-निरंजन परिहार-
ओम पुरी की मौत पर उस दिन नंदिता पुरी अगर बिलख बिलख कर रुदाली के अवतार में रुदन – क्रंदन करती नहीं दिखती, तो ओम पुरी की जिंदगी पर एक बार फिर नए सिरे से कुछ नया लिखने का अपना भी मन नहीं करता। पति के अंतिम दर्शन पर आंखों में छटपटाते अश्रुओं की धार बहाने और भर्राए हुए गले से अपने गहन दुख में डूबने का रोना रोने का नंदिता का अभिनय सचमुच लाजवाब था। अभिनय... जी हां, अभिनय...। अभिनय इसलिए, क्योंकि कोई पत्नी 65 साल के अपने बूढ़े पति को उसके एक मात्र बेटे से भी मिलने न दे, जिससे वह बहुत प्यार करता हो। जो महिला पति को उसकी वृद्धावस्था के बावजूद धुर अकेला छोड़कर उसी के पैसों पर जिंदगी के सारे शौक पूरे करती फिरे। जिस उमर में पति को पत्नी के साथ की सबसे ज्यादा आवश्यकता हो, तब उसे अकेला उसके हाल पर छोड़ दे। और जो पत्नी दुनिया भर में पति की इज्जत को चौराहों पर नीलाम करनेवाली अपनी किताब के विमोचन करवाकर फूलमालाएं पहनकर अपने अभिनंदनों पर अभिभूत होती रहे, उस महिला को ओम पुरी की मौत पर आंसू बहाते देख अभिनय नहीं तो और क्या कहा जाए।
यह ब्रह्मसत्य है कि कभी अपनी जिंदगी का अकेलापन बांटने के चक्कर में ओम पुरी ने, तो कभी ग्लैमर की दुनिया में अपनी जगह बनाने की कोशिश में कई सारी महिलाओं ने अपने जीवन के अंतरंग पलों को ओम पुरी के साथ खुशियों में बांटा। मगर इस तरह की जिंदगी जीनेवाले ओमपुरी, कोई अकेले अलबेले आदमी नहीं थे। जिस समाज में देह सिर्फ जिंदगी में आगे बढ़ने और उसे जमकर जीने का साधन मात्र है, उस मीडिया, मॉडलिंग, फोटोग्राफी, एविएशन, एडवर्टाइजिंग, कॉर्पोरेट और फैशन सहित सिनेमा जैसे ग्लैमर के संसार में तो, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, हर दूसरे व्यक्ति की यही कहानी है। लेकिन, ओम पुरी की जिंदगी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य भी उनकी पत्नी नंदिता को ही कहा जा सकता हैं। क्योंकि दो दशक से भी ज्यादा वक्त तक ओम पुरी को जीने के बावजूद नंदिता ने पति-पत्नी के रिश्ते का आदर नहीं किया। नंदिता स्वयं को पत्नी से ज्यादा प्रकांड पत्रकार मानती रही। सो, ओम पुरी की कला और उनके कद के मुकाबले अपने लेखन को ज्यादा ऊंचा साबित करने की कोशिश में नंदिता ने ओम पुरी की जिंदगी के किस्सों और उन किस्सों के हिस्सों को अपनी किताब ‘अनलाइकली हीरो - ओम पुरी’ में पिरोकर पति की इज्जत को चौराहे पर रख दिया। मुझे लगता है कि अगर सच लिखने और अपने लिखे सच के प्रताप में खुद को जगमगाने का इतना ही शौक था, तो नंदिता को खुद पर भी लिखना चाहिए, कि आखिर कैसे उन्होंने एक बूढ़े होते जा रहे 48 साल के पौरुष खोते आदमी को अपनी 26 साल की जवान जिंदगी सौंप दी थी। नंदिता उस वक्त धुर जवान थीं, और उस जवानी में 48 साल के अधेड़ ओम पुरी के प्रति अचानक उपजे अपने अगाध आकर्षण और प्यार की परतों पर भी उन्हं लिखना चाहिए था।
