प्रश्न-1 शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास,शिक्षा बचाओं आन्दोलन,भारतीय भाषा बचाओं आन्दोलन और भारतीय भाषा मंच इतने सारे संगठनों में आप कैसे काम कर पाते हैं?
उत्तर- देखिए, समय किसी के पास नहीं होता है। व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताएंतय करनी पड़ती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काम करना ही हमारी पहली प्राथमिकता है।सारा काम स्वंय करना होता है ऐसा तो है नहीं पर सब में अपनी मुख्य भूमिका तोरहती है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास तो पहले शुरू हुआ था लेकिन भारतीय भाषामंच और भारतीय भाषा अभियान एक तरह से मेरी सोच का ही परिणाम है। भारतीयभाषा अभियान मुख्य रूप से विधि और न्याय के क्षेत्र में कार्य करता है। हम चाहतेहैं कि न्यायालयों में कार्य भारतीय भाषा में हो। इस पर हमने वकीलों के साथमिलकर कार्य प्रारंभ किया। चूँकि वकील भी इस समस्या से दो–चार होते हैं इसलिएवकीलों का समूह हमारे साथ मिलकर बहुत तीव्र गति से काम कर रहा है । भारतीयभाषा मंच समग्र भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए काम करता है। हम भारतीयभाषाओं के विकास, भारतीय भाषाओं की पुर्नस्थापना, विस्तार, अनुसंधान,साहित्य आदि के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे हैं। इसके साथ ही विभिन्न भाषाओंसे जुड़े लोगों को एक मंच पर लाना भी भारतीय भाषा मंच की प्राथमिकता है।
प्रश्न-2 क्या शिक्षा पर कोई संकट है?यदि हां तो कैसे?
उत्तर- शिक्षा पर संकट नहीं है। बल्कि समग्र शिक्षा ही संकट में है। इस समस्या का कोई अंत नहीं है। इसका मूल कारण है कि हम शिक्षा की मूल आधारित भारतीय संकल्पना से भटक गए हैं। इसी वजह से आज आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से अध्ययन किए हुए विद्यार्थियों के बड़ी संख्या में तलाक और आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य चरित्र निर्माण करना है। जब नींव ही कमजोर होगी तो भवन का निर्माण सफल नहीं हो सकता। प्रायःसिध्दांत की बात तो सभी करते हैं पर व्यवहार की बात बहुत कम लोग करते हैं इसलिए हम पहले व्यवहार की बात करते हैं फिर सिध्दांत की। शिक्षा चरित्र निर्माण का माध्यम बने, इस हेतु 2010 में पाठ्यक्रम तैयार किया गया। जिसका 2012 से लेकर 2015 तक हमने समग्रता से देश के 8 जिलों पर प्रयोग किया। जिसमें निजी, सरकारी व आदिवासी क्षेत्र के विद्यालय भी शामिल थे। रायपुर में एस सी आर टी में 50 उज्जैन में 70 और गुजरात के जूनागढ़ में 27 विद्यालयों में यह प्रयोग चला। इस प्रयोग के सकारात्मक नतीजे सामने आये।
प्रश्न-3 क्या भारतीय भाषाओं पर कोई संकट है?
उत्तर- जी हाँ, बिल्कुल। भारतीय भाषाओं के सामने जो संकट है वह अंग्रेजी के कारण है। अपनी भाषाओं के कारण नहीं। ऐसा है सारी भारतीय भाषाओं का मूल तो एक ही है। हमारे देश में यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही कि अपनी भाषाएं आपस में झगड़ती रही और अंग्रेजी आगे बढ़ती रही इसीलिए अपनी लड़ाई अंग्रेजी से है। हमारा लक्ष्य है कि सभी भारतीय क्षेत्रीय भाषाएं आपस में मिलकर आगे बढ़े। भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली बहुत सारी संस्थायें और लोग है। उन सबको एक मंच पर लाना हमारा प्रमुख कार्य है। इसके माध्यम से धीरे-धीरे एक बहुत बड़ी शक्ति बनेगी जिससे भारतीय भाषाओँ का कल्याण हो सकेगा।
प्रश्न-4 इससे निपटने का क्या योजना है और उस दिशा में कितना कार्य हुआ है?
