24.4.16

अंग्रेजी नहीं, भारतीय न्याय की आवश्यकता

लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ में एक स्तंभ ऐसा है जिसे लेकर पूरे देशवासियों में दर्द में है। न्यायालय में सवा तीन करोड़ पेंडिंग मामले तीस करोड़ लोगों को प्रभावित करते हैं। और लोग यही चाहते है कि न्याय उनकी पहुंच में हो। अब संचार क्रांति का युग है। और आवेदक भी यही चाहते हैं कि कोर्ट आधुनिकता के हिसाब से चले। आनलाइन केस फाइल करने की सुविधा मिले। केस फाइलिंग के लिए वकीलों पर निर्भर ना रहना पड़े। हर दिन कोर्ट के चक्कर ना लगाने पड़े। आनलाइन जवाब और फोन पर बयान और आनलाइन उपस्थिति की सुविधा मिले। यह सुविधा सरकार ने अपने हिसाब से तय तो कर ली लेकिन लोगों तक सुविधा नहीं पहुंची। मप्र सरकार ने ईमेल से प्रशासन के जवाब को कानूनी मान्यता दे दी। केन्द्र सरकार भी पहल रही है। लेकिन वकील राज के कारण न्याय की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।


अभी कोर्ट के हालात
कोर्ट में जाकर देखें तो हर दिन गरीब सुबह से कोर्ट परिसर में शाम तक बैंठे रहते है और शाम को पता चलता है कि आज जज साहब नहीं बैंठे पेशी बढ़ गई। अब उस गरीब का दिन भर बर्बाद हुआ, उस दिन काम नहीं किया तो मजदूरी भी गई। वकील को फीस दी सो अलग। इस तरह १० लोग १० दिन पीछे गए। ना तो उस कीमती वक्त की भरपाई होगी ना ही मजदूरी की। इससे देश का विकास व्यापक तौर पर प्रभावित होता। हर साल ५ लाख करोड़ रुपए सिर्फ न्याय व्यवस्था में चौपट हो जाते हैं। जिससे वकील, बाबू, चपरासी को दी जाने वाली घूस और समय की बर्बादी भी शामिल है। पता नहीं देशवासियों और सरकार को यह कब समझ में आएगा। कोर्ट में इतना भ्रष्टाचार है कि बाबू आपके केस की फाइल क, का में गलती देखकर रोक देगा। और जो ५०० रुपए देगा उसकी गलती खुद सुधार देंगे।

त्वरित न्याय की आवश्यकता
भारत में लोगों को त्वरित न्याय की आवश्यकता है। जैसे पहले पंचायत में किसी समस्या का समाधान एक दिन में हो जाता था और दोनों पक्ष संतुष्ट हो जाते है उसी तरह देश में न्याय की जरूरत है। ना कि एक विकासशील देश को अंग्रेजों के कानून और न्याय की आवश्यकता है। यह बड़े लोगों के लिए है गरीबों के लिए नहीं। इसके लिए भारतीय न्याय व्यवस्था में भी सुविधा है। कि लीगल सर्विसेज आथोरिटी एक्ट १९८७ की धारा २१ के तहत आवेदक अपनी समस्या के समाधान को  लेकर आवेदन करता है। और कोर्ट उसे नोटिस देकर बुलाता है। दोनों पक्षों में राजीनामा कराया जाता है और अंत में डिक्री पारित हो जाती है। जिसकी अपील भी नहीं होती। यह प्रक्रिया पूरी होने में मात्र दो से तीन माह का समय लगता है। यह न्यायालीन प्रक्रिया का हिस्सा होते हुए भी प्रकरण नहीं चलता। लेकिन कई जज व वकील इस कानून को या तो जानते ही नहीं या सुनवाई ही नहीं करते ना ही करना चाहते।

कैसे खत्म होगी धांधली
फिलहाल तो सबकुछ आनलाइन करने की जरूरत है। अर्थात् कोर्ट में आनलाइन फाइलिंग की सुविधा मिले। उपस्थिति में आधार कार्ड और बायोमेट्रिक हस्ताक्षर महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकते हैं। जिससे फ्राड होने की संभावना ना के बराबर होगी। आवेदक व अनावेदक को कोर्ट में तभी बुलाया जाए जब उसकी सख्त जरूरत हो। नहीं तो सवाल जवाब आनलाइन के माध्यम से, फोन या वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से हो। साथ ही यह सुविधा मिले कि यदि आवश्यक हो तो आवेदक या अनावेदक पास के कोर्ट में उपस्थित होकर देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष गवाही दे सके है। उक्त प्रक्रिया से वकीलों की भीड़ कम होने के साथ ही न्याय प्रक्रिया भी बोझिल नहीं होगी। सबसे महत्वपूर्ण होगा कि देश वासियों का समय बचेगा जिससे देश का विकास चौगुनी गति से होगा। वही सरकार को भी ऐसे कानून रद्द करने चाहिए जो लोगों को परेशान करने के लिए बने हैं।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
maheshwari_mishra@yahoo.com

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