देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उसमें उत्तराखंड राज्य भी है। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद इस हिमालयी राज्य में चौथी बार राज्य के मतदाता अपनी सरकार चुनेंगे। अभी तक यहां की सियासत कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी दोनों के इर्दगिर्द ही घूमती रही है। अब तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में दो बार कांग्रेस व एक बार भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है। संयोग ये भी रहा कि अब तक गठित तीनों ही सरकारों को निर्दलीय विधायकों या अन्य छोटे दलों के सहयोग से ही सरकार बनानी पडी। राज्य में दो दलों के अलावा हालांकि एक क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांतिदल वजूद में है लेकिन दल के उच्च पदस्थ नेताओं की आपसी खींचतान के चलते उत्तराखंड क्रांति दल जनआकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया।
राज्य प्राप्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद राज्य का इकलौता दल मतदाताओं की पंसद नहीं बन पाया। तीसरे विकल्प के अभाव में अभी तक यहां की सियासत भाजपा व कांग्रेस के बीच ही केन्द्रित रही है। लेकिन अब राज्य के दूरस्थ इलाके से एक नये प्रयोग को जीवित करने की कवायद उत्तरकाशी जिले के मोरी विकासखंड व पुरोला ब्लाक के लोगों ने शुरू की है। जनप्रतिनिधियों के द्वारा क्षेत्र की लगातार उपेक्षा व विकास के प्रति सोच न होने के चलते ग्रामीणों ने इस नये प्रयोग को धरातल पर उतारने की योजना को आकार दिया है। इसके तहत पुरोला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मोरी विकासखंड के 68 गांव के लोगों ने महापंचायत के माध्यम से अपना प्रत्याशी चुन लिया है। इसके लिए पंचायत ने पिछले तीन चार महीनों में ग्रामीणों को इसके लिए प्रेरित किया।
क्षेत्र के तेरह लोगों ने सार्वजनिक रूप से अपनी दोवदारी पेश की लेकिन अंतिम समय तक केवल तीन ही दावेदार मैदान में रहे। इसमें आपसी विमर्श के बाद निकले नतीजे के आधार पर एक ऐसे विकल्प देने पर लोगों को सहमत किया गया कि जो उनकी भावनाओं को समझे और विजन के साथ क्षेत्र का विकास करे। कई चरणों की माथा पच्ची के बाद 25 दिसम्बर को आयोजित महापंचायत में क्षेत्र के शिक्षित व दिल्ली की एक निजी कंपनी में कार्यरत युवा दुर्गेश लाल के नाम पर महांपचायत की मुहर लगी।
उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद यह उत्तराखंड राज्य में अपनी तरह का अलग प्रयोग है। इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पुरोला विकासखंड के लोगों ने भी कुछ इसी तरह की मुहिम चलाई है। 26 दिसम्बर को इस कडी में पुरोला में एक खुली पंचायत का आयोजन किया गया जिसमें पुरोला विधानसभा से एक सशक्त विकल्प देने पर विचार विनिमय किया गया। इसके लिए नौ जनवरी को एक महापंचायत बुलाई गई है। इस पंचायत में यह सहमति बनी कि मोरी महांपचायत से भी समन्वय कर एक ठोस विकल्प दिया जायेगा। इसके लिए पुरोला विधानसभा के तहत आने वाले नौगांव ब्लाक के मतदाताओं को भी इस पंचायत से जोडा जायेगा। मोरी व पुरोला की पांच पट्टियों में विस्तारित इस विधानसभा में लगभग साठ हजार मतदाता हैं।
पुरोला व इसके आसपास के गांवों में पिछले एक साल से जागरूकता अभियान की अगुवाई करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बलदेव भंडारी इस प्रकार के प्रयोग को समय की मांग बताते हैं। उनका साफतौर से मानना है कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड का सफर तय करने के बाद भी राज्य के दूरस्थ इलाके बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रहे हैं, यही कारण है कि जनता अब अपना खुद का उम्मीदवार तय कर राज्य में एक नजीर पेश करेगी।
दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले इंजीनियर गजेन्द्र चौहान भी नौकरी छोड इस अभियान को आगे बढाने में जुटे हैं। वो मोरी महापंचायत के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहते हैं कि बात जीत या हार की नहीं है, हम राजनीतिक दलों को यह संदेश देना चाहते हैं कि लोकतंत्र में जनहित सर्वोपरि है। उनका कहना है क्षेत्र की जनता एक ईमानदार प्रत्याशी चाहती है।
गौरतलब है कि पूरोला विधानसभा पूरी तरह से ग्रामीण आबादी पर केन्द्रित है। अधिकांश लोग गांवों में रहते हैं। दोनों राष्ट्रीय दलों, भाजपा व कांग्रेस का संगठन भी सभी गांवों तक विस्तारित है। कार्यकर्ताओं की अपने अपने दलों के प्रति निष्ठा भी है। जनप्रतिनिधियों का अपना व्यक्तिगत आधार भी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लोग महांपचायत में लिए गये निर्णय के साथ रहेंगे या दलों के प्रति अपनी निष्ठा जतायेंगे। क्या मोरी महांपचायत के फैसले के साथ पुरोला महापंचायत के लोग जायेंगे या फिर अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगे। ये कुछ तकनीकी पेंच हैं जो इस प्रयोग के जिंदा रहने पर सवाल उठाते हैं।
फिर भी इतना जरूर है कि मोरी महांपचायत व पुरोला महांपचायत की यह मुहिम इस पहाड़ी राज्य की सियासत में एक नया अध्याय जोडने में सफल रहेगी। इसके अलावा विकास से वंचित ग्रामीणों ने दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को संदेश देने में भी कामयाब रही है।
बृजेश सती
स्वतंत्र टिप्पणीकार
देहरादून
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