21.2.17

राम और बुद्ध की प्राचीन धरा पर हिंदी की अनुगूँज

पटना । “रचनाकर्म और रचनाकार की मंशा एवं दिशा स्पष्ट रहनी चाहिए। नये रचनाकारों के प्रतिबद्ध लेखन एवं सरोकार से आशा बनी हुई है कि साहित्य की उत्तरजीविता संभावनाओं से अभी भी लबरेज़ है।” ये बात हिंदी के प्रतिष्ठित एवं प्रगतिशील आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने 13 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कही।


उन्होंने कहा कि हिंदी के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों और विस्तार-कर्म में नये किन्तु प्रबुद्ध रचनाकारों की सहभागिता और उनकी रचनाशीलता से मैं खुद को गौरवान्वित पाता रहा हूँ। यह कम महत्वपूर्ण नहीं कि 13-13 देशों में हिंदी के संवर्धन की दिशा में कटिबद्ध सृजनगाथा डॉट कॉम की पहुँच पर निरंतर साहित्यिक और अकादमिक विश्वास बढ़ रहा है।

मुख्य अतिथि और दक्षिण भारत की विदुषी लेखिका डॉ. बी.वै.ललिताम्बा ने साहित्य में आयी विमर्शों की बाढ़ को लक्ष्य करते हुए कहा कि साहित्य में सदैव सार्थक विमर्श होना चाहिए। साहित्य में विमर्श हो किन्तु विमर्श में ही साहित्य न हो। सम्मेलन में स्वागत भाषण दिया हिंदी वरिष्ठ गीतकार और ‘नये पाठक’ के संपादक ’डॉ. अजय पाठक ने।

नेपाल के कुमुद अधिकारी को सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान
बाली की राजधानी डेंपासार में 2 फरवरी से 9 फरवरी तक हुए इस समारोह में 6 रचनाकारों को वर्ष 2016 के लिए विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इस क्रम में 11-11 हज़ार रुपये का सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान उत्कृष्ट कथा लेखन के लिए नेपाल के श्री कुमुद अधिकारी, समाजशास्त्रीय लेखन के लिए प्रो. सहदेव सिंह स्मृति सम्मान राकेश अचल (ग्वालियर), नाट्य लेखन एवं निर्देशन के लिए श्री सलेकचंद जैन स्मृति सम्मान श्री मथुरा कलौनी (चैन्नई) उत्कृष्ठ लघुकथा लेखन के लिए नये पाठक सम्मान डॉ जसवीर चावला (चंडीगढ़) को प्रदान किया गया। ग़ज़ल लेखन के लिए 21,000 रुपये का प. गिरिजाकुमार पांडेय सम्मान श्री कृष्ण कुमार प्रजापति (राउरकेला) को प्रदान किया गया। इसके अलावा विभिन्न विधाओं के रचनाकारों को उनके सृजनात्मक योगदान के लिए छत्तीसगढ़ के गौरव पुरुषों की स्मृति में प्रतीकात्मक सम्मान प्रदान कर अलंकृत किया गया।

13 पुस्तकों का लोकार्पण
13 वें समारोह में डॉ. मनोहर श्रीमाली की (चित्रित आर्ष रामायण- शोध ) डॉ. विनोद मंगलम् (अज्ञेय और पाश्चात्य साहित्यकारों का तुलनात्मक अध्ययन- आलोचना), डॉ. जसवीर चावला (प्रबंधन के गुर - बुद्ध के सुर - साहित्येतर), डॉ. मीनाक्षी जोशी (समकालीन गुजराती कहानियाँ – अनुवाद ), श्री मथुरा कलोनी (धतूरे के बीज – नाटक), डॉ. सुनील जाधव (मेरे भीतर मैं – कविता संग्रह), डॉ. अजय पाठक (मन बंजारा – गीत संग्रह), राधेश्याम भारतीय (तुम ही नींव हो, तुम्हीं कंगूरे – गीत संग्रह), डॉ. संगीता ('गढ रे मन गढ' – कविता संग्रह), डॉ. एम. जी. नाडकर्णी (भूले-बिसरे - संस्मरण), मुकेश जोशी (ऑल इज़ वेल – व्यंग्य संग्रह) और ओडिया लेखिका मंजुला त्रिपाठी की दो कहानी संग्रहों का विमोचन किया गया ।

