11.4.16

आईसक्रीम पार्लर (कहानी)

सक्षम द्विवेदी

आइसक्रीम से उसके होंठों का रंग गुलाबी से नारंगी हो जाता था। ये देखकर वैदिक के लिए उस सस्ती सी स्टिक वाली आरेंज की आइसक्रीम की वास्तविक कीमत लगा पाना मुश्किल हो जाता था। जैसे-जैसे आइसक्रीम का रंग फीका होता जाता उसके होठों का रंग और गाढ़ा होता जाता। घुटने के चोट के निशान के बाद आरेंज की आइसक्रीम ही थी जो कि शर्मिष्ठा को बेहद खुशी प्रदान करती थी।

वैसे तो ज्यादातर लड़कियों के घुटने या कोहनी में कोई न कोई चोट के निशान होते ही हैं, जो कि उन्हे सामान्यतः 6th से ग्रेजुएशन के बीच कभी लगती है। इसके बाद ये तो पता नहीं कि वे अपना जीवन खुद स्थिर कर लेतीं हैं या हो जाता है लेकिन ऐसी शारीरिक चोटें लगना बन्द हो जातीं हैं और जो चोटें लगना शुरू होतीं हैं उनके निशान कहीं नजर नहीं आते हैं।

शर्मिष्ठा को अपने घुटने की चोट के निशान से बेहद लगाव था, ऐसा शायद इसलिए था क्यों कि वो उसको अपने बचपन के निशान के रूप में संरक्षित एक चीज समझती थी। वो अक्सर उस चोट के निशान को आधार बनाकर अपने बचपन के किस्से सुनाना शुरू कर देती थी। उसकी बातों से ऐसा लगता था कि उसका बचपन बहुत खूबसूरत था और वो उसे अपने मन में कहीं न कहीं सुरक्षित रखना चाहती थी। इसीलिए वो आंरेज की आइसक्रीम भी बहुत पसंद किया करती थी। उसके घुटने के निचले हिस्से में अंग्रेजी के ‘वी’ के आकार का एक चोट का निशान था, जब वो सीधी खड़ी रहती थी तब वो ‘वी’ स्पष्ट नजर आता था लेकिन जब उसका घुटना मुड़ता था तब वो निशान कुछ ऊपर चला जाता था और जिस बिन्दु पर रेखाओं के मिलने से ‘वी’ बनता था वो लुप्त हो जाता था तथा ‘वी’ दो समानान्तर रेखाओं जैसा दिखता था। शर्मिष्ठा कभी-कभी काफी देर तक बैठकर उस निशान को देखा करती थी और खयालों में चली जाती थी।

वैसे शर्मिष्ठा ने वैदिक से अपने वर्तमान को लेकर कभी असंतुष्टता जाहिर नहीं की थी। वैदिक और शर्मिष्ठा 1-2 दिन में शाम के समय आइसक्रीम पार्लर का एक चक्कर जरूर लगा लिया करतेे थे। आइसक्रीम पार्लर एक चैराहे पर था दोनो वहीं तक साथ आते शर्मिष्ठा आईक्रीम खाती दोनों में कुुछ देर बातें हुआ करती और शर्मिष्ठा शाप के बांयी तरफ वाली सड़क पर चली जाती और वैदिक सामने वाली सड़क की ओर।