नंदिता की ओमपुरी से पहली मुलाकात तब के कलकत्ता की भीड़ भरी सड़क पर उस समय हुई थी, जब ओम पुरी रिक्शा खींच रहे थे। यह 'सिटी ऑफ जॉय' की शूटिंग थी। जहां नंदिता ने अपने बांग्ला अखबार ‘आजकाल’ के लिए इंटरव्यू की बात करने आई थीं। ओम पुरी ने उन्हें होटल बुलाया। इंटरव्यू खत्म हुआ, तो जाते जाते नंदिता ने उनसे कहा था कि आप पर तो एक पूरी किताब लिखनी है। तो, ओम पुरी ने भी टालू अंदाज में कह दिया था कि किताब लिखने का भी कभी समय आ जाएगा। मगर, उस वक्त ओम पुरी को कहां पता था कि वही किताब उनकी जीवन भर की पूंजी के नीलाम करने के लिए उन्हें चौराहे पर खड़ा कर देगी। ओम पुरी का कहना था कि इतने वर्षों तक इतनी सारी मेहनत कर के उन्होंने जो प्रतिष्ठा अर्जित थी, नंदिता की किताब ने उस पर कीचड़ उड़ेल दिया। बात सही है, ओम पुरी सचमुच बहुत मेहनती थे। गुड्डू के रूप में छह साल की उम्र में चाय की दुकान झूठे कप – प्लेट धोया करते थे। थोड़े बड़े हुए, तो साइकिल के पंचर बनाना सीख लिया था। उसके बाद ओम प्रकाश के रूप में गैराज में कारों की मरम्मत भी की। आखिर थिएटर पहुंचे और बहुत मेहनत करके ओम पुरी के रूप में बड़े कलाकार बनकर बाहर निकले। लेकिन सिनेमा में आए, तो भी मेहनत पर मेहनत करते रहे।
मगर, ओम पुरी को क्या किसी के भी जीवन का इतिहास अगर किताब के रूप में कोई सामने लाए, तो लेखकीय ईमानदारी यह तो नहीं होती कि वह सिर्फ एक ही समूचे जीवन को तज कर एक ही पहलू को प्रखरता से प्रकाशित करे। लेकिन नंदिता ने यह ईमानदारी नहीं दिखाई। जबकि ओम पुरी के जीवन के उजले पहलूओं का उजाला उन पर उड़ेली गई कालिख से कई लाख गुना ज्यादा उजला था। मगर, नंदिता ने ओम पुरी की कला की चमक, जिंदगी को जीने के उनके अंदाज, खुरदरे चेहरे के बावजूद हीरो को टक्कर देने की गजब हिम्मत का और इसी तरह के हजारों चमकीले पहलुओं का कोई खास जिक्र नहीं किया। अपनी पुस्तक में नंदिता ने ओम पुरी के जीवन में आई मामूली महिलाओं के वर्णन को भी विवेचनापूर्ण विस्तार दे दिया था। ओम पुरी इसीलिए नंदिता से बहुत आहत थे। पांच साल पहले, जब से यह किताब बाजार में आई थी, तब से ही वे भीतर से लगातार टूटते जा रहे थे। मगर, आहत ओम पुरी फिर भी जोश से जीए जा रहे थे।
हम सबने देखा कि ओम पुरी की मौत पर जो दो श्रद्धांजली सभाएं हुईं, उनमें से एक उनकी पूर्व पत्नी उन सीमा कपूर ने आयोजित की थी, जिसने ओम पुरी को अनपढ़ और जाहिल कहते हुए और अच्छी खासी वसूली कर के तलाक दे दिया था। लेकिन ओम पुरी तो अलग माटी के मनुष्य थे। सो, तलाक के बावजूद वे अपने अनोखे अंदाज में सीमा को अपनी सहचरी मानते रहे। उसी सहचर संबंध को निभाने सीमा के बुलावे पर एक बार तो ओम पुरी मुंबई में शूटिंग का शिड्यूल बदलवाकर हवाई जहाज पकड़कर शाम को सीधे रायपुर पहुंच गए थे। वही पर रात को सीमा के साथ ठहरे भी। और यह मानना कोई पाप नहीं होगा कि अपनी भूतपूर्व पत्नी के साथ रात भर एक कमरे में रह कर निश्चित रूप से पुरी साहब कोई हनुमान चालीसा का पाठ तो नहीं कर रहे होंगे।
