अजय कुमार, लखनऊ
समाजवादी पार्टी में आजम खान की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। आजम हैं तो अखिलेश सरकार में मंत्री, लेकिन कथित रूप से उनकी वफादारी सपा प्रमुख मुलायम सिंह के प्रति रहती है। वह अखिलेश सरकार में अपने आप को काफी महत्वपूर्ण समझते हैं, लेकिन अखिलेश इन्हें कभी ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं। अखिलेश की बेरूखी के चलते आजम ने कई बार नाराजगी का नाटक भी किया, परंतु उनका यह दांव कभी सफल नहीं हो पाया। एक बार सपा से बाहर का रास्ता देख चुके आजम ने उस समय सपा प्रमुख मुलायम सिंह के ऊपर तमाम अमार्यादित टिप्पणियां की थीं,जिनके लिये वह आजकल कसीदे पढ़ते रहते हैं। तब मुलायम सिंह ने आजम की किसी सही-गलत बात का कोई जबाव नहीं दिया था जैसा आजकल पीएम मोदी कर रहे हैं। हिन्दुस्तान में शायद दो ही ऐसे नेता ( दिल्ली के सीएम अरिवंद केजरीवाल और आजम खान ) होंगे जो अपना वजूद बचाये रखने के लिये पूरी शिद्दत के साथ दिन-रात मोदी को कोसते रहते हैं, ताकि एक बार ही सही मोदी उनके खिलाफ मुंह खोल दें, जिससे उनको बैठे-बैठाये पब्लिक सिटी मिल जाये, लेकिन मुलायम भी सब जानते थे और मोदी ने भी कच्ची गोलिया नहीं खेली है। मोदी ऐसे लोंगो को कभी तरजीह नहीं देते हैं जो अपनी सियासत चमकाने के लिये उनके(मोदी) नाम का जाप करते रहते हैं।
अपने सामने सबको बौना और दोयम दर्जा का समझने वाले आजम खान की सियासी हैसियत इतनी भर है कि वह सपा नेता हैं और सपा से बाहर उनका कोई वजूद नहीं है। कहने को तो आजम अपने आप को बहुत दीनहीन और ईमान वाला बताते हैं, लेकिन जब मुफ्त का माल मिल जाये तो कोई मौका भी नहीं छोड़ते हैं। सरकारी पैसा आजम खान दिल खोलकर उड़ाते हैं, यही वजह है साढ़े चार साल में में आजम खान ने 22 लाख 86 हजार 620 रूपये चाय-पानी (पाकेट मनी) पर खर्च कर दिया। अखिलेश सरकार में इतनी बढ़ी रकम खर्च करने वाले वह दूसरे नंबर के नेता थे। इसी प्रकार रसूख की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले आजम की फोटो जब सेक्स रेकैट चलाने वालों के साथ अखबारों में छपती है तो अपने गिरेबान में झांकने की बजाये वह मीडिया की ईंट से ईंट बजा देने की बात करने लगते हैं। उन्हें इस बात का तो मलाल है कि एक नाचने वाली सांसद कैसे बन गई, लेकिन परिवारवाद की मुखालफत करते-करते अपने इंजीनियर बेटे को विधायक बनाने का सपना देखने में उन्हें कोई बुराई नहीं लगती है। जबकि रामपुर की समाजवादी पार्टी में में ऐसे नेताओं की लम्बी लिस्ट है जो आज के बेटे से कहीं अधिक योग्य, अनुभवी ही नहीं वर्षो से पार्टी की सेवा भी कर रहे हैं,लेकिन इन सबको साइड लाईन करके परिवारवाद में फंसे आजम अपने बेटे के लिये गलीचा सजा रहे हैं।
आजम की पहचान हमेशा से ही बढ़बोले और विवादित नेता के रूप में रही हैं। उनके विवादित बयानों की लम्बी फेरिस्त है। जहां मीडिया नेताओं के विवादित बयानों को सुर्खियां बनाकर पेश करता हो, वहां आजम खान जैसे नेताओं के लिये विवादित बयानबाजी अपना चेहरा चमकाने के लिये सुनहरा मौका होता है। अगर ऐसा न होता तो एक कलाकार को नाचने वाली(जयाप्रदा का नाम लिये बिना उनकी ओर इशारा करते हुए ) बता कर वह विवाद नहीं खड़ा करते। वैसे सब जानते हैं कि आजम की फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा से क्यों अदावत है। एक तो जयाप्रदा उनके नंबर एक दुश्मन अमर सिंह की करीबी हैं। इसके अलावा एक और गम भी आजम ने अपने सीने में दबा रखा है। वह है एक बार जयाप्रदा से मिली करारी हार। 