वैदिक उसके बाद तीसरे चैराहे पर बनी एक काफी शाप जाता और काफी और एक नमकीन का पैकेेट लेता फिर कुछ देर अखबार और मैग्जीन पढ़ने लगता। काफी की इस वाली शाप पर वैदिक ने अभी हाल ही में जाना शुरू किया था पहले वो आइसक्रीम के चैराहे वाली दुकान पर ही काॅफी पिया करता था लेकिन एक बार वो इस दुकान पर गया,इस दुकान की संचालिका ऋतु थी वो काउंटर के सामने एक कुर्सी पर बैठा करती थी और उसके नीचे जमीन पर उसका लगभग साढ़े तीन साल का पुत्र बैठकर पेंसिल से लिखने की प्रैक्टिस किया करता था। इस शाप में सेल्फ सर्विस थी। वैदिक ने एक फुल काफी ली जो कि 17 रूपये की थी तथा और एक नमकीन जो कि 5 रूपये का था। दोनों को लेकर वैदिक कुर्सी में बैठकर अखबार वगैरह पढ़ने लगा। लौटते समय उसने 100 रूपये की एक नोट ऋतु को दिया उसने उसे 75 रूपये लौटाए और काउंटर में बने दराज से दो टाॅफी निकालकर दे दी और बोला कि चेंज नही है, वैदिक ने देखा कि उस दराज में 1 रूपये से 5 रूपये तक के 15-20 सिक्के थे। फिर वैदिक ने ऋतु और मैट पर बैठकर पढ़ रहे पुत्र को एक बार देखा तथा वो 75 रूपये भी ऋतु को लौटाते हुये कहा कि आप इनके लिए टाफी ले लीजिएगा। इसके बाद से वैदिक रोज यहां पर आकर एक काफी और नमकीन लेता तथा एक सौ की नेाट देकर चला जाया करता था। हां इसके परिणाम स्वरूप दुकान में सेल्फ सर्विस होने के बावजूद ऋतु कभी-कभी वैदिक को काफी सर्व कर दिया करती थी और वैदिक के आने पर गुड ईवनिंग भी बोल दिया करती थी।

उस शाम को शर्मिष्ठा थोड़ी थकी हुयी सी अपने आफिस से लौटकर आइसक्रीम पार्लर में वैदिक का वेट कर रही थी और पार्लर के बाहर मार्बल की बनी कुर्सी पर बैठ गयी कुछ देर में वैदिक आया और एक आइसक्रीम के साथ बातें होना शुरू हुयी। शर्मिष्ठा मेटास कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थी, पर लगातार काम करने से कुछ बोरियत और थकान महसूस करने लगी थी। उसने वैदिक से बोला आओ 3-4 दिन के लिए कहीं घूम कर आते हैं, मैं आफिस से छुट्टी ले रहीं हूं। वैदिक ने कहा मैं भी कुछ काम निपटा लूं। हम आज से तीसरे दिन ये प्रोग्राम रखते हैं, शर्मिष्ठा ने कहा ठीक है। दोनो ने शहर से लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर एक वाटरफाल घूमने का प्लान बनाया हालांकि वो कोई बहुत प्रसिद्ध टूरिस्ट प्वाइंट नहीं था, पर शहर से दूर साथ बिताने के लिए एक बेहतर जगह थी।
तीन दिन बाद दोनो उस शहर गये जहां पर वाटरफाल था। उसकी दूरी स्टेशन से लगभग 30-32 कि0मी0 थी। मौसम बहुत गर्म था अतः दोनो ने सोचा कि अगर अच्छा लगा तभी यहां पर रूकेगें नही तो एक दिन में लौट जाएंगे। दोनो स्टेशन में चर्चा कर रहे थे कि 12 घंटे चेक आउट वाला होटल लिया जाए या 24 घंटे वाला। वैदिक ने बोला पहले जहां पर होटल हैं वहां चला जाए तब तय किया जाएगा कौन सा लेना है। दोनो ने एक आटो में बैठ गये, वैदिक पहली बार शर्मिष्ठा के साथ आटो पर बैठा था,दोनो ड्राइवर के पीठ की तरफ मुंह करके दरवाजे की दांयी तरफ वाली सीट पर बैठे थे। वैदिक खिड़की की तरफ था और शर्मिष्ठा उसके बांये दरवाजे की तरफ। तभी तक एक और सवारी आकर शर्मिष्ठा के बांयी ओर दरवाजे की ओर बैठ गयी। अब शर्मिष्ठा वैदिक और उस सवारी के बीच में हो गयी। शर्मिष्ठा उठकर वैदिक की दांयी ओर खिड़की की तरफ कोने में चली गयी। अब वैदिक ने आटो ड्राइवर से कहा कि अब इस सीट पर किसी को मत बैठाईयेगा एक अतिरिक्त सवारी का खर्च हमसे ले लीजिएगा, वैसे तो उस सीट पर चार ही लोग ठीक से बैठ सकते थे पर ड्राइवर ने शर्मिष्ठा को देखकर कहा कि इसमे पांच सवारी बैठा करती है तब वैदिक ने बोला अच्छा भाई ठीक है आप हमसे दो सवारी का अतिरिक्त खर्चा ले लीजिएगा पर अब किसी को मत बैठाइये और चलिये। शर्मिष्ठा के इस तरह उठ कर इधर बैठ जाने की घटना के बाद से वैदिक उस पर अपना कुछ अधिकार सा समझने लगा था।

