डॉ राकेश पाठक
एक दिन के मासूम के नाम पर कोहराम मचाने पर खाकसार ने कुछ लिखा था। अब कुछ बिंदु पुनश्च....
एक-- प्राचीन इतिहास के युद्ध विजेताओं की तैमूर से तुलना का कोई मनतव्य न था न है न हो सकता है।
इंगित यह किया गया कि सदियों पहले के राज्य विस्तार के लिए हुयी हिंसा के कारण कोई "नाम" हमेशा के लिए दोषी नहीं हो जाता।
दो--कुछ मित्रों ने लिखा कि नामकरण से भावनाएं आहत हुईं। सवाल ये है कि दशकों पहले असम में एक मुख्यमंत्री हुयी " सैयदा अनवरा तैमूर" ....तो तब क्या इस "तैमूर" नाम से हमारे पुरखों की भावनाएं आहत हुईं थीं....?
सिकंदर भी हमारे लिए आक्रांता था और झेलम के युद्ध में पोरस की सेना बहुत बड़ी संख्या में हताहत हुयी थी तो सिकंदर बख्त और सिकंदर खेर पर भावनाएं आहत हुईं...??
नहीं न...तो अब क्यों...? क्या हम पहले से ज्यादा संकीर्ण और कट्टर होते जा रहे हैं...?
तीन-- किसी एक व्यक्ति के कर्म से कोई नाम विशेष हमेशा के लिए कलुषित नहीं हो जाता...
नाथू'राम, आशा'राम और निर्भया पर जुल्म करने वाले 'राम'सिंह से हमारे आपके आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम का नाम धूमिल नहीं होता बल्कि उस व्यक्ति विशेष का कृत्य और व्यक्ति ही कलुषित होता है...
समाज और कानून द्वारा उसी व्यक्ति विशेष को ही दण्डित किया जाता है न कि उस नाम को सदैव के लिए घृणा का पात्र बना लिया जाना चाहिए..!
तीन-- उस बालक के जन्म के कुछ घंटे के भीतर उसे "जिहादी" तक लिखा दिया गया....उसके माता पिता के लिए लिखा गया कि " नवाबों की रखैलों की कोख से तैमूर जैसे दरिंदे ही जन्मेंगे..."
सवाल ये है कि क्या उस मासूम के माँ बाप की कई पीढ़ियों में कोई 'जिहादी' हुआ...? क्या पृथ्वीराज कपूर से करीना तक कोई आतंकवादी , देशद्रोही पाया गया...?
क्या टायगर मंसूर अली खां पटौदी और शर्मिला से लेकर सैफ तक किसी पर मुल्क से गद्दारी या दरिंदगी का कोई दाग लगा है...?
अगर नहीं तो चंद घण्टे के एक मासूम में आपको "तैमूर" जैसा दरिंदा कैसे दिखायी दिया...?
सोचियेगा आखिर इतनी नफरत आप लाते कहाँ से हैं...?
चार-- कई मित्रों ने पूछा कि क्या कोई रावण, विभीषण नाम रखता है...?
उत्तर है हाँ...और वो भी अपने ही देश में। ये दोनों नाम दक्षिण भारत और आदिवासी बहुल इलाकों में आसानी से आज भी मिलते हैं।
आखिरी बात ---
सात सौ साल पहले हुए आक्रांता के "नाम" भर से आज जन्मे बच्चे को जिहादी बता देना देशद्रोह तो छोड़िये मानवता द्रोह है...
तैमूर तो सचमुच दरिंदा था,क्रूर हत्यारा था लेकिन आज की दुनिया में एक "बेगुनाह नवजात" को इतनी तोहमतें भेजने वालों में कितनी इंसानियत बाक़ी है सोचियेगा ज़रूर...
ये नफ़रत की इंतिहा है..मेरे भाई...कुछ दिन बाद ठन्डे मन से सोचियेगा....शायद खुद पर शर्म आने लगे...!
एक बार फिर सुन ,समझ लीजिये
"नाम से नफरत" आपको मुबारक़ , हम इंसानियत के पहरुए हैं...आख़िरी सांस तक उसके हक़ में खड़े रहेंगे..!
Dr. Rakesh Pathak
rakeshpathak0077@gmail.com
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