प्रभुनाथ शुक्ल
धर्म और संस्कृति की नगरी काशी एक बार फिर दहशतगर्दों के निशाने पर थी। लेकिन बाबा भोलेनाथ की निगहबानी से एक और आतंकी साजिश विफल हो गयी। एक बड़ा हादसा टल गया। वरना नापाक मंसूबे के इरादे अपनी साजिश में कामयाब हो जाते। नापाक साजिशों के मंसूबे बेहद खतनाक थे। इस भयावहता की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। लेकिन काशी और उसके वासी सुरक्षित रह गए। बाबा के साथ गंगा मइया की भी बड़ी कृपा रही। अगर आतंकी साजिश कामयाब हो जाती तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जबाब देना मुश्किल होता। क्योंकि देश के पीएम का संसदीय क्षेत्र हैं। हमारी काशी आतंकी साजिश से बच निकली। चौथी बार इसे निशाना बनाया गया। शनिवार को वाराणसी कचहरी में गेट नम्बर-दो के पास से एक बैग में दो हैंडग्रेनेड बम पाया गया । विस्फोटक परिवार न्यायालय के करीब मनोरंजन कक्ष के पास रखा मिला।
वाराणसी कचहरी में विस्फोट की यह दूसरी कोशिश थी। क्योंकि भीड़ भाड़ के लिहाज से कचहरी परिसर सबसे व्यस्त जगह है। हलांकि बम को निष्क्रीय कर दिया गया है। बैग में दो बम मिले थे। यहां आम लोगों की अधिक भीड़ रहती है। अगर आतंकी मंसूबे अपनी योजना में कामयाब हो जाते तो काशी खून से लथपथ हो जाती। चारों तरफ चीख पुकार और करुण क्रंदन गूंजता। लेकिन भला हो भोलेनाथ का जिनकी कृपा से काशी का कुछ नहीं बिगड़ा। इस घटना के बाद कचहरी में अफरा-तफरी का महौल बन गया। सुरक्षा को देखते हुए पूरी कचहरी को खाली करवा दिया गया। अफसरों की मौजूदगी में पूरे कचहरी परिसर की तलाशी ली गयी। खोजी कुत्ते भी लगाए। इसके पहले 2006 में संकट मोचन मंदिर और कैंट स्टेशन पर बम ब्लास्ट हुए थे। जबकि 2007 में सिविल कलेक्टेट परिसर में बम विस्फोट हुआ था। जिसमें 30 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। गंगा आरती के दौरान शीतला घाट पर शाम को महा आरती के समय ब्लास्ट हुआ था। जिसमें मासूम बच्ची की मौत हुई थी। जबकि बीस से अधिक लोग घायल हुए थे जिसमें चार से अधिक विदेशी सैलानी विस्फोट से घायल हुए थे। हमारे लिए यह चिंता का विषय है। काशी आतंकी साजिश को लेकर बेहद संवेदनशील है। बावजूद हम इसे लेकर सतर्क नहीं हैं।
सवाल यह उठता है कि जब बनारस में तीन-तीन बार ब्लास्ट हो चुका है। जिसमें कई लोगों की जान जा चुकी हैं। आतंकियों ने कुकर बम का भी इस्तेमाल किया था। लेकिन इसके बाद भी हमारी सुरक्षा एजेंसियों की नींद क्यों नहीं खुलती है। कचहरी को दूसरी बार निशाना बनाया गया है। कहा जा रहा है कि वहां तीन हैंडग्रेनेड बरामद हुए हैं। सवाल उठता है कि कचहरी की सुरक्षा बेहद संवेदनशील है। ऐसी स्थिति में वहां मौजूद सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही थी। इतनी संवेदनशीलता के बाद भी बैग में बम कैसे पहुंच गया। हमारे लिए यह बड़ी चुनौती है। निश्चित तौर पर यह हमारी सुरक्षा में सेंध हैं। अभी तो यह जांच का विषय है कि बरामद हैंडग्रेनेड किस क्षमता के हैं। उनकी विस्फोटक शक्ति क्या थी। यह आंच के बाद ही पता चलेगा। इसमें किस प्रकार के रसायनों का उपयोग किया गया। क्या काशी में इसके पहले जो विस्फोट हुए कहीं यह विस्फोट उसी से मिलते जुलते तो नहीं हैं। इस घटना का तार किस आतंकी संगठन से जुड़ा है। जैसे कई सवाल हैं जो काशी के भुगते बीते हुए कल को लेकर उठ रहे हैं।
सवाल उठता है कि कहीं यह आतंकी साजिश है या किसी गैंगवार की रिहर्सल। इस पर हमें विचार करना होगा। यह जांच के बाद पता चलेगा कि आखिर कचहरी में यह विस्फोटक कैसे और किसके जरिए से इसे लाया गया। यह आतंकी साजिश का ही हिस्सा है या फिर इस वारदात के पीछे कोई दूसरी साजिश है। सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी के बाद भी विस्फोटक इतने आराम से कैसे पहुंच गया। आतंकी या इस साजिश को अंजाम देने वाले किस बात का इंतजार कर रहे थे ? परिसर में वे अधिक भीड़ बढ़ने के इंतजार में थे या और किसी मकसद से यह साजिश रची गयी थी। आतंकियों की तरफ से बड़ी तबाही मचाने की साजिश का यह हिस्सा तो नहीं था ? हलांकि यह सब जांच का विषय है। अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन इस घटना ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था की बखिया उधेड़ कर रख दिया है। सवाल उठजा है कि परिसर में मौजूद सुरक्षाकर्मी क्या कर रहे थे। मुख्यगेट पर क्या चेकिंग नहीं की जाती है। क्या चेकिंग की गयी थी। अगर चेकिंग की गयी थी तो यह विस्फोटक कैसे परिसर में पहुंचा?
आतंकी या दूसरी साजिशें जिन्होंने इस प्लानिंग को अंजाम दिया अगर वे कामयाब हो गए हो गए होते तो तो क्या होता। इतनी लापरवाही क्यों और कैसे बरती गयी। इसका जबाब वाराणसी जिला प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों को हर हाल में देना होगा। काशी देश की सांस्कृति और संस्कार का दिल है। इसकी गरिमा और सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। इसका जबाब जिम्मेदार लोगों को देना पड़ेगा। इस अव्यवस्था का कौन जिम्मेदार और जबाबदेह है। आज काशी में कोहराम मचा होता। न्याय का मंदिर बेगुनाहों के खून के छींटे से सना होता। बेमतलब निर्दोष लोग मारे जाते। हम आंसू बहा रहे होते और नापाक साजिशें कामयाबी का जश्न मनाती। इतनी संवेदनशीलता के बाद लापरवाही क्यों। जबकि पूर्व के विस्फोटों से यह साफ हो गया है कि शीतला घाट, कचहरी और संकट मोचन पर हुए विस्फोट एक आतंकी साजिश थे। फिर इस तरह की लापरवाही समझ में नहीं आती है। क्या काशी की सुरक्षा बाबा और कोतवाल के भरोसे ही है। हमारी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। अपने आप में यह प्रश्न है। हमारी नाक के नीचे एक बड़ा षड़यंत्र बुन दिया गया और हमें भनक तक नहीं लगी। यह हमारे लिए यह चिंता और चुनौती की बात है। जांच की प्रक्रिया तक हमें इंतजार करना होगा। साजिश बेनकाब होने के बाद ही यह पता चल सकता है कि तबाही के पीछे किसका दिमाग था। लेकिन कचहरी की घटना से सबक लेते हुए काशी की सुरक्षा पर आत्मंथन का की जरुरत है।
लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क : 892400544
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