27.4.17
26.4.17
अमर उजाला का कारनामा
फैजाबाद में अमर उजाला के रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों ने चंद्रशेखर जयंती पर मुख्य माई सिटी पेज पर चंद्रशेखर जी के स्थान पर शहीद भगत सिंह की फोटो छाप कर आम पाठकों को ठगने का काम किया है। इस मिस्टेक पर न तो लखनऊ के सम्पादक का ध्यान जा रहा है न ही फैजाबाद के ब्यूरो चीफ का ही ध्यान है। इससे पूर्व भी एक घटना हो चुकी है जिसमें पुरानी फोटो छापी गई थी उसमें बलि का बकरा फोटोग्राफर को बनाया गया था।
टाइम्स आफ इंडिया वालों ने चित्रा सिंह को लेकर इतना बड़ा झूठ क्यों छाप दिया!
खबर पढ़ाने के चक्कर में खबरों के साथ जो बलात्कार आजकल अखबार वाले कर रहे हैं, वह हृदय विदारक है. टाइम्स आफ इंडिया वालों ने छाप दिया कि सिंगर चित्रा सिंह ने 26 साल बाद का मौन तोड़ा और गाना गाया. टीओआई में सचित्र छपी इस खबर का असलियत ये है कि चित्रा सिंह ने कोई ग़ज़ल / भजन नहीं गया. उन्हें मंच पर बुलाकर सिर्फ सम्मानित किया गया था. लेकिन खबर चटखारेदार बनाने के लिए छाप दिया कि चित्रा ने गाना गाया. पढ़िए आप भी टीओआई का झूठी खबर....
मुद्दों से ध्यान भटकाती भारतीय मीडिया
देश के एक-एक नागरिक के अंदर राजनीति इस कदर भर दी गई है कि हर कोई राजनीति पर चर्चा करना चाहता है। एक नया रिपोर्टर जब इंटरव्यू देने आता है तो उससे पूछा जाता है कि आप क्या लिखना चाहते हैं। उस नए लड़के के मुंह से पहला शब्द निकलता है सर मैं राजनीति पर लिखना चाहता हूं। जबकि राजनीति के बारे में अभी उसका अक्षर ज्ञान जीरो रहता है। फिर सवाल उठता है कि आखिर राजनीति पर भी 99 प्रतिशत लोग क्यों लिखना चाहते हैं? ऐसी क्या विशेष बात है? फिर अनेकों जवाब, लेकिन एक जवाब आता है परिवेश का। अर्थात् हमारे चारों ओर के परिवेश में राजनीति चर्चा फैली हुई है। और भारतीय मीडिया, परंपरागत मीडिया, नुक्कड नाटक, चौपाल चारों तरफ राजनैतिक चर्चा होती है। अब सच्चाई यह है कि लोग इसमें इतना रम गए हैं कि अपना वास्तविक मुद्दा ही भूल गए हैं।
सरकार क्या-क्या करे आपके लिए?
मैंने लोगों को इसलिए जागरुक करने का प्रयास किया कि यदि आप बेरोजगार हैं तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। भूखे हैं उपचार के अभाव से तरस रहे हैं तो सरकार जिम्मेदार है। जिसके सामने भी मैंने बात रखी पहला उनका जवाब था कि सरकार आपके लिए क्या-क्या करें। सस्ता अनाज दे रही है, छात्रवृत्ति दे रही है, नि:शुल्क शिक्षा दे रही है, सस्ता इलाज दे रही है, जननी सुरक्षा भत्ता दे रही है, विधवाओं, वृद्धों और विकलांगों को पेंशन दे रही है। अब बेरोजगारी भत्ता, और बेरोजगारों को बिजली पानी, यात्रा सेवा भी फ्री देगी तो लोग निकम्मे बनेंगे।
सरकार अप्रत्यक्ष कर लेकर कहती है यह हमारी जिम्मेदारी नहीं
मने लोगों को इसलिए जागरुक करने का प्रयास किया कि यदि आप बेरोजगार हैं तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। भूखे हैं उपचार के अभाव से तरस रहे हैं तो सरकार जिम्मेदार है। जिसके सामने भी मैंने बात रखी पहला उनका जवाब था कि सरकार आपके लिए क्या-क्या करें। सस्ता अनाज दे रही है, छात्रवृत्ति दे रही है, नि:शुल्क शिक्षा दे रही है, सस्ता इलाज दे रही है, जननी सुरक्षा भत्ता दे रही है, विधवाओं, वृद्धों और विकलांगों को पेंशन दे रही है। अब बेरोजगारी भत्ता, और बेरोजगारों को बिजली पानी, यात्रा सेवा भी फ्री देगी तो लोग निकम्मे बनेंगे।
सामान्यत: अधिकांश देशवासियों की यही सोच है। और इसका कारण है कि सरकार अप्रत्यक्ष कर लेती है। यदि यही कर प्रत्यक्ष होता तो लोग सरकार के सिर में चढ़े रहते कि आपने हमसे इतना पैसा लेकर किया क्या?
