वकील उमेश शर्मा ने हाईकोर्ट को बताया अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा अगर हिंदी है तो फिर क्लर्क की भर्ती हिंदी भाषी होकर अंग्रेजी भाषा क्यों हो रही है? दिल्ली के अधीनस्थ न्यायालयों में कोर्ट की भाषा हिंदी बने। इस जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में शनिवार को सुनवाई हुई। मुख्य न्यायधीश जी रोहिणी और संगीता ढींगरा की खंड पीठ ने अतुल कोठारी की याचिका स्वीकारते हुए दिल्ली के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक जज से 14 दिसंबर से इस मसले पर शपथ पत्र देकर स्पष्टीकरण मांगा है।
शिक्षा संस्कृति न्यास के अतुल कोठारी की ओर से वरिष्ठ वकील उमेश शर्मा ने हाईकोर्ट को बताया कि पंजाब हाईकोर्ट के 1906 के आदेश में इस बात का उल्लेख है कि अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा हिंदी होगी। इसके बावजूद न्यायालयों के अंदर सारा कामकाज अंग्रेजी में हो रहा है। आदेश के अनुसार अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा अगर हिंदी है तो फिर क्लर्क की भर्ती हिंदी भाषी होकर अंग्रेजी भाषा क्यों हो रही है? सभी 328 पदों पर अंग्रेजी के टंकक ही क्यों नियुक्त किए जा रहें है। उन्होंने अपनी दलील में बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय की नियमावली का चैप्टर I, पार्ट स्पष्ट करता है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालयों का कार्य हिंदी में होगा, लेकिन न्यायालयों में टाइपिस्ट, आशुलिपिक की व्यस्था हिंदी भाषा में काम करने के लिए नहीं की गई हैं, जो नियमों का उल्लंघन है।
भारतीय भाषा अभियान के सह संयोजक उमेश शर्मा बताते हैं कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 343 में हिंदी को राज्य भाषा बनाया गया था और यह प्रस्तावित किया गया था कि अंग्रेजी का प्रयोग 15 साल तक रहेगा और उसके बाद हिंदी अन्य भारतीय भाषाएं प्रयोग की जाएंगी। लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो सका। संविधान के अनुच्छेद 348 में राज्यपाल को उस राज्य की भाषा को उच्च न्यायालय की भाषा घोषित करने का प्रावधान है और बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश में ऐसा हो भी चुका है। दिल्ली की राज्य भाषा हिंदी है और दिल्ली उच्च न्यायालय की नियमावली में ऐसा प्रावधान है। अभी लोगों को न्यायालयों के आदेश में क्या लिखा है?
न्यायाधीश ने क्या निर्णय सुनाया है। यह तक नहीं पता चल पाता। इसलिए हिंदी को अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा बनाया जाना जरूरी है और ऐसा क्यों नहीं हो रहा। अब हाईकोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालयों के प्रधान जज से शपथ पत्र दाखिल कर बताने को कहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी को हम कोर्ट की भाषा बनाने के लिए हर तरह की कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। क्योंकि हिंदी जनभाषा है और न्यायालयों में असली न्याय क्या मिला? इसकी जानकारी जन-जन को तभी होगी जब अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा हिंदी बनेगी।
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