विनय श्रीकर
विमल कुमार का एक पोस्ट पढ़कर मैं विचलित हो गया। यह आदमी हिन्दी का कवि है या सत्ता का दलाल। यह रामवृक्ष बेनीपुरी जी के लिए भीख मॉंग रहा है।
बेनीपुरी जी ऐसे लोगों के कभी मोहताज नहीं रहे।
मैंने बेनीपुरी जी को मन से पढ़ा है। उस महान व्यक्ति के लिए यह आदमी दुष्प्रचार कर रहा है। इस आदमी की फेसबुक पोस्ट से ऐसा लगता है जैसे इस देश में कोई बेनीपुरी जी को जानता ही नहीं। हर पढ़ा-लिखा लेखक बेनीपुरी जी को अवश्य पढ चुका होता है। विमल कुमार बेनीपुरी जी के बहाने अपनी मार्केंटिंग पर उतारू है। न यह आदमी पत्रकार होने के लायक है न ही कभी कवि रहा है। इसके सारे फेसबुक पोस्ट मसीहाई मुद्रा में होते हैं। इसे अपने निजी इतिहास तक का ज्ञान नहीं है।
विमल कुमार ने बेनीपुरी जी की तारीफ करते हुए यह भी कहा कि वह कई बार जेल गये, लेकिन प्रेमचंद, प्रसाद और निराला कभी जेल नहीं गये।
इस पर बाद में चर्चा होगी।
विमल कुमार ने दिनकर जी और प्रसाद जी का उल्लेख किया है। यह अकारण नहीं है। इन दो कवियों के काव्य-बोध को चुराकर कविता जैसी बातें रचना उनका कर्म रहा है।
रामधारी सिंह दिनकर प्रथम कोटि के कवि थे। उनकी 'उर्वशी' काव्यकृति की ये पंक्तियॉं देखिये--
श्रुतिपुट पर उत्तप्त श्वास का स्पर्श
और अधरों पर रसना की गुदगुदी
अदीपित निशि के अँधियाले में
रसमाती भटकती अँगुलियों का संचरण त्वचा पर
इस निगूढ़ कूजन का आशय बुद्धि समझ सकती है
और
प्रसाद जी ने 'ऑंसू' में लिखा--
परिरम्भ कुम्भ की मदिरा निश्वास मलय के झोंके
मुखचन्द्र चॉंदनी जल से मैं उठता था मुँह धो के
इन पंक्तियों के बरक्स विमल कुमार की सात मुद्राओं के बारे में विचार कीजिए। कितना शातिर है यह व्यक्ति कविता रचने में। विमल कुमार की अन्य कविताऍं भी इसी प्रकार की हैं। ये अपने को कम्युनिस्ट और वामपंथी भी कहते हैं। हों तो कोई बात नहीं। अच्छा ही है। मेरी आपत्ति यह है कि हर विषय पर आप पोप की तरह बोल काहे बोलते हो। अपनी सीमा में रहो। बेनीपुरी को जानने वाले इस देश में एक से एक लोग जीवित हैं। उनकी मान्यता के लिए मोहन भागवत से भीख मॉंगने वाले आप कौन हैं !
बिस्तर पर विमल कुमार की सात मुद्राऍं--
1
जब तुम रात में
नहीं होती हो बिस्तर पर
चादर और तकिए दौड़ते हैं काटने को मुझको
वे अपने नुकीले दाँतों से
बना देते हैं कई ज़ख़्म
मेरे जिस्म पर
और जब बिस्तर पर रहकर
तुम बातें नहीं करती हो मुझ से
तो मेरे ज़ख़्म और हो जाते हैं गहरे
मैं तो यही चाहता हूँ
तुम बिस्तर पर रहो
हँसते हुए
कि लगे मुझे
एक चाँद हँस रहा है
हमबिस्तर भले ही न हो कभी ज़िन्दगी में
2
बिस्तर भी एक गवाह है
चश्मदीद गवाह
लेकिन नहीं बुलाया जाता
वह अदालत में कभी
कौन सुनता है उसकी गवाही
हमारे तुम्हारे बीच अनबन में
3
जब तुम हो
मेरे साथ बाँहों में
बिस्तर पर
तो मुझे लगता है
एक नदी है
जो बह रही है
मेरे भीतर ।
4
आधी रात को
यह बिस्तर भी पुकारता है
कोई ख़्वाब जगाता है.
कोई राज़ है
मेरी ज़िन्दगी का
ये तुम्हे बताता है ।
5
बिस्तर पर
इतना गुस्सा
झगड़े
ऊँची आवाज़
लो, अब नदी ने मुँह फेर लिया
बहने लगी उल्टी दिशा में
6
बहुत दिन के बाद
हमबिस्तर हुई हो
किसी ख़ुशी से तर हुई हो
उड़ती हुई एक परी हुई हो
बरसात में एक पेड़ सी हरी हुई हो ।
7
बिस्तर पर जब मैंने नदी को नाराज़ पाया
तो उस से माफ़ी माँग ली
नदी जब ख़ुश हुई
तो बिस्तर भी गाने लगा
तकिया भी मुस्कराने लगा
एक अजीब नशा
मुझ पर छाने लगा
मैं नदी में नहाने लगा
Vinay Shrikar
shrikar.vinay@gmail.com
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