13.8.16

एक रिहाई वारंट पर दो बंदी की रिहाई

हाईकोर्ट से पिता का रिहाई वारंट जारी हुआ और पिता के साथ बेटे को भी रिहा किया, लापरवाही छिपाने मीडिया से बचते रहे सहायक जेलर, दो सप्ताह बाद नींद से जागा जेल प्रबंधन

मनेंद्रगढ़। यहां के उपजेल में सहायक जेलर की लापरवाही से दहेज व हत्या के प्रयास के मामले में जेल में बंद बंदी को रिहा कर दिया गया। हुआ यू कि गुरुवार सुबह यहां एक कैदी के गलत तरीके से छोड़े जाने का मामला सामने आया है। दरअसल मनेंद्रगढ़ उप जेल में दहेज को लेकर प्रताड़ित करने व हत्या के प्रयास मामले की धारा 307 में पिता — पुत्र जेल में बंद थे। इस बीच 26 जुलाई को पिता का रिहाई वारंट जारी हुआ और सहायक जेलर सतीश चंद भार्गव की लापरवाही से पिता व पुत्र दोनों को रिहा कर दिया गया। इसके बाद जब 6 अगस्त को पुत्र की कोर्ट में पेशी के कागजात जेल प्रबंधन के पास पहुंचे तो जेल प्रबंधन ने कोर्ट को यह लिखित में दिया कि उसके रिहाई वारंट पर रिहा कर दिया गया है। इसके बाद कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा भेजी गई रिहाई की कापी को भेजते हुए जेल प्रबंधन को यह स्पष्ट किया कि रिहाई आदेश पिता के नाम से जारी हुआ था न कि पुत्र के नाम से। फिर क्या था सहायक जेलर की नींद उड़ी और आरोपी पुत्र को ढुंढ़ने जेल के स्टाफ के साथ निकल पड़े।


एक तो सहायक जेलर से इतनी बड़ी चूक हुई वही दूसरी और 26 जुलाई को पिता के साथ पुत्र की रिहाई का उल्लेख जेल के रजिस्टर में बकायदा किया गया। इस बीच 15 दिनों तक आरोपी पुत्र खुलेआम घूमता रहा। यानी जेल प्रबंधन की कारगुजारिया से इतना तो साफ हो चुका है कि किस तरह बेसुध होकर मनेंद्रगढ़ उप जेल का प्रबंधन कार्य कर रहा है। जब जेल से गलत रिहाई की खबर मीडियाकर्मियों द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को दी गई तो सहायक जेलर के मानों होश ही उड़ गए। गुरुवार की सुब​ह वह अपने जेल के कर्मचारियों के साथ आरोपी श्यामसुंदर को खोजने माड़ीसरई जनकपुर निकल गए। माडीसरई से श्यामसुंदर को सहायक जेल अधीक्षक सतीशचंद्र भार्गव थाने लेकर पहुंचे। अब शुक्रवार को श्यामसुंदर को मजिस्ट्रेट न्यायालय में पेश कर जेल दाखिल किया जाएगा।

गौरतबल है कि 2 अप्रैल 2016 को बहू को दहेज को लेकर प्रताड़ित करने व हत्या के प्रयास के मामले में जनकपुर के माड़ीसरई में रहने वाले ​पिता पुत्र बैसाहू पिता मोतिया उम्र 58 वर्ष व उसके पुत्र श्यामसुंदर पिता बैसाहू उम्र 28 वर्ष को जनकपुर पुलिस ने हिरासत में लेकर धारा 307 के तहत जेल दाखिल किया था।  अखिरकार इस पूरे मामले में अब यह सवाल खड़े हो रहे है कि इतनी बड़ी चूक हो जाने के बाद भी जेल प्रबंधन 15 दिनों बाद क्यों जागा। जब 26 जुलाई को रिहाई का आदेश आया तो सहायक जेलर ने क्यों पिता के साथ पुत्र को भी रिहाई दे दी। वहीं जब जेल में रोजाना ही रिहाई वारंट आते है तो कई वर्षों से वारंट शाखा देखने वाले स्टाफ से भी इतनी बड़ी चूक क्यों हो गई।

उप जेल में हुई इस बड़ी चूक की जानकारी पाकर सुबह से शाम तक जेल परिसर में प्रशासनिक अधिकारियों का आना जाना लगा रहा। सुबह एसडीएम नूतन कंवर ने उप जेल पहुंचकर मामले की जानकारी ली। इसके बाद दोपहर को अपर कलेक्टर आर आर करुवंशी एसडीएम के साथ उप जेल पहुंचें। फिर शाम को भी भी अपर कलेक्टर उप जेल पहुंचे। सहायक जेल अधीक्षक सतीश चंद्र भार्गव का कहना है कि मैं ठीक तरीके से हाईकोर्ट के रिहाई आदेश को पढ़ नहीं पाया था। बड़ी चूक हो गई अब क्या कर सकते है।

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