आपने कभी सोचा है कि जो सामान आप खरीदते हैं उससे सरकार को कितना टैक्स जाता है? 70 प्रतिशत से भी अधिक। जीएसटी आने के बाद यह माना जा रहा है कि 40 प्रतिशत तक अप्रत्यक्ष कर देना पड़ेगा।
बेरोजगारी पर कानूनी हक
कानूनी हकों की बात करें तो जीवन के अधिकार के तहत सरकार हर नागरिक से यह वादा करती है कि आपको भूख, उपचार के अभाव आदि में मरने नहीं दिया जाएगा। इसे ही जीवन प्रत्याशा कहते है। जो भारत में 65 साल है अर्थात् इस उम्र से पहले यदि कोई प्राकृतिक आपदा के अभाव में मरा तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। मुआवजा की मांग कर सकते हैं। इसीलिए मृतक का पोस्ट मार्टम होता है।
तो व्यक्ति की भूख कब मिटेगी जब उसके हाथ में रोजगार होगा। अर्थात् रोजगार के अधिकार को ही आजीविका का अधिकार कहते हैं। और हर नागरिक को रोजगार देना सरकार की कानूनी मजबूरी है। नहीं दे पा रही है तो इतना बेरोजगारी भत्ता देना चहिए जिससे उसका गुजारा हो सके।
विदेशों में सरकार खुद एक-एक बेरोजगार के लिए नौकरी खोजकर देती है। तब तक बेरोजगारी भत्ता तो मिलता ही रहता है। ३ नौकरी का आफर देती है और फिर भी कोई लापरवाही करता है तो देश की अर्थव्यवस्था बिगाडऩे के आरोप में उसे दंडित किया जाता है। भारत में तो सरकार खुद ही अर्थव्यवस्था बिगाड़ रही है।
आपने कभी सोचा है कि एक रुपए में मिलने वाला पेन 3 रुपए का क्या मिलता है। 2 या 3 रुपए की चीज हमें 5 रुपए में क्यों मिलती है। क्योंकि सरकार हमसे अप्रत्यक्ष टैक्स लेती है जो प्रत्यक्ष टैक्स भी कई गुना होती है। और समान ढुलाई के दौरान जो भ्रष्टाचार होता है उसकी कीमत भी आपकी जेब से चुकाई जाती है।
हमारी सोच प्रभावित
चूंकि सरकार अप्रत्यक्ष कर लेती है इसलिए हमारी कभी हिम्मत नहीं होती कि सरकार पर रोजगार या रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ते की मांग कर सकें। यदि गरीब हैं तो सरकार से भरपेट भोजन मांग सके। क्योंकि सरकारी नुमाइंदा कहेंगा कि आप जो सरकार को दे रहे हो तो मत देना। हम आपकों यह सेवा नहीं देंगे। वहीं प्रत्यक्ष कर लिया जाता तो लोग एक स्वर में विरोध करते कि हम टैक्स नहीं देंगे एक पल में सरकार झुक जाती।
खैर अब भी लोगों के पास एक चारा है। खरीदी का बहिष्कार कर। सामानों की अदला-बदली कर व्यापार करने या खुद की प्रतीक मुद्रा चलाकर सरकार को झुका सकते हैं। ये आखिरी उपाय होता है। पहले लोगों को अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी। धरना प्रदर्शन करना होगा। सही मुद्दे पर चर्चा करनी होगी।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
सामान्यत: अधिकांश देशवासियों की यही सोच है। और इसका कारण है कि सरकार अप्रत्यक्ष कर लेती है। यदि यही कर प्रत्यक्ष होता तो लोग सरकार के सिर में चढ़े रहते कि आपने हमसे इतना पैसा लेकर किया क्या?
