बसपा के लिए मुक्त है सामाजिक न्याय की राजनीति का मैदान!
एच.एल.दुसाधविभिन्न पार्टियों का घोषणापत्र जारी होने के बाद यूपी विधानसभा चुनाव के मुद्दे अब लगभग स्पष्ट हो चुके हैं.भाजपा विकास के साथ ही डॉ.हेडगेवार के फार्मूले ,हिन्दू धर्म-संस्कृति के उज्जवल पक्ष और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के जरिये सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करेगी ,जबकि अखिलेश की सपा पूरी तरह विकास के मुद्दे पर निर्भर रहेगी.वैसे सपा की पहचान मुख्यतः सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में है पर, नई सदी में उसने कभी सामाजिक न्याय का मुद्दा स्पर्श किया ही नहीं.इस बीच विगत वर्षों में जिस तरह सपा सरकार में कुछ सड़कों ,फ्लाई ओवर,मेट्रो इत्यादि का निर्माण हुआ और पब्लिक की ओर से अच्छा रेस्पोंस मिला उससे अखिलेश यादव विकास के नाम पर चुनाव जीतने के प्रति कुछ ज्यादे ही आशावादी हो उठे हैं.किन्तु विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ रहे अखिलेश यादव पर हाल के दिनों में जिस तरह पिछड़े समुदाय के बुद्धिजीवियों द्वारा सामाजिक न्याय की राजनीति की ओर लौटने का दबाव बना था,उससे लगा था कि अखिलेश यादव सरकारी ठेंकों में एससी/एसटी के आरक्षण ,प्रमोशन में आरक्षण तथा त्रि-स्तरीय आरक्षण पर अपने सरकार की भूमिका के लिए खेद प्रकट करते हुए, इस चुनाव में सामाजिक न्याय का मुद्दा भी उठाएंगे.किन्तु खेद प्रकट करना तो दूर, उन्होंने जिस तरह संघ प्रचारक मनमोहन वैद्य के आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्समीक्षा संबंधी बयान पर ख़ामोशी अख्तियार किया,उससे तय हो गया कि सपा पूरी तरह विकास के मुद्दे पर ही निर्भर रहेगी.बहरहाल सपा द्वारा पूरी तरह विकास की राजनीति पर निर्भर रहने के बाद यूपी में सामाजिक न्याय की राजनीति का पूरा क्षेत्र बसपा के लिए मुक्त हो गया है और वह इसे एक अवसर के रूप लेती प्रतीत हो रही है.
मनमोहन वैद्य के बयान पर अखिलेश यादव की निर्लिप्तता को बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक अवसर के रूप में देखा इसलिए उसे लपकने में खूब देर नहीं लगाया.खूब देर इसलिए कह रहा हूँ कि उनसे पहले लालू प्रसाद यादव ने इस पर उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया देकर आरक्षित वर्गों का दिल जीत लिया था . खैर! थोड़ी देरी ही सही ,मायावती जी ने लालू के अंदाज में संघ परिवार को चेताते हुए कहा-‘ भाजपा और संघ के लोगों को आरक्षण को ख़त्म करने की बार-बार बन्दर घुड़की देने की बात बंद कर देनी चाहिए .दलित,आदिवासी और पिछड़ों को डॉ.आंबेडकर के अथक प्रयासों से संविधान में आरक्षण और जो अन्य कानूनी अधिकार मिले हैं ,वो उनका संवैधानिक अधिकार है.इस अधिकार को कोई सरकार,खासकर भाजपा और आरएसएस के लोग भी छीन नहीं सकते .अगर आरक्षण ख़त्म करने के लिए मोदी सरकार कानून बनाती है तो इन वर्गों के लोग उसे हमेशा के लिए राजनीति करना भुला देंगे.’उनकी उस प्रतिक्रिया पर बहुजन समाज के बीच जो सकारात्मक सन्देश गया उससे उत्साहित होकर वह लगातार संघ परिवार के आरक्षण-विरोधी साजिशों से बहुजन समाज को अवगत करा रही हैं और ऐसा यूपी के बाहर भी कर रही हैं.बहरहाल इसमें कोई शक नहीं कि यूपी चुनाव में मायावती जी सामाजिक न्याय के मुक्त अवसर के सद्व्यवहार की दिशा में आगे बढ़ रही हैं.पर पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा हैं कि वह यह सब आधे-अधूरे मन से कर रही हैं.अगर वह सचमुच भाजपा-आरएसएस को आरक्षण के लिए खतरा मानती हैं तो उन्हें लालू प्रसाद यादव से प्रेरणा लेकर सामाजिक न्याय की राजनीति को नई उंचाई देनी होगी.
