25 साल जीवन के, शादी के या नौकरी के। बहुत होते हैं 25 साल। यूं भी 25 वर्ष रजत जयंती वर्ष होता है। जीवन में शताब्दी का चौथाई तो नौकरी का अंतिम पड़ाव। नौकरी का अंतिम पड़ाव जहां सरकारी नौकर के लिए खुशियों की सौगात लाता है वहीं निजी/असंगठित क्षेत्र मीडिया के लिए एक नयी जद्दोजहद।
है न चौंकाने वाली बात। छोटा ही सही मीडिया जगत का एक घराना सहारा मीडिया लखनऊ अपनी जीवनयात्रा का 25वां स्थापना वर्ष (रजत जयंती वर्ष ) मना रहा है। आज से 25 साल पहले नवाबों का शहर लखनऊ "ये एक और अखबार नहीं, रचनात्मक आंदोलन" है के बोर्ड से अटा पड़ा था। अखबार के प्रकाशन से पूर्व होने वाली बैठकों में इसके मुखिया आंदोलन पर भाषण पर भाषण पिलाया करते थे, आंदोलन का महत्व बताया करते थे और हम जैसे लोग बैठकर आपनी मुंडी हिलाया करते थे। अब वो ठहरे मालिक थे और हम नौकर। हमारी मजबूरी थी मुंडी हिलाना। अगर वो कर्मचारियों के पाले में होते तो वे मुंडी हिलाते और मैं उन्हें भाषण पिलाता। उनसे अच्छा नही तो खराब भी भाषण नहीं देता।
उस समय सहारा का घोषित वार्षिक टर्न ओवर 2000 करोड़ का था। छोटे कारोबारी होने के नाते वे सहज उपलब्ध भी थे। आज कारोबार पचासों गुना ज्यादा होगा। कारोबार बढ़ा फिर अखबार और अखबार का रुतबा क्यों नहीं बढ़ा। कारोबार पचास गुना से भी कहीं ज्यादा बढ़ा लेकिन कर्मचारियों की पगार उस अनुपात में नही बढ़ी। यही रजत जयंती वर्ष किसी और मीडिया हाउस का होता तो क्या यही हाल होता ? ज्ञात हो कि इसी सहारा ने अपने स्थापना के 25वें साल पर सभी की सैलरी 25 % बढ़ाई थी।
राष्ट्रीय सहारा दिल्ली ने 15 अगस्त 16 को अपना रजत जयंती वर्ष मनाया। रजत जयंती वर्ष पर अपनी तरफ से सेफ ऐग्जिट प्लान लाकर लगभग 212 कर्मचारियो को बाहर का रास्ता दिखा दिया तो 88 कर्मचारी जो 60 वर्ष की आयु से अधिक के थे उनका एक्सटेंशन रद कर निकाल दिया। अपने को विश्व का सबसे बड़ा परिवार होने का दावा करने वाले सहारा इंडिया का जब अपने इतने मीडियाकर्मियों के पेट पर लात मारने से भी पेट नहीं भरा तो उसने लखनऊ राष्ट्रीय सहारा की रजत जयंती वर्ष के शुरुआत में स्थापना वर्ष से जुड़े रहे अरुण श्रीवास्तव सहित आधा दर्जन कर्मचारियों को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया वो भी बिना आरोप लगाये, बिना जांच कराये। यह कैसा रजत जयंती वर्ष है कर्मचारी संस्था से बकाया वेतन मांग रहे हैं और संस्थान उन्हे नौकरी से निकाल रहा है। यह कैसा रजत जयंती वर्ष है आप परिसर के अंदर उत्सव मना रहे हैं और परिसर के बाहर भूखे कर्मचारी अपने बकाया वेतन के लिए, अवैधानिक निष्कासन के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
बताते चलें कि संस्था जो ऐग्जिट प्लान लेकर आई उसकी मंजूरी श्रम विभाग से मंजूरी नहीं ली थी। इस प्लान में सभी बकाया एकमुश्त देने का वादा किया था। आजतक किसी को भी पूरा बकाया नहीं दिया। मीडिया में कार्यरत हजारों कर्मचारियों को कई माह का बकाया वेतन नही दिया। सहारा अपने निवेशकों को ही बेवकूफ नहीं बनाता रहा कर्मचारियों को भी खूब बेवकूफ बनाया। सेफ ऐग्जिट प्लान की असलियत भी जान लें। मालिकों का तलुवा चाटने वाले अधिकारियों ने योजना बनायी। जो सेफ ऐग्जिट प्लान के तहत नौकरी छोड़ेगा उसे उसका सभी "बकाया" एकमुश्त दे दिया जाएगा। समाचारों के वाण से कद्दू में तीर मारने वाले तमाम नपुंसक पत्रकार इस प्लान रूपी तलवार के नीचे अपनी गर्दन रख दी। ये नहीं सोचा कि बकाया ही तो दे रहे हैं। बकाया दिया तो कोई एहसान कर दिया क्या ?
बहरहाल, यह कैसा रजत जयंती वर्ष है भरे पेट वाले अंदर उत्सव मना रहे हैं और बाहर खाली पेट वाले अंदर आने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है....
आधी दुनिया में उंजियारी।
आधी में अंधियारा है।।
आधी में जगमग दीवाली।
आधी में दीवाला है।।...
लेखक अरुण श्रीवास्तव राष्ट्रीय सहारा देहरादून में लंबे समय तक कार्यरत रहे हैं.
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