवाद के नाम पर उकसाती है उसी तरह इज़रायली ज़ायनवादी भी फ़िलिस्तीन के विरुद्ध अपनी युवा आबादी की भावनाएं भड़काकर उनका इस्तेमाल करते हैं। लेकिन बीडीएस आंदोलन ने इस पर चोट की है और बहुत से इज़रायली युवा भी इससे जुड़ रहे हैं।
कार्यकर्ता आनंद सिंह ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी नीतियों के बहिष्कार से प्रेरित विश्वव्यापी बीडीएस आन्दोलन को इज़रायल पर दबाव बनाने में काफी सफलता मिली है। अब भारत में भी इसे गति देने के लिए यह कन्वेंशन आयोजित किया गया है। भारत आज इज़रायली हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है और भारतीय जनता के टैक्स के पैसों से इज़रायली सत्ता फ़िलिस्तीनी बच्चों का खून बहा रही है।
मुंबई से आये फ़िलिस्तीन सॉलिडैरिटी कमिटी के फ़िरोज़ मिठीबोरवाला ने इज़रायल के बहिष्कार आंदोलन को तेज़ करने की बात करते हुए कहा कि हमें हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों के साथ ही इस्लामी कट्टरपंथियों का भी विरोध करना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार और जामिया विश्वविद्यालय के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के पूर्व अध्यापक क़मर आग़ा ने इस मुहिम को छोटे शहरों-कस्बों तक ले जाने और सांस्कृतिक माध्यमों से इज़रायल की हरकतों के बारे में लोगों को जागरूक करने पर बल दिया। जे.एन.यू. में अरबी एवं अफ्रीकी अध्ययन केंद्र के प्रो. अजमल ने फ़िलिस्तीन को एक वैश्विक सवाल बताते हुए कहा कि यह मुसलमानों का मसला नहीं बल्कि इंसाफ़ की लड़ाई है।
कन्वेंशन में पारित तीन प्रस्तावों में प्रधानमंत्री की इज़रायल यात्रा रद्द करने और इज़रायल के साथ सभी समझौते-सहकार निरस्त करने, इज़रायली कंपनियों और उत्पादों का बहिष्कार करने तथा इज़रायल का अकादमिक एवं सांस्कृतिक बहिष्कार करने की अपील की गई। इस सवाल को लेकर आम जनता में व्यापक अभियान चलाने का भी निर्णय लिया गया।
कन्वेंशन में फ़िलिस्तीनी छात्रा दीना, जामिया की छात्रा नादिया, पत्रकार बोधिसत्व मैती और भारत में रह रहे फ़िलिस्तीनी नागरिक नासिर बरकत ने भी अपनी बात रखी। कन्वेंशन में वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी, लखनऊ से आये प्रो. रमेश दीक्षित, रिहाई मंच, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, कवयित्री कात्यायनी, पत्रकार वर्गीस कोशी, बिहार के विधायक डा. शकील अहमद, युवा संवाद के राकेश रफ़ीक, लेखिका साज़ीना राहत, शुभदा चौधरी, ए. बिस्वास, डा. सुभाष गौतम, रंजना बिष्ट, कल्पना शास्त्री सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, छात्रों और कार्यकर्ताओं ने हिस्सेदारी की।
कार्यक्रम का संचालन सत्यम ने किया तथा कविता कृष्णपल्लवी ने आयोजकों की ओर से आरंभिक वक्तव्य रखा। रेज़ोनेंस की ओर से तपीश मैंदोला ने फ़िलिस्तीन के संघर्ष के समर्थन में कुछ गीत प्रस्तुत किये और कात्यायनी ने अपनी कविता 'गाज़ा-2015' का पाठ किया।
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