आज राष्ट्रीय सहारा छपा या नहीं, छपा तो कौन-कौन सा एडिशन। सारे संस्करण छपे या केवल सिटी। आज हडताल रहेगी या अखबार छपेगा। कुछ ऐसी ही खबरों/अफवाहों से पिछले कई माह से दो-होना पड रहा है सहारा मीडिया में काम करने वाले और छोड़ (चाहे सेफ एक्जिट प्लान के तहत नौकरी छोडने वाले हों या दूध में पडी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिये जाने वाले कर्मचारी हों) देने वाले कर्तव्ययोगी हों।
सहारा मीडिया प्रिंट में जहां दो-तीन दिनों से अखबार का प्रकाशन बाधित है वहीं खबरिया चैनल भी पुरानी खबरों के सहारे खुद को जीवित रखे हुए है। पहले अखबार के मुखिया " काल-कोठरी " मेरे प्यारे-प्यारे साथियौं (यह उनका प्रिय तकीयाकलाम है) कहकर कर्मचारियों को चूतिया बनाते थे कि वे जेल में होने के कारण मजबूर हैं, सारे खाते अदालत ने सीज कर रखें हैं, आप धैर्य बनाये रखिए जिस तरह से समुंद्र मंथन में विष के बाद अमृत निकला था वैसे ही सहारा-सेबी के मामले में होगा। कहां गया वो अमृत ? जिसका रसपान वो जेल में होने के कारण अपने " प्यारे-प्यारे को नहीं करा पा रहे थे।
मित्रों याद होगा आपके मुखिया ने जेल में रहते ईमेल के माध्यम से तीन संदेश भेजा था। कमोबेश हर संदेश में संस्था की माली हालात ठीक होने की बात कही थी और ये भी कहा था कि देनदारी से ज्यादा वो सेबी को दे चुके हैं और यही पैसा जब मिलेगा तो वे उसे अपने छोटे कर्मचारियों की भलाई में लगायेंगे। अब तो वे बाहर आ गए। क्या एक भी संदेश कर्मचारियों के लिए भेजा है नहीं तो क्यों ??? क्या एक ईमेल के माध्यम से अपने प्यारे-प्यारे साथियों को वास्तविकता से अवगत नहीं करा सकते थे।
याद करिये जिस एक पत्र पर मीडिया के कर्मचारी काम पर वापस आये थे उसमें खुद को "परम पूज्यनीय" कहलवाने वाले सहाराश्री ने क्या वादा किया था। जब प्रदीप मंडल नामक कर्मचारी ने आफिस की सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दी थी उसके तुरंत बाद तिहाड़ जेल की काल-कोठरी से सहारा सुप्रीमो जो खुद को सबका अभिभावक कहते हैं ने अपने ईमेल के जरिए क्या संदेश दिया था।
मित्रों, बडे-बुजुर्गों ने कहा है कि " सीधी उंगली से घी नहीं निकलता। यदि घी निकलना चाहते हैं अपनी-अपनी उंगलियों को टेढी करना पडेगा। भडास4मीडिया के माध्यम से कई बार पढने को मिला कि फलां दिन वेतन नहीं मिला हडताल करेंगे कर्मचारी लेकिन हडताल हुई नहीं। कभी देवकी नंदन मिश्रा ने हडका दिया तो कभी दया शंकर राय ने मीठी गोली दे दी। वाराणसी संस्करण में अब मिट्ठी गोली देने की जिम्मेदारी मनोज श्रीवास्तव को दी गई है। साथियों कुछ पाने के लिए आर-पार की लडाई लडनी पडेगी और यह तभी संभव है जब आप सब दृढ़ निश्चय के साथ एक हों वर्ना तो " सहाराश्री" चाहते ही हैं कि धीरे-धीरे लोग छोड़ दें और जो नहीं छोडेंगे उनका वही हाल करेंगे जो "शान-ए-सहारा और उसके आंदोलनरत कर्मचारियों का किया था। तब तो एकमात्र दबंग नेता का वरदहस्त था और इस बार तो पूरी की पूरी सरकार उन्हीं की है।
सहारा मीडिया से बडी खबर । राय बंधुओं पर गाज गिरनी शुरू। उच्च प्रबंधन ने उपेन्द्र राय के कृपा पात्र शशि राय से संपादक ओहदा छीन लिया है। जयचंद के नाम से जाने वाले श्री राय को लखनऊ से संबद्ध कर दिया गया वो भी एच आर में। गौरतलब है कि शशि राय सजातिय ही नहीं थे ये उस समय के सर्वेसर्वा उपेन्द्र राय के अति करीबी भी थे। सूत्रों की माने तो शशि के कंधे पर बंदूक रखकर रणविजय सिंह को निशाना बनाया गया था। एक रणनीति के तहत पिछले साल हुई हडताल को लीड करने वाले बृजपाल चौधरी को बदनाम कर आंदोलन खत्म कराया गया और शशि राय को नए नेता के रूप में स्थापित ही नहीं किया गया। बाद में उन्हें वाराणसी संस्करण के संपादक पद से नवाजा गया। नोएडा में श्री राय छोटे से ओहदे पर थे। बहरहाल श्री राय को शायद पता नहीं कि "जयचंदो" का यही हाल होता है। वो शायद यही सोच रहें होंगे कि "बडे बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले।
कुमार कल्पित
No comments:
Post a Comment