जनतंत्र और धर्म दोनों पथभष्ट्रता की ओर
मनुष्य की धार्मिक क्रियाकलापें जैसे जैसे बढ़ रही है धर्म वैसे-वैसे अजनतांत्रिक भी होते जा रहे हैं । ठीक इसी तरह जनतंत्र में धर्म का हस्तक्षेप ग़ैरजनतांत्रिकता को बढ़ावा दे रहा है । यह एशिया और यूरोप के देशों सभी जगह देखा जा रहा है जो चिंता का विषय है । धर्म और जनतंत्र दोनों मनुष्य के विकास और कल्याण के औजार थे किन्तु अब वे लगातार चूक रहे हैं । दोनों पथभ्रष्टता की ओर उन्मुख हो चके हैं । यह निष्कर्ष था अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुए विमर्श का । द्वितीय सत्र में संपन्न ‘जनतंत्र का धर्म : धर्म का जनतंत्र’ विषय पर केंद्रित संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयों के अध्यापकों, शिक्षाविदों तथा रचनाकारों ने अपने शोध आलेख का वाचन किया । इनमें डॉ. संजय कुमार, डॉ. मंजुला दास, प्रो. सर्वमंगला, जी.आर, डॉ. मंगला रानी, ललित शर्मा, डॉ. वंदना रानी, डॉ. निशा जोशी, डॉ. संदीप नाडकर्णी, डॉ. नैना डेलीवाला, डॉ. सुनील जाधव, डॉ. इंद्राणी मलैया, सुश्री बीना श्रीवास्तव, डॉ. नमिता चतुर्वेदी, स्वामी शिवज्योतिषानंद, श्री जसवंत क्लाडियस, डॉ. दिलीप मलैया व प्रभु नारयण दत्त ब्रह्मचारी प्रमुख हैं । संगोष्ठी की अध्यक्षता साहित्य अकादमी की गुजराती प्रभाग की सदस्या डॉ. मीनाक्षी जोशी ने की गुजरात साहित्य अकादमी की वरिष्ठ सदस्या डॉ. लता हिरानी थीं मुख्य अतिथि ।

विधाओं की बहार
अंतरराष्ट्रीय  रचना पाठ के तीसरे सत्र में कृष्ण कुमार प्रजापति कुमुद अधिकारी, मुकेश जोशी, असंग घोष, डॉ. मनोहर श्रीमाली, कृष्ण कुमार प्रजापति, डॉ. अशोक कुमार प्रसाद, चेतन भारती, आभा चौधरी, डॉ. संगीता सक्सेना, श्रीमती मंजु त्रिपाठी, राधेश्याम भारतीय, कुमार अरुणोदय, बसीरन बीबी, मृत्युंजय मोहन्ती, डॉ. इला मोहन्ती, डॉ. सुचित्रा राऊत, मिरचुमल आदि ने हिंदी, नेपाली, ओडिया, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं में अपनी-अपनी प्रतिनिधि लघुकथाओं, ग़ज़लों, कविताओं का पाठ किया । सत्र का सफलतम संचालन किया शायर मुमताज, व्यंग्यकार मुकेश जोशी ने।

चौथे और सांस्कृतिक सत्र में बैंगलोर के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक मथुरा कलोनी ने अपने चर्चित नाट्य कृति धतूरे के बीच पर केंद्रित मोनोप्ले किया। राजस्थान के वरिष्ठ लोकगायक राजेन्द्रानंद ने राजस्थानी गीतों से श्रोताओं को सराबोर किया। वरिष्ठ कत्थक नृत्यांगना डॉ. अनुराधा दुबे अपने नृत्य से सबका मन मोह लिया ।

14 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन – राजस्थान में
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के समन्वयक और सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक ने समारोह में बताया कि अगला आयोजन राजस्थान के विशिष्ट जगहों पर सितंबर-अक्टूबर 2017 में आयोजित किया जायेगा ।

60 सदस्यीय रचनाकारों के दल ने राम और बुद्ध की पुरातन संस्कृति के संवाहक देश बाली (इंडोनेशिया) के विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, राजनीतिक, व्यापारिक और प्राकृतिक स्थलों-संस्थाओं सहित स्थानीय जनजीवन का अध्ययन और अनुशीलन भी किया ।

अनेक संस्थाएँ संग-संग
साहित्य संस्कृति और भाषा की अंतरराष्ट्रीय वेब पोर्टल सृजनगाथा डॉट कॉम के संयोजन और प्रो. सहदेव सिंह स्मृति संस्थान नई दिल्ली, श्री सलेकचंद जैन स्मृति संस्थान नई दिल्ली, मिनीमाता फाउंडेशन रायपुर,नये पाठक बिलासपुर, शिल्पायन प्रकाशन नई दिल्ली, सिंधु देवी रथ स्मृति संस्थान रायगढ़ के आत्मीय सहयोग से संपन्न इस आयोजन में कुणाल जैन, डॉ. दिलीप कुमार मलैया, कल्पना रथ, निर्मला जटिया, दीपा प्रजापति, सोनाली नाडकर्णी, वंदना जोशी, रीता पाठक, जेएसबी क्लाडियस, विनय सक्सेना, रजनी अरुणोदय आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

डॉ. अशोक कुमार प्रसाद की रपट

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