2009 के लोकसभा चुनाव में जयाप्रदा ने आजम खान को उनके ही गण रामपुर में हार का स्वाद चखा दिया था। 15वें लोकसभा चुनाव में सपा की उम्मीदवार जयाप्रदा के खिलाफ आजम जर्बदस्ती खड़े हुए और हार गए थे। आजम को एक महिला से तो मुंह की खानी ही पड़ गई थी, इसके बाद सपा ने आजम खान को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया, लेकिन 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्कासन रद्द करते हुए उन्हें पार्टी में वापस बुला लिया। जयाप्रदा के कारण पार्टी से निकाले जाने की टीस आजम के चेहरे पर अक्सर दिखाई पड़ जाती है। इसी वजह से आजम खान अमर सिंह की आड़ में जयाप्रदा पर हमला करके दोहरा सुख उठाते रहते हैं। आजम खान के नाचने वाली जैसे बोलों को किसी भी सूरत में सभ्य समाज में उचित नहीं ठहराया जा सकता है,लेकिन सियासत में ऐसे बोल बोलने वालों की कमी नहीं है,जिसमें आजम टॉप पर रहते हैं। सपा राज में कहीं किसी मॉ-बेटी की इज्जत लूट ली जाती है तो आजम उसे साजिश करार देते हैं।
जयाप्रदा पर विवादित बयान की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि आजम खान ने भीमराव अंबेडकर को लेकर विवादास्पद बयान दे दिया गाजियाबाद में हज हाउस के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने सीएम अखिलेश यादव की मौजूदगी में कहा कि पूरे प्रदेश में एक व्यक्ति की प्रतिमा लगी हुई है जो हाथ का इशारा करके खड़े हैं और बता रहे हैं कि जो भी प्लॉट सामने खाली पड़ा है, सभी मेरा है।
लब्बोलुआब यह है कि आजम खान हर उस शख्स और संस्था को गाली दे सकते हैं जिसका इस्लाम से ताल्लुक नहीं है और जो उन्हे हिन्दुत्व का प्रतीक नजर आते है। हिन्दुओं से जुड़े किसी भी मामले में वह असंवेदनशील हो जाते हैं। वह अयोध्या के विवादित ढांचे को बाबरी मस्जिद बताते हैं। अयोध्या,काशी और मथुरा को विधान सभा चुनाव के लिये खतरा मानते हैं। मोदी को गाली देते है। फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को नचनिया बताते हैं। अंबेडकर को कोसते हैं। योगी आदित्यनाथ से शादी करके मर्दानगी साबित करने को कहते हैं। अमेरिका तो हमेशा ही उनके निशाने पर रहता हैं,यहूदियों को वह मुसलमानों के लिये खतरा बताते हैं, लेकिन पाकिस्तान और आईएसआईएस के मामले में जब भी उनका बयान आता है तो वह तंज कसते नजर आते हैं। आतंकवादियों के प्रति उनका रूख नरम रहता है। उन्होंने शायद ही कभी मुस्लिम कट्टरपथियों के खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज बुलंद की होगीं। पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ किस तरह का अत्याचार हो रहा है,वह उन्हें कभी नहीं दिखाई देता है। हॉ, शिया धर्मगुरू कल्बे जव्वाद के खिलाफ जरूर आजम जहर उगलते रहते हैं,जो आजम का काला चिटठा अपने पास रखते हैं। दिल्ली जामा मस्जिद के ईमाम बुखारी जरूर उनके निशाने पर रहते थे, जिन्हें आजम अपने लिये सियासी खतरा समझते थे।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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