लोकमान्य तिलक व कांग्रेस के संबंधों के सच पर प्रकाशित पुस्तक का वेंकैया ने किया विमोचन
डॉ. गिरीश दाबके द्वारा संपादित इस मराठी पुस्तक ‘लोकमान्यांची सिंहगर्जना – वेध एका शतकाचा’ में लोकमान्य तिलक व कांग्रेस के बारे में कई छुपे हुए रहस्यों से परदा उठाया गया है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कांग्रेस द्वारा की गई लोकमान्य तिलक के विचारों की अवहेलना, कांग्रेस द्वारा उनके साथ किए गए अंग्रेजों जैसे व्यवहार एवं तिलक द्वारा गणेशोत्सव की शुरूआत करते समय कांग्रेस द्वारा उनका साथ न देने जैसे विषयों की विवेचना है। इस पुस्तक में जेश के जाने माने लेखकों के तिलक के बारे में विचार एवं विवेचना इस पुस्तक में है। कांग्रेस के 60 सालों के शासनकाल को दौरान लोकमान्य की प्रतिभा को नकारकर उनके सुराज्य को सपने की की गई अवहेलना का भी विश्लेषण है। इसी के साथ सरदार पटेल एवं बाबासाहेब आंबेडकर की ही तरह लोकमान्य टिलक के साथ किए गए कांग्रेस द्वारा के भेदभाव एवं तिलक के सपनों की आजादी के मुकाबले कांग्रेस द्वारा गुलामी से भरी आजादी की स्वीकार्यता किए जानमे की भी इस पुस्तक में व्याख्या की गई है। मैजेस्टिक पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस मराठी पुस्तक में लोकमान्य तिलक की वास्तविक प्रतिभा एवं कांग्रेस द्वारा उनके दमन को उभार गया है।
केंद्रीय आवास मंत्री नायडू ने विमोचन समारोह में कहा कि स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, लोकमान्य की यह सिंहगर्जना आज भी हर व्यक्ति में एक नए उत्साह का संचार करती है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि भारत का इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने उस समय लोकमान्य तिलक के विचारों की अवहेलना नहीं की होती तो सुराज्य पाने के लिए हमें 70 साल तक राह नहीं देखनी पड़ती। भाजपा के वरिष्ठ विधायक मंगल परबात लोढ़ा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि कांग्रेस ने लोकमान्य तिलक के विचारों की अवहेलना करके गुलामी से भरी हुई आजादी स्वीकारी, इसी कारण देश में आज भी समस्याओं की भरमार है। इस मौके पर वित्तमंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में लोकमान्य की सिंहगर्जना स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है का विशेष महत्व है। पुणे के पालक मंत्री गिरीश महाजन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि उस जमाने में कांग्रेस द्वारा लोकमान्य तिलक के विचारों की अवहेलना नहीं की गई होती, तो देश की दशा-दिशा आज कुछ और ही होती।
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