31.5.16

तुम्हारे वादे, तुम्हारी फितरत, तुम्हारी दिल्ली... बदल गये हो जनाब कितना नवाब बनकर...

साहित्यिक संस्था ‘हिन्दी-उर्दू मंच‘ के तत्वावधान में पुलिस कार्यालय परिसर में एक मासिक तरही नशिश्त (गोष्ठी) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता उस्ताद शायर जनाब नाज़ प्रतापगढ़ी तथा संचालन शमसुद्दीन अज़हर द्वारा किया गया। आमन्त्रित सभी रचनाकारों द्वारा पूर्व से दी गयी समस्यापूर्ति (तरह) की पंक्ति  ‘ये कौन मुझमें महक रहा है गुलाब बनकर‘ पर अपनी-अपनी रचनायें प्रस्तुत की गयीं। प्रस्तुत की गयी रचनाओं के प्रमुख अंश इस प्रकार थे:-


नाज़ प्रतापगढ़ी के इस शेर को खूब पसन्द किया गया:-
        हमारा दुश्मन हमारा एहसासे-बर्तरी है,
        हमारे ज़ेह्नों पे जो पड़ा है नक़ाब बनकर।

डॉ0 राधेरमण त्रिपाठी ने तरह मिसरे पर इस तरह से गिर लगायी :-
        बहुत से भौंरे लिपट रहे हैं बदन से मेरे
        ‘‘ये कौन मुझ में महक रहा है गुलाब बनकर‘‘

शमसुद्दीन अज़हर के इन शेरों ने काफी वाहवाही लूटी:-
        छिपाओ कितना तुम्हारे दिल की जो कैफ़ियत है
        तुम्हारे चेहरे पे आ गयी है हिजाब बनकर।

रमाकान्त का यह शेर श्रोताओं द्वारा काफी सराहा गया:-
        तुम्हारे वादे, तुम्हारी फितरत, तुम्हारी दिल्ली
        बदल गये हो जनाब कितना नवाब बनकर।

शिवबहादुर सिंह ‘दिलबर‘ के इस शेर को पसन्द किया गया:-
        सवाल बनकर जो रह गये थे दिल-ओ-नज़र में
        वो यक-बयक खु़द क़रीब आये जवाब बनकर।

दानिश रायबरेलवी के इस शेर पर श्रोता वाह-वाह कर उठे -
        जहॉ से चाहे वरक़-वरक़ अब पढ़े वो मुझको
        मैं उसके हाथों में आ गया हूॅ किताब बनकर।      

प्रमोद प्रखर की जल संचयन के लिये कसक इस तरह दिखायी दी:-
        है रोज़ धॅसती धरा न दोहन रूका है जल का
        इसे बचाये कोई तो इज़्ज़त-मआब बनकर

राम कुमार सिंह का ग़ज़ल के रंग का यह शेर काफी सराहा गया:-
        कभी निगाहों से कत्ल होते दिलों को देखा
        कभी निगाहों से जाम छलके शराब बनकर।

कृष्ण कुमार अवस्थी ‘श्याम‘ यह यह शेर श्रोताओं को अच्छा लगा:-
        शऊर निकाला सफ़र प सज लाजवाब बनकर
        कभी न देखी, पढ़ी न जैसी किताब बनकर।

अरविन्द कुमार साहू का यह शेर श्रोताओं ने काफ़ी पसन्द किया -
        ये मेरी ग़ज़लें, जो तर्जुमा हैं, मेरी वफ़ा का
        छुएंगी इक दिन तेरी नज़र को किताब बनकर।

रामकुमार सिंह ‘पागल‘ का यह शेर श्रोताओं को अच्छा लगा -
        ये देखो उसकी नषीली ऑखों का ही असर है
        छलक रहा है अभी तलक जो शराब बनकर।
       
गोष्ठी में प्रमुख रूप से आलोक सिंह, राममिलन यादव, अमरदीप, मो0ज़फ़र, राजेन्द्र यादव, विवेक सिंह, जितेन्द्र सिंह यादव, भगवानबक्ष सिंह, पंचम सिंह, अफ़ज़ाल जमील आदि मौजूद थे। अन्त में अगली गोष्ठी (05 जून 2016) के लिये निर्धारित तरह मिसरा ‘ख़ुदा करे कि आपका हरेक पर करम रहे‘ की घोषणा के साथ गोष्ठी समाप्त हुई।
   
शमसुद्दीन अज़हर
मो0नं0-9415954956

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