उत्तर- इसके लिए कई सारे समूह अलग-अलग राज्यों में बांटकर हम कार्य कर रहे हैं। गुजरात के जूनागढ़ में समग्रता से तीन वर्ष में वहां की क्षेत्रीय भाषा को सरकारी व गैर-सरकारी सारे विद्यालयों में लागू कर देंगे। इसके साथ ही पंजाब में भी तहसील स्तर पर इसे लागू करने की योजना चल रही है। इसके लिए भिन्न-भिन्न मंच बने है। जिसमें टोली में बंटकर लोग काम कर रहे है। स्थानीयता के महत्व को ध्यान में रखकर कार्य करना ही हमारी पहली प्राथमिकता है।
प्रश्न-5 जैसे कि लगातार आरोप लग रहे हैं कि वर्तमान मोदी सरकार शिक्षा का भगवाकरण कर रही है। इस बात में कितनी सच्चाई है?
उत्तर- इस विषय पर राजनीति हो रही है। यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। यह उन लोगों की छटपटाहट भर है बस जिन्होंने पिछले 50 वर्षों से शिक्षा संस्थानों पर कब्जा कर रखा था और मनमर्जी वामपंथियों को स्थान देते रहे। अब वहां राष्ट्रवादी लोगों के आने से उन्हें कष्ट हो रहा है। सरकार बदलने के वजह से उनको एक अवसर मिल गया भगवाकरण के नाम का हल्ला मचाने का । यह हल्ला पिछले 10 वर्षों से हो रहा है।
प्रश्न-6 इस प्रश्न को मैं इस लिए भी पूछ रहा हूँ क्योकि अभी हाल ही में खबर आई थी कि राजस्थान सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम से जवाहर लाल नेहरु का नाम हटा दिया था?
उत्तर- देखिये, जवाहर लाल नेहरू का नाम राजस्थान के पाठ्यक्रम से थोड़ा कम किया गया था। पूरी तरह से हटाया नहीं गया और ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि वहां सम्बंधित विषय जरूरत से अधिक था। इसलिए वह अब बौखला रहे हैं। यह हो-हल्ला मात्र है और कुछ नहीं। यूपीए सरकार के दौरान जो गलत बातें पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही थीं, उन्हे हमने हटवाया था परन्तु उस समय उन लोगों के लिए थोड़ी अनुकूलतायें थी। एक जगह से हटवाया तो दूसरी जगह शामिल कर देते थे।
प्रश्न-7 आरोप है कि संघ शिक्षा नीति से लेकर नियुक्तियों तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कार्यों में विशेष रूचि रखता है। क्या संघ और मंत्रालय के बीच नियमित संवाद की कोई व्यवस्था है?
उत्तर- दुर्भाग्य है कि लोग ऐसी ही चर्चा किया करते हैं। लोग गजेन्द्र चौहान की बात करते हैं। गजेन्द्र चौहान संघ का कोई कार्यकर्ता नहीं है। दूसरी बात क्या आरएसएस के लोग अछूत हैं? अगर संघ के किसी व्यक्ति ने ऐसा सुझाव दिया तो क्या वह भारत का नागरिक नहीं है। क्या केवल कांग्रेस और वांपथियों को ही सरकार को सुझाव देने का अधिकार है? आप मनमर्जी वांमपंथियों को स्थान देते रहे और राष्ट्रवादी लेखकों को दूर रखा गया। ऐसा है, सत्ता तो एनडीए की है। जो कुछ भी हो रहा है, एनडीए सरकार कर रही है। इसमें संघ की कोई भूमिका नही है। यह महज एक शोरशराबा भर है।
प्रश्न- 8 सभी राज्यों में एकीकृत पाठ्यक्रम व मूल्याकंन व्यवस्था का अभाव है। इस दिशा में क्या काम कर रहे है?
उत्तर- अभी इस विषय पर हमने कार्य प्रारंभ नहीं किया है लेकिन ऐसा है। चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची में शामिल है इसलिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पाठ्यक्रम व मूल्यांकन की उनकी व्यवस्था हो सकती है। बहरहाल, ऐसा एक समन्वित पाठ्यक्रम बनना चाहिए जिसमें कुछ बातें राष्ट्रीय स्तर की और कुछ बातें वहां की जरूरत के हिसाब से क्षेत्रीयता के स्तर की हो। क्या बदलाव होने चाहिए, इसके लिए हमने सुझाव भी दिए है। इस पर हमें कई सारे सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हुए है।
प्रत्तर-9 न्यायिक क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को शामिल कराने हेतु आपने अभी तक क्या कार्य किया है?