दोनो थोड़ी देर में होटल वाली रोड पंहुच गये और एक 24 घंटे चेकआउट वाले होटल का चयन किये। होटल का नाम विक्रान्त प्लाजा था,कई होटलों में लेक व्यू,माउंटेन व्यू,सी व्यू वगैरह वगैरह लिखा होता है। पर उस औसत से होटल में गार्डेन व्यू लिखा था जो दर्शाता था कि बालकनी से बगल वाला गार्डेन दिखेगा। दूसरी मंजिल का कमरा नं0203 बुक किया गया।शर्मिष्ठा सीढ़ी से ऊपर जाने लगी वो चैथी सीढ़ी पर थोड़ा सा फिसली और फिर रेलिंग पकड़कर संभल गयी और चली गयी। शर्मिष्ठा जब भी सीढ़ी चढ़ा करती थी तब वो एक-एक सीढ़ी छोड़कर अगला पांव रखती थी यानी पहली के बाद तीसरी फिर पांचवी इस क्रम में। लेकिन उतरते समय एक-एक सीढ़ी पर पांव रखा करती थी।

रूम पर पहले शर्मिष्ठा पंहुच गयी थी फिर वैदिक आया। वैदिक ने सबसे पहले पीने के लिए पानी मंगाने की सोचा और रूम सर्विस वाला स्विच दबाया पर पूरे बोर्ड में एक वही स्वीच खराब था। वैदिक बाहर जाकर एक मग में पानी ले आया। फिर वैदिक ने सोचा इस ‘गार्डेन व्यू’ वाले होटल से कम से कम गार्डेन तो देख ही लिया जाए,इसलिए उसने खिड़की खोली लेकिन खिड़की खोलते ही उसमें एक बड़ा सा मधुमक्खी छत्ता नजर आया अतः उसने अपने गार्डेन देखने की इच्छा का तत्काल परित्याग करते हुए जल्दी से खिड़की को बंद कर दिया। शर्मिष्ठा ने बोला बाहर गर्मी बहुत है सोच रहें है कि नहाकर थोड़ा अच्छा महसूस होगा, इतना कहते हुये वो नहाने चली गयी। नहाने के बाद बाथरूम से वो पर्पल कलर की मैक्सी और सिर में टाॅवेल लपेटे हुये निकली और वैदिक से बोली आप भी नहा लीजिए। वैदिक ने भी नहाने के लिए अपनी शर्ट का पहला और दूसरा बटन खोला फिर शर्मिष्ठा को देखा और दोनो बटन फिर से बंद कर लिए और बोला हम शाम को नहाएंगे आप फेसवाश दे दीजिए मुंह धो लेते हैं। वैदिक जब तक मुंह धो रहा था शर्मिष्ठा तब तक बाहर चलने के लिए तैयार हो रही थी। शर्मिष्ठा ने अपनी गर्दन के पिछले हिस्से में मस्क का डीओ लगाया और अपने बाल खोल लिये। वैदिक भी चलने के लिए तैयार हो गया,निकलते समय वैदिक ने शर्मिष्ठा से कहा कि बाहर काफी पैदल चलना पड़ेगा इसलिए हील वाली सैडिंल उतारकर स्लीपर पहन ले लेकिन उसे हाइट में वैदिक से कम दिखना मंजूर नहीं था, इसलिए उसने नहीं उतारी और बोला मैं इसी में कंफर्ट फील करती हूं।

