उत्तराखंड के राजनीतिक क्षितिज पर जिस दिन जोत सिंह गुनसोला जैसे सीधे-सच्चे, निर्गुटीय लोग चमकेंगे, उस दिन यहां के दिन बहुरने निश्चित हैं। दो बार मसूरी नगपालिका के अध्यक्ष रहे गुनसोला जी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक पहाड़ है। वे बाहर से जितने भारी-भरकम और कठोर काया वाले दीखते हैं, अंदर से उतने ही सहृदयी और सम्वेदनशील हैं। आज तक मुझे ऐसा आदमी नहीं मिला, जिसने यह बताया कि मैंने जोत सिंह के चेहरे पर आक्रोश देखा और उनके शब्दों में कटुता सुनी है।
उनका ठेठ पहाड़ी रहन-सहन और हर जुमले में फूटते गढ़वाली मुहावरे आदमी को उनका मुरीद बना देते हैं। मसूरी क्षेत्र के विधायक रहे जोत सिंह जी जितनी मीठी गढ़वाली बोलते हैं, उतनी ही बढ़िया अंग्रेजी भी। मसूरी के विकास में उनका योगदान कालजयी है। वे सकारात्मक सोच रखने वाले राजनीतिज्ञों में अग्रगण्य हैं। उनका लोगों को दिए जाने वाले आश्वासन पर एक जुमला 'ह्वे जालु-ह्वे जालु' (हो जाएगा-हो जाएगा) बहुत लोकप्रिय है। उन पर अभी तक भ्रष्टाचार और किसी अफसर से अभद्रता का कोई आरोप नहीं है।
उनके बारे में लोकविश्वास है कि जोत सिंह ने किसीका 'भला' नहीं किया हो तो बुरा भी नहीं किया होगा। उनके मन में उत्तराखण्ड के विकास की कई योजनाएं हिलोरें मरती हैं। वे उदारवादी कॉंग्रेसी हैं। कई बार तो केवल कॉंग्रेस के कार्यक्रमों और पुराने पद को देखकर ही पता चलता है कि उनका सम्बन्ध कॉंग्रेस से है।
गुनसोला जी के कारुणिक व्यवहार का एक वाकया मुझे बहुत याद आता है। 97 के दौर में मैं जब मसूरी टाइम्स में पत्रकार की नौकरी में लगा तो तनख्वाह बहुत कम थी। एक घटना को कवर करके किंक्रेग से पिक्चर पैलेस पैदल जा रहा था। भारी बारिश हो रही थी। मैं जोत सिंह जी को जानता था, पर वे मुझे नहीं जानते थे। वे तब पालिका अध्यक्ष थे। मुझे भीगता देख उन्होंने गाड़ी रुकवाई और मेरे गन्तव्य तक छुड़वा दिया। रास्ते में ऐसी स्नेहिल बातें कीं, जैसे वर्षों से मुझे जानते हों। क्या ऐसे व्यक्तियों को उत्तराखण्ड की सत्ता में नहीं होना चाहिए?
डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल
देहरादून
veerendra.bartwal8@gmail.com
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