उत्तर- यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही कि जब राज्यों की रचना हुई तो भाषा के आधार पर नहीं हुई परन्तु बाद में ऐसा हो गया। केंद्र की राजभाषा हिंदी है और राज्यों की अपनी-अपनी राजभाषा है लेकिन राज्य की उपभाषा वहां के उच्च न्यायालय में नहीं चलती तो यह कैसी लोकतंत्रीय व्यवस्था है? हालांकि संविधान में इसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 148(2) में भी है और चार राज्यों में ऐसी व्यवस्था लागू हुई है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और राजस्थान इन चारों राज्यों में उच्च न्यायालय में काम राज्य की उपभाषा में ही किया जा रहा है। न्यायिक क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को शामिल कराने के लिए हमने भारतीय भाषा अभियान संगठन बनाया जो विधि और न्याय के क्षेत्र में भारतीय भाषा को अपनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है।
प्रश्न-10 गौरक्षा के नाम पर दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर आप क्या कहेंगे? इस पर संघ चुप क्यों है?
उत्तर- यह बिना सिर पैर की बात है।
प्रश्न-11 क्या वर्तमान सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों के विशेषाधिकारों को खत्म कर देना चाहती है? क्या यह अल्पसंख्यक संस्थानों पर आक्रमण है?
उत्तर- संविधान के हिसाब से इन संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नही दिया जा सकता है। मैं जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में था, तो मैनें केस लड़ा। दो बार उत्तर प्रदेश सरकार इलाहाबाद उच्च न्यायालय गई और दोनो बार हार गई । पहले सिंगल बेंच और फिर डबल बेंच में उनके खिलाफ फैसला आया। इसके बाद यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और केस चल रहा है। हालांकि, अब सरकार ने हलफनामा देने की बात कही है,क्योकि संविधान के हिसाब से यह हो नहीं सकता। इस विषय पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश के राजनेताओं ने सिर्फ ओछी राजनीति की है। इसी का परिणाम है कि आज देश में दोनों समुदायों में इतनी कटुता भरी हुई है। ऐसा राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जा रहा है।
प्रश्न-12 खबर है कि प्रबंधन के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा नदी, मंदिर, पुरातत्व आदि विषयों को भी प्रबंधन में शामिल करने के लिए प्रयासरत हैं। इस दिशा में नए कोर्स लाने का काम किस चरण में है?
उत्तर- इस विषय पर अभी हमारी कार्यशाला हरिव्दार में 17-18 सितंबर को संपन्न हुई है। इसमें हमने चार प्रमुख उद्देश्य तय किये हैं। पहला, प्रबंधन के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा का समावेष करना। दूसरा, प्रबंधन के पाठ्यक्रम को आधुनिक और समसामयिक बनाना। तीसरा, प्रबंधन के पाठ्यक्रम में पर्यावरण और नैतिक मूल्यों का समावेष करना और चौथा, हम चाहते हैं कि पर्यावरण प्रबंधन में उत्कृष्ट प्रबंधक निकलें। इस हेतु उन छात्रों के समग्र व्यक्तित्व विकास की व्यवस्था सुनुश्चित करना हमारा लक्ष्य है।
प्रश्न-13 सिंधी और संस्कृति भारत में ही आज लुप्त होती जा रही हैं। इनके उत्थान के लिए क्या कोई ठोस योजना है ?
उत्तर- सिंधी के लिए उनकी काउंसिल बनी हुई है। कुछ विश्वविद्यालयों में हमने सिंधी काउंसिल के चेयरमैन रविटेक चंदानी के साथ मिलकर कार्य का प्रयास प्रारंभ किया है। संस्कृति के लिए भी वर्तमान सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है। यूपीए सरकार केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत की जगह जर्मन को लाद दिया था, सरकार ने उसे हटा दिया है। दूसरा, संस्कृति सप्ताह विगत वर्ष भी मनाया गया था और इस वर्ष भी मनाने की घोषणा की है। संस्कृति के लिए सरकार ने एक समिति बनाई उस समिति की सिफारिश के आधार पर ही आईआईटी में संस्कृति को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया गया है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है। मेरा निजी मत है कि संस्कृति को हमें व्यवसायिक विषय के रूप में जोड़ना होगा। विदेशों में भी संस्कृति की बहुत मांग है। ज्योतिषशास्त्र में भी संस्कृति का काफी महत्व है। संस्कृत को भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ जोड़ा जायेगा तो बच्चे भी इसे आसानी से सीख सकेंगे।
अभिषेक तिवारी
एमजे. तृतीय
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय
नोएडा परिसर
abhishektiwarius@gmail.com
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