दोनो लंच करने के लिए बाहर टहलने लगे, बाहर बहुत गर्मी थी। टहलते-टहलते उन्हें एक शाप दिखी जहां पुराने जमाने का एक बड़ा सा कूलर लगा हुआ था,गर्मी बहुत थी इसीलिए कूलर की हवा लेने के लिए बेवजह ही उस दुकान में जाकर समान देखने लगे और एक पेन खरीद भी लिये। फिर कूलर के सामने जाकर खड़े होने के लिए दोनों में थोड़ी बहस होने लगी, वैदिक बहस जरूर कर रहा था पर वो जानता था कि करना वही है जो शर्मिष्ठा चाहती है। शर्मिष्ठा के कूलर के समाने खड़े होते ही मस्क की महक लिये हुए एक ठंडा हवा का झोंका आया उसके बाद कुछ सेकेण्ड के लिए वैदिक ने अपनी आंखे बंद कर लीं।फिर शर्मिष्ठा ने वैदिक से बोला कि अब आप कूलर के सामने खड़े हो जाइये पर वैदिक ने कहा नहीं आप ही खड़ी रहिये हम धूप से सीधे ठंडे में आते हैं तो मेरी तबीयत खराब हो जाती है। तभी तक दुकानदार दोनो को रूखसत करने के लिए बोला और कुछ चाहिये आप लोगों को,वैदिक समझ गया कि एक पेन के बदले इतनी ही ठंडी हवा ली जा सकती है, उसने दुकानदार से बोला नहीं और कुछ नहीं चाहिये और दोनो बाहर चले गये। फिर दोनो जाकर वाटर फाल घूमे और गर्मी अधिक होने के कारण उसी रात वापस भी चले गये।

वापस आने के बाद वैदिक शर्मिष्ठा से कुछ अधिकारपूर्वक बातें करना शुरू कर दिया। उसके देर से आने का कारण,वो दोपहर में कहां थी ? घर पंहुचकर फोन क्यों नहीं किया वगैरह-वगैरह सवाल उससे पूछने लगा यहां तक कि उसे किसके साथ रहना चाहिये और किसके साथ नहीं ये भी उसे वैदिक ही बताने लगा। शुरू शुरू में वो इसे मजाक में टालने की कोशिश करती थी और बाद में जवाब देने के बाद कहने लगी ‘और कोई सफाई चाहिये’ और आखिर में तो एक दिन तंग आकर साफ-साफ बोल दी कि आप मेरी जिन्दगी की मानीटरिंग करना बंद कीजिए हमें अब आपसे कोई बात नहीं करनी है, वैदिक भी आवेश में आकर कह दिया मत कीजिए और चला गया।

