24.11.16

भारतीय रेलवे को वेटिंग टिकिट से अमीर बनाते सुरेश प्रभु

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
mayankchaturvedi004@gmail.com

विकास का यह भारतीय रेलवे का गलब का जुनून है, फिर इसके लिए किसी की जेब पर डाका ढालना पड़े तो क्‍या हर्ज है। यह अजीब नहीं लगता कि आपने रेलवे की वेटिंग टिकिट ली हो, इस प्रत्‍याशा में कि यह कंफर्म हो जाएगी और हम अपनी यात्रा सुखद तरीके से पूर्ण कर सकेंगे लेकिन इंटरनेट के इस युग में फार्म पर अपना मोबाइल नम्‍बर दर्ज करने के बाद आपको रेलवे इस बात की भी जानकारी देना उचित न समझे कि आपका टिकिट कंफर्म नहीं हुआ है?


यदि आप किसी कारण से कहीं फंस गए हैं और आपकी ट्रेन एक मिनट पहले स्‍टेशन छोड़ दे और जब टिकिट विन्‍डो पर आपकी बारी आए तो आपको बताया जाए कि आपकी टिकिट कैंसिल नहीं हो सकती, क्‍यों कि आप एक मिनट देरी से आए हैं। हमारा कम्‍प्‍यूटर इसे नहीं एक्‍सेप्‍ट कर रहा।

वहा, सुरेश प्रभू जी, यह अच्‍छा तरीका है किसी की गाढ़ी कमाई को हड़पने का ? सुरेश प्रभु किसी जरूरत मंद को चलती ट्रेन में  दूध पहुँचाते हैं, निश्‍चित तौर पर उन्‍हें वाहवाही मिलती है। वे स्‍लीपर क्‍लास में सस्‍ती दर पर कंबल-तकिए बिचवाते हैं, उनकी तारीफ होती है और वे जनता भोजन स्‍टेशनों पर बिचवाते हैं तब भी आम जनता उनकी तारीफ के पुल में कसीदे गढ़ती है कि कई सालों बाद ऐसा रेलमंत्री देश को मिला है जिसे एक ट्वीट पर हम अपनी बात आसानी से बता सकते हैं। लेकिन जब उनका रेलवे नियमों में बांधकर आम जनता की गाढ़ी कमाई को किसी न किसी बहाने हड़पने की कोशिश करता है तब यह जनता चुप रहे यह कैसे हो सकता है ?

कम से कम नियम बनाने से पहले रेलवे के अधिकारी और ज्ञानवान यह तो सोचते कि नियम भारत देश के नागरिकों के लिए बनाए जा रहे हैं, यह वह भारत है जो विकासशील है, विकसित नहीं हुआ है, बल्कि जहां विकसित होने की प्रक्रिया सतत है, इसलिए जो नियम बनाएं वे व्‍यवहारिक हों। अब क्‍या यह माना जाए कि रेलवे जनता के लिए नहीं है, वह कमाई का जरिया बन गई है, येन केन प्रकारेन धन आना चाहिए, फिर वे किसी भी तरीके से आए ? एक तरफ प्रधानमंत्री देश से भ्रष्‍टाचार की दीमक समाप्‍त करने के लिए 500-1000 के नोट बंदी करते हैं और दूसरी ओर रेल मंत्रालय एवं उसके नियम हैं जो सीधे-सीधे जनता के धन को लूट रहे हैं। क्‍या यह एक तरह का भ्रष्‍टाचार नहीं है ?  

सभी सोचें कि इसे रेलवे का कहां से सही कदम माना जाए ? आप का वेटिंग टिकिट है, आप उस पर यात्रा नहीं कर सकते हैं। यदि आप रेल के स्‍टेशन से गुजर जाने के बाद कुछ समय देरी से जाएं तो आपको यह कहकर बेरंग लौटा दिया जाए कि आपके पैसे वापिस नहीं करेगा रेलवे, क्‍यों कि आपकी ट्रेन स्‍टेशन छोड़ चुकी है। जब टिकिट कन्‍फर्म हुआ ही नहीं तो स्‍वभाविक है कि जिसका टिकिट है, वह अपने अन्‍य कार्यों में उलझ गया होगा या ऐसा होने की संभावना है, वह किसी ओर से अपने टिकिट को निरस्‍त कराने के लिए भेजे। जिसे भेजा वह कुछ देरी से भी स्‍टेशन पर जा सकता है और समय पर भी, इसलिए कि उसे मालूम हैं कि फलां को अब यात्रा करनी नहीं लेकिन यह क्‍या बात हुई कि वह स्‍टेशन पहुँचे कतार में लगे विंडो पर अपना नम्‍बर आने में देरी हो जाए और उसे कह दिया जाए कि आपका धन अब आपको वापिस नहीं किया जाएगा ?  

कम से कम सरकार और उसके उपक्रमों से तो देश की जनता यह उम्‍मीद बिल्‍कुल नहीं करती कि वह इस तरह जनता के पैसे लूटें, रेलवे से तो बिल्‍कुल भी नहीं.....

काश, मेरी यह बात सुरेश प्रभु समझें कि ईमानदारी का एक पैसा भी बहुत कीमत रखता है, भारत में हो सकता है कुछ लोग बेईमान हों, उनके रुपए इस तरह जाने से उन्‍हें कोई फर्क न पड़ता हो लेकिन हम जैसे तमाम लोग हैं जिनका हर एक पैसा तप और ज्ञान की भट्टी में तपने के बाद हाथ में आता है, इसलिए आप उसके धन पर इस तरह डाका नहीं डाल सकते हैं। फिर भले ही ट्रेन गंतव्‍य स्‍थान से छूट जाए वेटिंग टिकिट के रुपए वापिस लेना हर भारतीय नागरिक का अधिकार है, क्‍यों कि वह उस पर यात्रा नहीं करता और वह उसके मेहनत की कमाई है।

इन दिनों रेलवे जिस तरह दादागिरी करते हुए, जनता पर अपने मनमाने नियम लादकर और ट्रेन में उसकी चलने की मजबूरी का फायदा उठाकर आम आदमी के पैसों पर जो अपना अधि‍कार जमा रहा है, कम से कम भारत जैसे देश में यह आज सफल लोकतंत्र की निशानी तो नहीं कही जा सकती है ?

भारत के रेलमंत्री सुरेश प्रभु गंभीरता से इस पर विचार करें.........

1 comment:

  1. Mere 9860/₹ isi chakkar me doob gaye, mahaj 30 minute me aap ko itna uljha diya jayega ki aap apme paise wapas le hi nahi payenge, this is a fraud business

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