आपने कभी सोचा है कि जो सामान आप खरीदते हैं उससे सरकार को कितना टैक्स जाता है? 70 प्रतिशत से भी अधिक। जीएसटी आने के बाद यह माना जा रहा है कि 40 प्रतिशत तक अप्रत्यक्ष कर देना पड़ेगा।
बेरोजगारी पर कानूनी हक
कानूनी हकों की बात करें तो जीवन के अधिकार के तहत सरकार हर नागरिक से यह वादा करती है कि आपको भूख, उपचार के अभाव आदि में मरने नहीं दिया जाएगा। इसे ही जीवन प्रत्याशा कहते है। जो भारत में 65 साल है अर्थात् इस उम्र से पहले यदि कोई प्राकृतिक आपदा के अभाव में मरा तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। मुआवजा की मांग कर सकते हैं। इसीलिए मृतक का पोस्ट मार्टम होता है।
तो व्यक्ति की भूख कब मिटेगी जब उसके हाथ में रोजगार होगा। अर्थात् रोजगार के अधिकार को ही आजीविका का अधिकार कहते हैं। और हर नागरिक को रोजगार देना सरकार की कानूनी मजबूरी है। नहीं दे पा रही है तो इतना बेरोजगारी भत्ता देना चहिए जिससे उसका गुजारा हो सके।
विदेशों में सरकार खुद एक-एक बेरोजगार के लिए नौकरी खोजकर देती है। तब तक बेरोजगारी भत्ता तो मिलता ही रहता है। ३ नौकरी का आफर देती है और फिर भी कोई लापरवाही करता है तो देश की अर्थव्यवस्था बिगाडऩे के आरोप में उसे दंडित किया जाता है। भारत में तो सरकार खुद ही अर्थव्यवस्था बिगाड़ रही है।
आपने कभी सोचा है कि एक रुपए में मिलने वाला पेन 3 रुपए का क्या मिलता है। 2 या 3 रुपए की चीज हमें 5 रुपए में क्यों मिलती है। क्योंकि सरकार हमसे अप्रत्यक्ष टैक्स लेती है जो प्रत्यक्ष टैक्स भी कई गुना होती है। और समान ढुलाई के दौरान जो भ्रष्टाचार होता है उसकी कीमत भी आपकी जेब से चुकाई जाती है।
हमारी सोच प्रभावित
चूंकि सरकार अप्रत्यक्ष कर लेती है इसलिए हमारी कभी हिम्मत नहीं होती कि सरकार पर रोजगार या रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ते की मांग कर सकें। यदि गरीब हैं तो सरकार से भरपेट भोजन मांग सके। क्योंकि सरकारी नुमाइंदा कहेंगा कि आप जो सरकार को दे रहे हो तो मत देना। हम आपकों यह सेवा नहीं देंगे। वहीं प्रत्यक्ष कर लिया जाता तो लोग एक स्वर में विरोध करते कि हम टैक्स नहीं देंगे एक पल में सरकार झुक जाती।
खैर अब भी लोगों के पास एक चारा है। खरीदी का बहिष्कार कर। सामानों की अदला-बदली कर व्यापार करने या खुद की प्रतीक मुद्रा चलाकर सरकार को झुका सकते हैं। ये आखिरी उपाय होता है। पहले लोगों को अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी। धरना प्रदर्शन करना होगा। सही मुद्दे पर चर्चा करनी होगी।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
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21.4.17
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