स्मरण रहे मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे यूपी के साथ बिहार में भी सामाजिक न्याय की राजनीति को जमींदोज कर दिया था, तब सामाजिक न्याय के दूसरे नायक/नायिकाओं के साथ लालू प्रसाद यादव भी स्तब्ध हुए बिना न रह सके थे .किन्तु जोरदार तरीके से सत्ता में आने के बाद जब मोदी दूसरे दलों से आये बहुजन नेताओं की उपेक्षा करने के साथ संपदा-संसाधनों में नीची जाति के लोगों की भागीदारी देने लायक कोई नीति ग्रहण करने का संकेत नहीं दिये,तब अच्छे दिन आने की उम्मीद पाले दलित,पिछड़ों में निराशा घर करने लगी.भाजपा के प्रति वंचितों में पनपते इस निराशा को लालू यादव जैसे राजनीति के पुराने घाघ ने ताड़ लिया और बिना देर किये भाजपा से मुक्ति के लिए उन्होंने अपने पुराने शत्रु नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने के साथ ही मंडल के एक नए दौर का एलान करते हुए कह दिया-‘मंडल ही बनेगा कमंडल की काट’.सिर्फ नारा ही नहीं उछाला बल्कि उसे जमीनी स्तर पर उतारने के लिए ‘निजी क्षेत्र सहित विकास की तमाम योजनाओं में दलित,आदिवासी ,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण की मांग उठा दिया’.भाजपा को रोकने के लिए लालू ने नीतीश की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाने के साथ ही बिहार की राजनीति को नए सिरे से मंडल केन्द्रित करने का जो पहल किया वह रंग लाया और बिहार विधानसभा उपचुनाव-2014 में भाजपा की रुखसती की जमीन तैयार हुई.
बिहार विधानसभा उपचुनाव परिणामों ने लालू यादव में यकीन पुख्ता किया कि मंडलवादी राजनीति के जरिये अप्रतिरोध्य मोदी की भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है.इस कारण ही वे उपचुनाव बाद भी रह-रहकर मंडल की बात उठाते रहे.लेकिन जाति जनगणना की लड़ाई के जरिये उन्होंने जुलाई 2015 में ही बिहार विधानसभा चुनाव को मंडल केन्द्रित करने की खुली घोषणा कर दिया.तब उन्होंने कहा था,’इस बार का चुनाव कमंडल के खिलाफ मंडल का होगा.90 प्रतिशत पिछड़ों पर 10 प्रतिशत राज कर रहे हैं.हम अपने बाप-दादा का हक़ लेकर रहेंगे.इसलिए मंडल के लोगों उठो और वोट से कमंडल फोड़ दो .’और लालू का आह्वान व्यर्थ नहीं गया,8 नवम्बर ,2015 को जब बिहार विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया,देखा गया कि मंडल के लोगों ने सचमुच कमंडल फोड़ कर रख दिया है.लेकिन बिहार में कमंडल यूं ही नहीं फूटा,इसके लिए लालू यादव को संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाना पड़ा था.