बाद में उसे लगा कि उसने कुछ गलत बोल दिया है और वो शर्मिष्ठा को फोन लगाने लगा लेकिन शर्मिष्ठा उसका नंबर देखते ही फोन काट देती थी।उसके बाद वैदिक शर्मिष्ठा से बात करने की बहुत कोशिश करता था पर वो नहीं करती थी। एक दिन उसने उसको लगातार कई काल लगाए पर हर बार उसने नंबर देखते ही कट कर दिया। वैदिक थोड़ा उदास मूड में जाकर काफी शाप में बैठ गया। ऋतु उसे काफी सर्व करने आयी और पूछी आज आप कुछ परेशान दिख रहें हैं वैदिक ने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। ऋतु उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी और पूछी बताइये क्या बात है ? वैदिक ने कहा कि एक काॅल करा सकती हैं हमें, ऋतु ने बड़े संकोच के साथ अपना मोबाईल वैदिक को दे दिया क्यों कि उसमें सिर्फ पांच मिनट बात करने का ही बैलेंस था। लेकिन वैदिक ने दस मिनट तक बात की। दरअसल उसने शर्मिष्ठा को ही काल लगाया था उसे लगा था वो दूसरे नंबर से काल तो रिसीव कर लेगी और शायद कुछ बात हो जाए, शर्मिष्ठा शायद हैलो बोलने ही वाली थी पर उसने वैदिक की आवाज सुनकर फोन कट कर दिया। पर हां, उसने एक सांस ली थी। और वैसे भी वो हैलो बोलती ही कहां थी? वो तो ‘हैल्लो’ बोला करती थी। फोन कट हो जाने के बाद भी वैदिक ऋतु को दिखाने के लिए बेवजह ही बोलता रहा। उसने जब ऋतु को उसका मोबाइल लौटाया तब ऋतु ने देख लिया कि मात्र 3 सेकेण्ड ही बात हुयी है लेकिन उसने कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की वैदिक किससे और क्या बातें करना चाहता था।वैदिक ने ऋतु से एकबार फिर मोबाइल मांगा और डायल किया गया नंबर डिलीट कर दिया और फिर ऋतु को दे दिया ये देखकर उसे थोड़ी सी हंसी आ गयी। इसके बाद से वैदिक जब भी काॅफी शाॅप में आता तो ऋतु उसकी सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाया करती थी और अपनी दिनचर्या बताने के साथ कुछ इधर-उधर की बातें किया करती थी। वैदिक को शर्मिष्ठा भी कभी-कभी आइसक्रीम पार्लर में दिखा करती थी पर अब वो आरेंज की जगह चाकोबार खाते दिखाई देती थी और कभी-कभी वैदिक को देखने के बाद चाकोबार छोड़कर फिर आरेंज वाली आइसक्रीम ले लिया करती थी। पर वैदिक से बात करने की उसने कभी भी कोई कोशिश नहीं की।

एक दिन जब वैदिक काफी शाप आया तो रोज की तरह ऋतु उसके पास आकर बैठ गयी और बातें करना शुरू कर दी। बात-बात में ही उसने बोला कि हमें आज शापिंग करने जाना है, मैं बहुत सालों से सारे काम अकेले ही कर रहीं हूं अगर आपके पास समय हो और कोई ऐतराज न हो तो आप साथ में लीजिए। वैदिक ने कहा चलिए चल लेते हैं। काफी शाप से मार्केट की थोड़ी ही दूरी थी इसलिए वैदिक ऋतु के साथ पैदल ही निकल गया। दोनों ने एक जगह रूककर कुछ स्नैक्स भी खाये , और चलते-चलते क्राॅसिंग पर आ गये वहां वैदिक को शर्मिष्ठा आइसक्रीम पार्लर में दिख गयी उसने पहले एक चाकोबार लिया था पर वैदिक को देखकर उसने आरेंज वाली आइसक्रीम ले ली। वैदिक ऋतु के साथ आगे चला गया। शर्मिष्ठा ने पहली बार वैदिक के साथ ऋतु को देखा था। उस दिन वैदिक को पीछे से आवाज आयी ‘‘वैदिक’’पर वैदिक आगे चला गया फिर आवाज आयी ‘ऐ वैदिक रूको’ वैदिक ने देखा पीछे से शर्मिष्ठा उसे बुला रही थी, वैदिक को यकीन नहीं हुआ। वैदिक पलटकर जाने लगा लेकिन ऋतु ने उसका हाथ पकड़ लिया उसने ऋतु का चेहरा देेखा और वैदिक रूक गया। उस दिन वैदिक की नजर शर्मिष्ठा के होंठ के बदलते रंग पर तो नहीं गयी पर उसका चेहरा आइसक्रीम के साथ-साथ फीका होता चला गया और वैदिक ऋतु के साथ आगे चला गया।

सक्षम द्विवेदी
रिसर्च आन इंडियन डायस्पोरा, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र।
20 दिलकुशा न्यू कटरा, इलाहाबाद, उ0प्र0
मो0नं07588107164

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