भाजपा के आम चुनाव के बाद अब उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद विपक्ष को सूझ नहीं रहा कि अब क्या किया जाए। राजद प्रमुख लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव व मायावती समेत पूरे विपक्ष को एक साथ आने की बात कर रहे हैं तो जदयू ने नीतीश कुमार का नाम प्रधानमंत्री पद के रूप में आगे बढ़ा दिया है। कांग्रेस अभी इसे जल्दबाजी बता रही है तो सपा इस मामले पर अभी चुप है। ममता बनर्जी पहले ही भाजपा के खिलाफ सभी दलों के लामबंद होने की बात कर चुकी हैं। वामपंथी भी महागठबंधन की बनाने के पक्षधर हैं। वह बात दूसरी है कि हर आम चुनाव में यह खिचड़ी पकती है पर ये दल एक नहीं हो पाते। एक हों भी कैसे कई नेता प्रधानमंत्री पद की जो लालसा पाले बैठे हैं। आज के हालात में विपक्ष को एकजुट होने के बजाय जनहित के मुद्दों को लेकर संघर्ष करने की जरूरत है। विशेषकर समाजवादियों को मंथन करना चाहिए कि उनके पीछे चलने वाले संघियों ने आखिरकार उन्हें कैसे पीछे छोड़ दिया।
मेरा अब तक जो अध्ययन रहा है और जो कुछ राजनीतिक अनुभव रहा है। उसके आधार पर मैं इतना कह सकता हूं कि जनसरोकार से जुड़े मुद्दे उठाए बिना पूरा विपक्ष एक साथ आ भी जाएगा तब भी ये लोग संघियों को नहीं हरा पाएंगे। यदि संघियों को हराना है तो वैचारिक और सांगठनिक कमियों को दूर कर जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाकर केंद्र समेत विभिन्न प्रदेशों में भाजपा की सरकार को घेरना होगा। किसानों और मजदूरों के शोषण के विरोध में सड़कों पर उतरना होगा। मैं समाजवादियों से ही पूछना चाहता हूं कि गैर कांग्रेसवाद का नारा किसने दिया था ? अब जब देश में कांग्रेस कमजोर हुई है तो कौन मजबूत होने चाहिए थे ?
मैं यह बात इसलिए भी प्रमुखता से उठा रहा हूं क्योंकि गैर कांग्रेसवाद का नारा देने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया ने यह नारा ऐसी परिस्थितियों में दिया जैसे परिस्थितियां आज विपक्ष के सामने हैं। जिस तरह से विपक्ष आज की तारीख में भाजपा के सामने कमजोर है। ठीक उसी तरह विपक्ष कांग्रेस के सामने कमजोर था। 1962 में लोहिया जी फूलपुर से पंडित जवाहर लाल नेहरू से चुनाव हारने के बाद फरुखाबाद से उप चुनाव जीते तो पूरे विपक्ष की जिम्मेदारी उन पर थी। आचार्य नरेंद्र देव का निधन हो चुका था। लोक नायक जयप्रकाश नारायण भूदान आंदोलन में शामिल हो गए थे। अशोक मेहता राजनीति से निष्क्रिय हो गए थे। वामपंथियों को लोहिया पसंद नहीं करते थे। तब लोहिया जी ने जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाकर कांग्रेस को मिला गरीब हितैषी तमगा छीन लिया था। यह था लोहिया जी का संघर्ष कि मात्र चार साल में समाजवादियों ने कई प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। संघर्ष की बात नहीं करेंगे मिलने की बात करेंगे। कौन आएगा डॉ. लोहिया की भूमिका में ? कौन आएगा लोक नायक जयप्रकाश नारायण जी की भूमिका में ?
लोहिया जी नीतियों की बात करेंगे पर सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। लोहिया जी ने तो अपने पिता के अंतिम संस्कार करने के लिए भी अंग्रेजों की सहानुभूति नहीं ली थी। उनका कहना था कि देश की आजादी के लिए मैं जिन अंग्रेजों के खिलाफ मैं लड़ रहा हूं। उनकी कोई सहानुभूति मुझे नहीं चाहिए। आप लोगों ने क्या किया ? जनहित के लिए जिस कांग्रेस के खिलाफ जिंदगी भर लड़ते रह उसकी मदद से ही कई बार सरकार बनाई। जिस कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाकर जनता पार्टी की सरकार बनी। उसी जनता पार्टी के गृहमंत्री रहे चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे। वीपी सिंह की सरकार गिरने पर चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस के ही समर्थन से सरकार बनाई तो मुलायम सिंह यादव ने बचाई। 1996 में देवगौड़ा सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी, जिसमें मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री थे। उत्तर प्रदेश के इन विधानसभा चुनाव में जब अखिलेश यादव अपने पिता व चाचा से बगावत कर हीरो बन गए तो सत्ता के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया। वह बात दूसरी है कि यह गठबंधन उन्हें उल्टा पड़ गया। यह विचारधारा तो डॉ. लोहिया की नहीं है। लोहिया जी तो कभी सत्ता के लोभी नहीं रहे।
आज समाजवाद विशेष परिवारों और जातियों तक सिमट कर रह गया है। कैसे मजबूत होगा समाजवाद और कैसे मजबूत होगी समाजवादी विचारधारा ?
हर चुनाव जातीय आकड़ों पर लड़ा जाने लगा है। किसान-मजदूर की तो बस बातें ही हो रही हैं। धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुस्लिम परस्ती को ही धर्मनिरपेक्षता मान लिया। वोट के लिए हर दल मुस्लिमों की कोली भरने लगा। वह बात दूसरी है कि लंबे समय तक वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे मुस्लिमों के उत्थान के लिए कुछ खास न हो सका। तीन तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जहां धर्मनिरपेक्ष दल बचते रहे, वहीं भाजपा ने इसे मुस्लिम महिलाओं के शोषण से जोड़ दिया। जिस प्रयास में संघी लंबे समय से लगे हुए थे, उसे पूरा करने का मौका समाजवादियों और वामपंथियों ने उन्हें दे ही दिया।
भाजपाइयों ने इन सबका फायदा उठाकर समाजवादियों जम-जमकर निशाना साधा और चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम बना लिया। आम चुनाव से भी इन लोगों ने सबक नहीं लिया। अब जब उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मणिपुर व गोवा में भाजपा ने अपनी सरकार बना ली है तो तब भी ये लोग विपक्ष के एकजुट होने की बात तो कर रहे हैं पर विचारधारा में सुधार नहीं करना है। जन सरोकार से जुड़े मुद्दे नहीं उठाने हैं। सभी दल महागठबंधन की बात करने लगते हैं। आज विपक्ष को संघर्षशील नेताओं पर अध्ययन की जरूरत है। संघर्ष करने की जरूरत है। आज की तारीख में यदि समाजवादियों को कोई मजबूत कर सकता है तो वह लोहिया जी का दिमाग और उनकी विचारधारा है।
चरण सिंह राजपूत
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