स्मरण रहे जिस तरह यूपी विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने जयपुर के लिटरेरी फेस्टिवल से आरक्षण विरोधी बयान जारी किया ,वैसा ही सितम्बर 2015 के उत्तरार्द्ध में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भगवत ने किया था.तब साल भर पूर्व से ही बिहार विधानसभा चुनाव को मंडल बनाम कमंडल पर केन्द्रित करने में जुटे लालू यादव भागवत का बयान आते ही फुल फॉर्म में आ गए.उनके बयान को पकड़ कर जब उन्होंने अपने खास अंदाज में घुमा-फिराकर यह बातें-‘तुम आरक्षण का खात्मा करना चाहते लेकिन हम इसे संख्यानुपात में बढ़ाएंगे’, ‘कौन माई का लाल है जो आरक्षण को ख़तम करेगा’,’गये ,गये तुम तो गए,बीजेपी आई तो तुम्हारा आरक्षण गया ’,’हम ऐसे ब्रह्म पिचास हैं जो शैतान को नष्ट करना जानता है’,’हम भाजपा को ऐसी पटकनी देंगे जिसे वह कभी भूल नहीं पायेगी’-हर रैली में उठाना शुरू किया ,दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यक महागठबंधन के पीछे बुरी तरह लामबंद हो लिए.और इसका जो परिणाम निकला वह 8 नवम्बर,2015 को इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया.बहरहाल 2015 में लालू प्रसाद यादव ने अप्रतिरोध्य मोदी को बिहार में रोककर जो ऐतिहासिक कारनामा अंजाम दिया उसे इतिहास ने 2017 में यूपी में दोहराने की जिम्मेवारी मायावती के कन्धों पर डाल दिया है.
मायावती जी को यह याद रखना होगा की मोदी आज भारत में सबसे खतरनाक शख्सियत के रूप में उभरे हैं.इनका उभार बहुजन भारत के लिए लिए कितना चिंता का विषय है,इसका जायजा उनके अमेरिकी क्लोन डोनाल्ड ट्रंप के उभार से लगाया जा सकता है.आज ट्रंप की संकीर्ण नीतियों ने दुनिया को एक नए संकट के सम्मुखीन खड़ा कर दिया है.मोदी के यूपी विजय से दलित,पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय अभूतपूर्व संकट के सम्मुखीन होने जा रहा है.जो मोदी बहुजन समाज के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में उभरे हैं उनकी तुगलकी नीतियों से उनका वह वोटबैंक भी त्रस्त है,जिसका देश के उद्योग-व्यापार ,फिल्म-मीडिया,शासन-प्रशासन इत्यादि पर 80-85 प्रतिशत कब्ज़ा है.किन्तु उनकी तमाम कमियों को नजरअंदाज कर यह शक्तिशाली वर्ग इसलिए उनके पीछे खड़ा है कि यूपी विजय के बाद संघ परिवार आरक्षण के खात्मे की दिशा में अग्रसर हो जायेगा.ऐसा में मायावती यदि मोदी को रोकना चाहती हैं तो उन्हें सामाजिक न्याय की राजनीति को विस्तार देने के लिए खुलकर सामने आना होगा.क्योंकि धन्नासेठों ,मीडिया,साधू-संतों और बुद्धिजीवियों के विपुल समर्थन से पुष्ट मोदी को सिर्फ और सिर्फ सामाजिक न्याय की पिच पर ही मात दी जा सकती है,विकास या धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर नहीं.इसके लिए मायावती जी को नौकरियों से आगे बढ़कर ठेकों,सप्लाई,डीलरशिप ,पार्किंग,परिवहन,फिल्म -मीडिया,पौरोहित्य इत्यादि हर क्षेत्र में दलित,आदिवासी,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के संख्यानुपात में भागीदारी दिलाने की उग्र हिमायत करनी होगी.ऐसा करना न सिर्फ मोदी को रोकने के लिए, बल्कि खुद बसपा का वजूद बचाने के लिए भी बहुत जरुरी है.
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