खैर, ओम पुरी चले गए। इतना जल्दी नहीं जाना चाहिए था। लेकिन अभागे ओम पुरी नहीं जाते, तो क्या करते। अभागे इसलिए, क्योंकि पहली पत्नी सामा कपूर ओम पुरी का तब तक कमाया सारा धन झपट कर तलाक ले गई थी। और दूसरी पत्नी नंदिता ने पति की जिंदगी के इतिहास को इज्जत बख्शने के बजाय उनकी आबरू नीलाम करके तलाक की अर्जी दे दी। फिर भी बहुत कुछ बाकी था ओम पुरी में। कला का अथाह संसार तो खैर, उनमें सतह तक समाया हुआ था ही, स्नेह का सागर भी उनमें हमेशा हिलोरें लेता दिखता था। स्नेह के इसी सागर पर आखरी कथा यह कि अपने बेटे को वे बहुत प्यार करते थे। और, अपनी मौत से पहले वाली 5 जनवरी 2017 की रात ओम पुरी बेटे ईशान से मिलने नंदिता के घर गए थे। कार में बैठे बैठे ही फोन करके बेटे के नीचे बुलाया। कहा था – ‘एक बार भेज दो, मिलना है, सिर्फ देखना है।‘ घर से कहा गया – ‘नहीं आएगा वह।’ आहत ओम पुरी आंखों में आंसू भरकर टूटे दिल से बोले – ‘घर का सारा खर्चा मैं देता हूं। घर भी मेरे पैसों से ही है। कमाई भी मेरी है। बेटा भी मेरा है। फिर भी मिलने नहीं देते...।’ इस तरह के अनेक अवसादों से भरे ओम पुरी असल में आदम कद के अभिनेता थे, और ऐसे महान कलाकारों के स्पर्श मात्र से ही कोई सामान्य मनुष्य बेहतरीन कलाकार बन सकता था। सो, सिर्फ माहौल की मजबूरी निभाने के लिए रोने की कला तो नंदिता ने भी बीस साल में सीख ही ही ली होगी। इसीलिए ओम पुरी की मृत्यु पर नंदिता को रोते देख किसी को भले ही लगता हो कि वह दुखी रही होगी। और बुद्धिजीवी टाइप के लोग भी अपनी इस बात से सहमत नहीं होंगे, लेकिन अपना मानना है कि रिश्तों की लाज नंदिता ने नहीं निभाई, सो उन्हें पति के उस रिश्ते पर तो रोने का हक कतई नहीं है, जिसे उन्होंने खुद तिलांजली दी हो। लेकिन यह तथ्य यह भी है कि नंदिता की किताब के बाजार में आने के बाद से ही अपनी इज्जत को मटियामेट होता देखा, तो ओम पुरी शराब में डूबकर अपने दर्द को भुलाने लगे थे। और शराब के नशे में ही उन्हें दिल का भी दौरा पड़ा। इसीलिए, क्या तो नंदिता का दुख, क्या उनके आंसू और क्या उनके आहत होने की अहमियत! वैसे भी, आप महान कलाकार थे ओमजी, नंदिता की एक तो क्या, हजार नंदिताओं की हजारों किताबें, हजारों साल तक आपके कद को कम नहीं कर सकतीं। लेकिन हां, आप अभागे जरूर थे ओमजी, जो रिश्तों का शोषण करके अपने जीवन में सुख की सेज बिछानेवालियां ही जीवन साथी के रूप में आपको मिलीं। और किसी को न मिले, यही कामना।
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