व्यंग्य : सोशल मीडिया और रोजगार
-विवेक दत्त मथुरिया-
कौन कहता देश में बेरोजगारी है? हमको तो कोई बेरोजगार नहीं दिखाई देता। सब अपने - अपने रोजगार में व्यस्त हैं। भला हो इस आईटी क्रांति का जिसने निठ्ठलों को भी रोजगार दे दिया। कोई व्हाटसअप पर तो कोई फेसबुक पर व्यस्त है। घर से लेकर बाहर तक कोई खाली नजर नहीं आ रहा। बात छात्र, नौजवान की हो या फिर घरों की चारदीवारी के अंदर रहने वाली बहन-बेटी हों सब बिजी हैं। अपने-अपने मोबाइल में इतने मशगूल हैं कि सर पर कोई खड़ा इसका पता ही नहीं चलता। योगियों की तरह एकदम समाधिस्थ अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं। अब किसी योग गुरु की दरकार नहीं रह गई। सब इंटरनेट योग में व्यस्त और मस्त हैं।
प्रेम योग से लेकर क्रांति योग तक सब सोशल मीडिया पर चल रहा है। नशा ऐसा कि अब शराबियों को भी इस फेसबुक और व्हाटसअप के नशे से ईर्ष्या होने लगी है। लोग मयखाने में भी फेसबुक और सोशल मीडिया के नशे से मुक्त नहीं हो पाते हैं। हालत ये है कि लोग पूजा करना भूल सकते हैं, पर स्टेटस अपडेट करना नहीं भूलते। आज की साइबर भक्ति से ईश्वर भी परेशान है। घर के बढ़े-बुजुर्गों की तरह ईश्वर भी अपने को उपेक्षित महसूस करने लगा है। बढ़ती हुई साइबर भक्ति को लेकर ईश्वर ने भी निर्णय लिया है कि अब में भी नहीं सुनने वाला। अब मार्क जकरबर्ग से ही मन्नत मांगो, वही सांसारिक कष्टों से तारेगा।
साइबर नशा हर उम्र और हर वर्ग पर देखा जा सकता है। सोशल मीडिया अपने अनुयायियों के लिए बहुद्देशीय मंच बन गया है। अध्यात्मिक ज्ञान गंगा से लेकर साहित्यिक यमुनोत्री तक का असीम सुख प्राप्त किया जा सकता है। बिना किसी औपचारिक डिग्री और परीक्षा पास किए बिना आप अपने अंदर पल रहे पत्रकार से लेकर साहित्यकार तक को यहां दिखाकर कथित अकादमिक लोगों के लिए चुनौती पेश कर सकते हो। आज मोबाइल कश्मीर की तरह लोगों के लिए अभिन्न अंग बन गया है। स्मार्ट फोन न हुआ कृष्ण की बांसुरी हो गया। पत्नियाँ के लिए फोन न होकर सौतन हो गया है। पत्नियों की ये आम शिकायत हो गई है कि हमारी क्या जरूरत फोन जो है।
vivek dutt mathuriya
journalistvivekdutt74@gmail.com
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