दैनिक जागरण, रांची में फेरबदल के बाद भागलपुर से किशोर झा यहां लाए गए थे। इन्होंने धमाकेदार इंट्री दी और भागलपुर से अपने संग चहेते आलोक दीक्षित को ले आए। मसखरा आलोक दीक्षित यहां गंदगी फैलाए हुए हैं। काम के नाम पर कुछ नहीं लेकिन यहां अरसे से काम कर रहे लोगों को औकाद दिखाना उसकी रोज की आदत में शुमार हो गया है। अपनी आदत के कारण दो दफा वह पिटाई खाते-खाते बचा। जिससे उलझा था उसने जी भरकर गालीगलौज दी और हद में रहनेे की सीख दी।
आलोक दीक्षित का कुल जमा काम यह है कि वह दिनभर एडिटर किशोर झा के चेंबर में बैठकर कुर्सी तोड़ता है और बाकी बचे समय में उनके घर के काम-धंधे निपटाता है। एडिटर के साथ नजदीकी देखकर वरिष्ठ भी उससे उलझने से बचते हैं। आलोक दीक्षित कभी दैनिक जागरण के कद्दावर संपादक रहे शैलेंद्र दीक्षित का करीबी है और उसने रांची में अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया है।
आफिस के भीतर-बाहर हनक बनाने के फेर में वह किसी को भी उल्टा-सीधा बोलता रहता है। किसी को नालायक होने का सर्टिफिकेट देना उसके बायें हाथ का काम है। कहता फिरता है कि जो उससे लगेगा उसको यहां से टिकट कटवा देगा। यानी दैनिक जागरण, रांची में नौकरी करनी है तो एडिटर किशोर झा और उनके साथ दहेज में आए आलोक दीक्षित की चमचई करनी ही होगी। बात तो अभी आपस में गालीगलौज और एक-दूसरे को देख लेने तक की है लेकिन कब यह थाना-मुकदमे तक पहुंच जाएगा, कहा नहीं जा सकता। इस फेर में अखबार पाताल में जा रहा है और अखबार के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाने आए लोगों की दुकानदारी चल पड़ी है।
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